खुद उद्धव सरकार ने मंजूर की थी रिपोर्ट, हमनो तो... हिंदी विवाद पर फडणवीस का पलटवार
फडणवीस ने दावा किया कि उद्धव ने CM रहते हिंदी को अनिवार्य करने वाली रिपोर्ट स्वीकार की थी। अब उद्धव और राज ठाकरे ने हिंदी अनिवार्यता के खिलाफ 5 जुलाई को मुंबई में संयुक्त विरोध प्रदर्शन की घोषणा की।

महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर भाषा विवाद ने जोर पकड़ लिया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दावा किया है कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब उनकी सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत एक ऐसी समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया था, जिसमें मराठी के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी को अनिवार्य करने की सिफारिश की गई थी। यह बयान उस समय आया है, जब उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने के कथित फैसले के खिलाफ 5 जुलाई को मुंबई में संयुक्त विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है।
फडणवीस ने शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जब NEP 2020 लागू की गई थी, तब उद्धव ठाकरे की माहा विकास आघाडी (MVA) सरकार सत्ता में थी। उस समय एक 18 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था, जिसने नीति का अध्ययन किया। जून 2021 में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि मराठी के साथ हिंदी और अंग्रेजी को अनिवार्य किया जाए। इस रिपोर्ट को 27 जनवरी 2022 को उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में स्वीकार किया गया और इस पर आगे की कार्रवाई भी की गई।
उन्होंने सवाल उठाया, "क्या इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले डॉ. रघुनाथ माशेलकर, भालचंद्र मुंगेकर और सुखदेव थोराट जैसे लोग महाराष्ट्र विरोधी हैं? यह नीति उस समय स्वीकार की गई थी, जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे। अब वे इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?" फडणवीस ने यह भी कहा कि हमारी सरकार ने हिंदी को अनिवार्य नहीं किया है, बल्कि यह केवल एक वैकल्पिक भाषा के रूप में शामिल की गई है।
उद्धव और राज ठाकरे का विरोध
इस बीच, शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने हिंदी को प्राथमिक स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के कथित कदम को "मराठी अस्मिता पर हमला" करार दिया है। दोनों नेताओं ने 5 जुलाई को मुंबई के गिरगांव चौपाटी से आजाद मैदान तक 'विराट मोर्चा' निकालने की घोषणा की है। इस प्रदर्शन को मराठी एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बताया जा रहा है।
शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, "जय महाराष्ट्र! स्कूलों में हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ एक संयुक्त और एकजुट प्रदर्शन होगा। ठाकरे ब्रांड है!" राउत ने कहा कि राज ठाकरे ने उनसे संपर्क किया और सुझाव दिया कि इस मुद्दे पर दो अलग-अलग प्रदर्शन करने के बजाय एक संयुक्त प्रदर्शन अधिक प्रभावी होगा। उद्धव ने बिना किसी हिचक के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
उद्धव ठाकरे ने कहा, "हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे जबरदस्ती थोपना स्वीकार्य नहीं है। यह एक भाषाई आपातकाल है।" वहीं, राज ठाकरे ने इसे "मराठी भाषा और संस्कृति पर हमला" बताया।
सरकार का स्पष्टीकरण
महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार ने इस विवाद को "गलतफहमी" करार देते हुए कहा, "मराठी भाषा अनिवार्य है, हिंदी केवल वैकल्पिक है। हम मराठी का पूरे दिल से समर्थन करते हैं। यह बीजेपी की वजह से है कि मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला।" शेलार ने यह भी याद दिलाया कि तीन-भाषा नीति की शुरुआत उद्धव ठाकरे की सरकार के दौरान ही हुई थी।
मराठी भाषा मंत्री उदय सामंत ने भी फडणवीस के दावे का समर्थन करते हुए कहा कि NEP 2020 के तहत गठित डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति ने मराठी, अंग्रेजी और हिंदी को कक्षा 1 से 12 तक अनिवार्य करने की सिफारिश की थी, जिसे उद्धव ठाकरे की सरकार ने मंजूरी दी थी। सामंत ने विपक्ष पर "दोहरे मापदंड" अपनाने और जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया।
शरद पवार और कांग्रेस का समर्थन
राकांपा (SP) प्रमुख शरद पवार ने भी ठाकरे भाइयों के विरोध का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, "प्राथमिक स्तर पर छोटे बच्चों पर अतिरिक्त भाषाओं का बोझ डालना गलत है। नई भाषाओं को कक्षा 5 के बाद शुरू करना चाहिए। मातृभाषा पर प्रारंभिक शिक्षा में ध्यान देना जरूरी है।" महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने भी इस मुद्दे को राज्य की सांस्कृतिक पहचान से जोड़ते हुए समर्थन जताया।
यह विवाद ऐसे समय में उभरा है, जब मुंबई में नगर निगम चुनाव नजदीक हैं। ठाकरे भाइयों का यह संयुक्त प्रदर्शन मराठी वोट बैंक को एकजुट करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रदर्शन उद्धव और राज ठाकरे के बीच 2006 के बाद पहली बार राजनीतिक एकता की ओर इशारा कर सकता है, जब राज ने शिवसेना छोड़कर MNS का गठन किया था।