सम्मान-सुरक्षा के लिए कब तक संघर्ष
हिन्दुस्तान समाचार पत्र के अभियान बोले अलीगढ़ के तहत टीम ने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स (एमआर) से संवाद किया। संवाद के दौरान यह सामने आया कि फार्मा उद्योग की रीढ़ माने जाने वाले एमआर आज भी श्रम अधिकारों और स्थायित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

यह वर्ग वर्षों से कंपनियों की ब्रांडिंग और दवाओं के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहा है। लेकिन खुद असुरक्षा और असमानता से जूझ रहा है। मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स ने कहा कि वे केवल सम्मान और हक की मांग कर रहे हैं। जो उन्हें एक मेहनतकश कर्मचारी के तौर पर मिलना चाहिए।
स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ माने जाने वाले एमआर आज अव्यवस्थाओं की मार झेल रहे हैं। बोले अलीगढ़ संवाद में मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स ने अपनी कुछ मुख्य मांगें सामने रखीं। जिनमें सबसे बड़ी मांग स्थायी नौकरी का अधिकार है। उन्होंने कहा कि आज भी उन्हें अस्थायी और अनुबंध आधारित व्यवस्था में रखा जाता है। जिससे हर समय नौकरी जाने का डर बना रहता है। उन्होंने सरकार और कंपनियों से यह मांग की कि उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए और उनके श्रमिक अधिकार स्पष्ट रूप से निर्धारित किए जाएं। कहा कि नियमित भर्ती प्रक्रिया, नियुक्ति पत्र, और वेतन पर्ची जैसी बुनियादी व्यवस्थाएं भी एमआर को नहीं मिल रही हैं। कंपनियों द्वारा बिना कारण बताए अवैध छंटनी की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। एमआर ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया गैरकानूनी है और इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।
संवाद के दौरान ट्रांसफर नीति की मनमानी भी एक गंभीर विषय बनकर उभरी। उन्होंने मांग की कि कंपनी बिना कर्मचारी की सहमति के राज्यांतरण न करे और ट्रांसफर के स्पष्ट नियम बनाए जाएं। साथ ही काम के घंटे तय हों। जिससे कि रोज अधिकतम 8 घंटे से ज्यादा कार्य न कराया जाए। संवाद में यह भी सामने आया कि कई कंपनियां कर्मचारियों की निगरानी के लिए ई-गैजेट्स का उपयोग कर रही हैं। जिससे कर्मचारियों को हर समय मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है। इसे निजता का उल्लंघन बताया गया और ऐसी निगरानी पर पूर्ण रोक लगाने की मांग की गई। उन्होंने कहा कि उन्हें श्रम कानूनों की कानूनी मान्यता दी जाए और वर्कमैन की परिभाषा में शामिल किया जाए। जिससे वे भी देश के अन्य श्रमिकों की तरह सभी वैधानिक सुरक्षा और लाभ के पात्र बन सकें। उन्होंने मांग की कि मासिक वेतन कम से कम 26,910 रुपये तय किया जाए और इसके लिए एक वेतन बोर्ड का गठन हो। साथ ही, बोनस अधिनियम के अनुसार समय पर बोनस, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, और सेवानिवृत्ति के बाद लाभ जैसे अधिकार सुनिश्चित किए जाएं। महिला एमआरों के लिए प्रसूति अवकाश, सुरक्षित कार्यस्थल, और बराबरी का व्यवहार सुनिश्चित किया जाए। बीमारी की स्थिति में दी गई मेडिकल रिपोर्ट को जबरन इस्तीफे का आधार नहीं बनाया जाए, यह अमानवीय है। कहा कि उन्हें त्योहारी छुट्टियां, वार्षिक अवकाश और कानूनी संरक्षण के तहत कार्य करने का पूर्ण अधिकार दिया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि प्रबंधन या कंपनी किसी भी कर्मचारी पर मानसिक या कार्यगत हमला न करे और ऐसा हो तो कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
स्थायी और श्रमिक अधिकार की लड़ाई
मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स ने सबसे पहले स्थायी नौकरी का मुद्दा उठाया। उनका कहना है कि फार्मा कंपनियां उन्हें साल-दर-साल अनुबंध पर रखती हैं। जिससे नौकरी की सुरक्षा नहीं मिलती। उन्होंने मांग की कि सरकार उन्हें वर्कमैन की श्रेणी में शामिल करे और स्थायी कर्मचारी का दर्जा प्रदान करे। इससे वे सभी श्रमिक कानूनों के अंतर्गत आ सकें और उनके लिए वेतन, बोनस, अवकाश और सेवानिवृत्ति लाभ जैसे अधिकार सुनिश्चित हो सकें।
ट्रांसफर, निगरानी और काम के घंटे पर नियंत्रण जरूरी
संवाद में यह बात भी सामने आई कि कंपनियां कर्मचारियों को मनमाने ढंग से एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर कर देती हैं। वो भी बिना उनकी सहमति के। कई बार यह ट्रांसफर दंड स्वरूप होता है। एमआरों ने यह भी कहा कि स्मार्टफोन और ऐप्स के जरिए हर वक्त उनकी गतिविधियों की निगरानी की जाती है। जिससे निजता भंग होती है। इसके साथ ही उन्होंने मांग की कि रोज 8 घंटे से अधिक काम न कराया जाए और ओवरटाइम के नियम स्पष्ट हों।
वेतन, पारदर्शिता और समय पर भुगतान की मांग
एमआरों ने कहा कि वेतन और अनुबंध को लेकर पूरी तरह से अपारदर्शिता है। उन्हें न तो ठीक से नियुक्ति पत्र दिया जाता है और न ही नियमित वेतन पर्ची। उन्होंने मांग की कि मासिक वेतन न्यूनतम 26,910 रुपये तय किया जाए। कहा कि वेतन भुगतान हर माह समय पर सुनिश्चित हो। इसके अलावा, बोनस अधिनियम के अनुसार बोनस भुगतान और वेतन बोर्ड का गठन भी उनकी मांगों में शामिल रहा।
महिला कर्मचारियों के लिए सुरक्षित माहौल और विशेष सुविधाएं
मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स ने कहा कि महिलाओं को कई बार फील्ड में असुरक्षित माहौल का सामना करना पड़ता है। उन्होंने मांग की कि कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए समिति बने और उन्हें प्रसूति अवकाश, चिकित्सा सुविधाएं और कार्य संतुलन का अधिकार दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि महिला कर्मचारियों के लिए यात्रा और सुरक्षा मानकों को बेहतर किया जाए।
बीमारी, जबरन इस्तीफा और मानवता की अनदेखी
कई एमआरों ने बताया कि अगर कोई कर्मचारी बीमार हो जाता है और वह इलाज करवाने जाता है, तो उसकी मेडिकल रिपोर्ट को कंपनी जबरन इस्तीफे का कारण बना देती है। यह प्रथा अमानवीय है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए। साथ ही सभी कर्मचारियों को स्वास्थ्य बीमा, सामाजिक सुरक्षा और सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन जैसी सुविधाएं भी मिलनी चाहिए। जिससे उनका जीवन सुरक्षित और सम्मानजनक हो।
बोले एमआर
हम लोग पिछले कई सालों से एक ही कंपनी में काम कर रहे हैं। लेकिन आज तक स्थायी नहीं किया गया। कोई नौकरी की गारंटी नहीं है। एक दिन अचानक मैसेज आता है कि अब आपकी जरूरत नहीं है।
आकाश गुप्ता
.....................
काम के घंटे तय ही नहीं हैं। सुबह निकलते हैं तो रात तक घर नहीं पहुंच पाते। हमसे हर रोज 10 से 12 घंटे काम लिया जाता है लेकिन ओवरटाइम का कोई भुगतान नहीं मिलता।
ललित शर्मा
.......................
जब तक टारगेट पूरे होते रहते हैं, तब तक सब ठीक। एक महीने की परफॉर्मेंस नीचे हुई तो कंपनी निकालने की धमकी देती है। ये मानसिक उत्पीड़न है और इसे बंद किया जाना चाहिए।
नीरज कुमार
........................
हमसे हर महीने मीटिंग्स के नाम पर पैसे कटते हैं। सेलरी स्लिप नहीं मिलती, पता ही नहीं चलता कि कितना वेतन मिल रहा है और कितना काटा जा रहा है।
अरशद अहमद
..........................
बिना किसी जानकारी के अचानक ट्रांसफर कर दिया जाता है। कोई नोटिस नहीं, कोई कारण नहीं, बस एक मेल आता है आज से आपको दूसरे राज्य में काम करना है। यह सरासर अन्याय है।
धीरज शर्मा
....................
कंपनियां हमारे मोबाइल में ऐसे ऐप डलवाती हैं जिनसे हर वक्त लोकेशन ट्रैक होती है। कहां जा रहे हैं, कितनी देर रुक रहे हैं, सब रिकॉर्ड होता है। ये निगरानी हमारी निजता पर हमला है।
लोकेश राठौर
.......................
हमारी महिला सहकर्मी फील्ड में खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं। कई बार डॉक्टर क्लिनिक में गलत व्यवहार हुआ है, लेकिन कंपनी कार्रवाई नहीं करती। महिला सुरक्षा एक मजाक बन गई है।
राजकुमार शर्मा
......................
हमारी बीमारियों को बहाना बताया जाता है। मेडिकल रिपोर्ट देने पर कहा जाता है आप ठीक से काम नहीं कर सकते, इस्तीफा दे दीजिए। ये हमारे अधिकारों का हनन है।
दीपक कुमार
........................
बोनस के नाम पर हर बार झांसा मिलता है। साल भर मेहनत करने के बाद भी कंपनी कहती है कि टारगेट नहीं हुआ। जबकि हमारे पास प्रूफ होता है कि हमने सभी टारगेट पूरे किए थे।
कृष्ण कुमार
......................
हमारी सबसे बड़ी मांग है कि हमें श्रमिक माना जाए। जब हम पूरे दिन मेहनत करते हैं, कंपनी का मुनाफा बढ़ाते हैं, तो हमें श्रम कानूनों का सुरक्षा कवच क्यों नहीं मिलता।
आशीष माहेश्वरी
........................
सेवानिवृत्ति के बाद हमारे पास कुछ नहीं बचता। न पेंशन है, न भविष्य निधि। पूरी उम्र कंपनी के लिए दौड़ लगाते हैं और बुजुर्ग होने पर बाहर कर दिए जाते हैं।
बलवीर सिंह
.....................
हम हर त्योहार फील्ड में रहते हैं। परिवार से दूर, रिश्तों से दूर। लेकिन कंपनी हमें त्यौहारी छुट्टियों का अधिकार नहीं देती। कोई बोनस भी नहीं मिलता। इसका समाधान होना चाहिए।
राहुल चौहान
....................
बिना कोई अनुबंध या लिखित नियमों के हमें काम पर रखा जाता है। किसी भी वक्त निकाल दिया जाता है। हम कोर्ट भी नहीं जा सकते क्योंकि कोई कागज ही नहीं है।
इमरान अजहर
......................
डेली रिपोर्टिंग का इतना दबाव है कि परिवार के साथ समय बिताना भी मुश्किल हो गया है। हमें एक मशीन की तरह ट्रीट किया जाता है, इंसान नहीं समझा जाता।
आशु गुप्ता
......................
छुट्टी मांगने पर ऐसे देखा जाता है जैसे कोई अपराध कर दिया हो। बीमार पड़ने पर दवा नहीं, डांट मिलती है। ऐसा व्यवहार किसी भी पेशेवर के साथ नहीं होना चाहिए।
मोहित शर्मा
........................
रोज 8 से 10 डॉक्टर विजिट, हॉस्पिटल मीटिंग, स्टॉकिस्ट विजिट और फिर डेटा फीडिंग यह सब करके भी हम किसी भी लाभ के अधिकारी नहीं माने जाते। ऐसा करना बिल्कुल गलत है।
महेश शर्मा
....................
जो कंपनी हमें टाइम पर सैलरी नहीं दे सकती, वो मेडिकल इमरजेंसी में क्या मदद करेगी। कोई इंश्योरेंस, कोई मेडिकल कवर नहीं है। हम खुद बीमार हो जाएं तो खुद जिम्मेदार होते हैं।
मनीष गौतम
......................
हमने कई बार लिखा कि हमें श्रम कानूनों के तहत अधिकार दिए जाएं, लेकिन हर बार फाइल दबा दी जाती है। हमारे साथ जानबूझकर भेदभाव किया जाता है।
आशीष शर्मा
.....................
कोई भी नया एमआर आता है तो उसे पहले ही बता दिया जाता है यहां नियम कंपनी के होते हैं, कानून के नहीं। ऐसी स्थिति में बदलाव बहुत जरूरी है।
वीरेंद्र धूलिया
...................
कई बार ऐसा होता है कि जबरन कुछ मेडिकल प्रोडक्ट्स को प्रमोट करने के लिए कहा जाता है। अगर मना करें, तो नौकरी पर खतरा। यह नैतिक और कानूनी दोनों तरह से गलत है।
विनोद कुमार गौतम
..........................
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।