मानसून से पहले नालों की सफाई सुनिश्चित करने की योजना इस बार भी परवान न चढ़ सकी। जिन इलाकों में जलभराव अधिक होता है, वहीं के नालों की अधूरी सफाई हुई है। क्षेत्रीय पार्षदों के अलावा जनता, संगठन भी सफाई की मांग करने लगे हैं। इधर, अफसरों का कहना है कि नाला सफाई में कोई कोताही नहीं बरती जा रही।
अलीगढ़ नगर निगम में शामिल हुए देवसैनी वार्ड में विकास की रफ्तार थमी हुई है। रामघाट कल्याण मार्ग पर स्थित यह इलाका नालों की गंदगी, बंबे की बदहाली और हर साल जलभराव की त्रासदी से जूझ रहा है।
शहर के सबसे पुराने और घनी आबादी वाले इलाकों में शामिल रघुवीरपुरी इन दिनों नाले की बदहाल स्थिति से परेशान है। खुले नाले में गंदगी, कूड़ा और कवाड़ा डालने से यह न सिर्फ बदबू का स्रोत बन गया है बल्कि बारिश के दिनों में पूरा इलाका जलमग्न हो जाता है।
घर परिवार और बच्चों की जिम्मेदारियों को पूरा करना एक महिला के लिए कितना कठिन है, इससे सब वाकिफ हैं। हर घर में सुबह उठने से लेकर रात होने तक की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के हाथ होती है। ऐसे में मानसिक संतुलन और शारीरिक सेहत को बनाए रखना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।
विश्व पिकनिक दिवस पर देशभर के लोग जब अपने शहरों के खूबसूरत प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थलों पर घूमने निकलते हैं, तब अलीगढ़ का अचल सरोवर एक बार फिर उपेक्षा का प्रतीक बनकर खड़ा है।
रेलवे रोड को सराय हकीम और रसलगंज से जोड़ने वाली कोयले वाली गली इन दिनों बदहाली की मिसाल बन चुकी है। यह गली अलीगढ़ की उन पुरानी सड़कों में गिनी जाती है, जो कभी व्यापार की धड़कन हुआ करती थीं।
वित्त विहीन विद्यालयों में छह लाख से अधिक बच्चे अध्ययनरत, अधिकारी और विभाग द्वारा इन्हीं विद्यालयों को किया जा रहा है अधिक परेशा, आरटीई का पैसा एक साल भी नहीं मिलता, प्रत्येक वर्ष 25 फीसदी राशि का नुकसान, वर्ष 2009 से आरटीई प्रतिपूर्ति शुल्क को सरकार ने नहीं बढ़ाया, मिलते हैं 450 रुपये
स्मार्ट सिटी में बिन बारिश सड़कें तालाब बन गई हैं। कहीं सड़क व नाला निर्माण के कारण सड़कें जलमग्न हैं तो कहीं पर नाला चोक होने की वजह से। मानसून आने में अभी देर है, लेकिन जिस तरह से शहर की सड़के पानी में डूबीं हैं उससे लग रहा है यहां रोजाना झमाझम बारिश हो रही है।
हिन्दुस्तान समाचार पत्र के अभियान बोले अलीगढ़ के तहत टीम ने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स (एमआर) से संवाद किया। संवाद के दौरान यह सामने आया कि फार्मा उद्योग की रीढ़ माने जाने वाले एमआर आज भी श्रम अधिकारों और स्थायित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
साल दर साल करोड़ों पौधे लगे फिर भी वन क्षेत्र का प्रतिशत 1.63, खतरे के निशान से नीचे जा चुका है भूजल, छह क्रिटकिल ब्लॉक, माटी की सेहत भी हो रही है कमजोर, जीवांश कार्बन घटते जा रहे, माटी में जीवांश कार्बन 0.75 प्रतिशत होने चाहिए, 0.35 ही बचा