वे समस्त कारण यथावत मौजूद हैं, जिन पर जंग छिड़ी थी।... लगभग दो हफ्ते चले इस युद्ध में अमेरिका भी अपनी समूची ताकत के साथ कूदा, पर हासिल क्या हुआ? कहते हैं कि ईरान के पास अभी भी 400 किलोग्राम संवर्धित यूरेनियम है, जिसे कुछ हफ्तों में परमाणु आयुध में तब्दील किया जा सकता है…
इमरजेंसी के पचास वर्ष बाद उन दिनों को याद कर अगर अफसोस होता है, तो यह गर्व भी है कि हम भारतीयों ने इस जबरदस्त लड़खड़ाहट के बावजूद अपने लोकतंत्र को न केवल कायम रखा, बल्कि उसके जरिये विकास की नई मंजिलें तय कीं…
गलवान की इस बरसी और पाकिस्तान से हुए संघर्ष की सीख क्या है? यही कि हमें पाक और चीनी सीमाओं पर एक साथ जंग लड़ने की मुकम्मल तैयारी करनी होगी। युद्ध-नीति का पुराना सिद्धांत है, जंग लड़नी हो, तो शत्रु के मुकाबले हरदम चाक-चौबंद रहना होगा…
अब हमें भी अपनी जरूरत भर की युद्धक सामग्री देश में बनाने की गति तेज करनी चाहिए। पाकिस्तान से झड़प में भारत में बने प्रक्षेपास्त्रों ने अपनी उपयोगिता साबित कर दी है। इसके साथ पश्चिमी जहाजों और उपकरणों की सीमाएं जगजाहिर हुई…
सवाल उठना लाजिमी है, क्या पूर्व प्रधानमंत्रियों ने खास काम नहीं किए? यकीनन अतीत में कई कालजयी काम हुए, पर इतनी बड़ी संख्या में लोग लगातार सत्तानायक के कायल नहीं रहे। तमाम सर्वेक्षण गवाह हैं कि नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं…
गृह मंत्री अमित शाह ने माओवाद के खात्मे के लिए अगले साल की मार्च की तारीख मुकर्रर की है। इससे पहले हिंसक माओवाद के मुद्दे पर देश के सत्ता समुदाय में कभी ऐसा आत्म-विश्वास नहीं देखा गया था…
क्या यह बदले वक्त का तकाजा है कि हमारी खोखली भावुकता अब सिर्फ की-बोर्ड पर थिरकती उंगलियों तक सीमित रह गई है? सोशल मीडिया पर बजबजाते हुए तमाम भारतवंशी भूल जाते हैं कि हमारे कुछ हमवतन उनके शब्दबाणों से आहत हो रहे हैं…
Shashi Tharoor: केंद्र सरकार ने शशि थरूर को ऑपरेशन सिंदूर पर भारत का पक्ष रखने के लिए एक समिति का नेतृत्व देने का फैसला किया है। हालांकि कांग्रेस पार्टी की तरफ से उनका नाम नहीं भेजा गया था लेकिन केंद्र सरकार ने फिर भी उन पर भरोसा जताया है।
India pakistan tension: भारत-पाकिस्तान के बीच लागू हुए सीजफायर के बाद सोशल मीडिया पर लगातार पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना हो रही है। इस पर कांग्रेस सांसद ने सीजफायर की तारीफ करते हुए कहा कि यह एक सही फैसला है। 1971 और 2025 की परिस्थितियों में फर्क है।
भारत ने साबित कर दिया कि हम पाकिस्तानी नेताओं और रावलपिंडी के जनरल साहबान की उन भभकियों से नहीं डरने वाले कि हम परमाणु हमला कर देंगे। पिछले तीन दशकों से यह धमकी सुनते-सुनते हिन्दुस्तान सहित समूची दुनिया …