Hindi Newsदेश न्यूज़Supreme Court used Article 142 to free man convicted under POCSO says Victim was judged system failed her

POCSO मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कर आरोपी को किया बरी

सुप्रीम कोर्ट ने 2023 के एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि पीड़िता को हर कदम पर मुसीबतें झेलनी पड़ीं। उसे अपने परिवार ने भी दुत्कार दिया। पीड़िता के साथ सिस्टम ने ठीक बर्ताव नहीं किया है। इससे पहले कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मामले में एक विवादास्पद टिप्पणी की थी।

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 23 May 2025 03:12 PM
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POCSO मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कर आरोपी को किया बरी

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक POCSO मामले में फैसला सुनाते हुए बेहद अहम टिप्पणियां की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाने के आरोपी शख्स को बरी कर दिया है। इससे पहले शख्स को 15 वर्षीय लड़की के साथ संबंध बनाने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने आरोपी को दोषी पाया है, लेकिन पीठ ने उसे कोई सजा ना देने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि सजा देना पीड़िता के लिए परेशानी का सबब हो सकता है।

दरअसल आरोपी ने नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाए थे। बाद में लड़की के बालिग होने के बाद उसने पीड़िता से शादी कर ली थी। दोनों फिलहाल अपने बच्चे के साथ एक साथ रहते हैं। सुनवाई के दौरान जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि पीड़िता ने इसे जघन्य अपराध नहीं माना था। कोर्ट ने कहा, “ वह कभी विकल्प नहीं चुन पाई। समाज ने उसे जज किया, कानूनी व्यवस्था ने उसे विफल कर दिया, परिवार ने उसे छोड़ दिया। वह अपने पति को बचाने की कोशिश कर रही है।"

कानूनी व्यवस्था के साथ लड़ाई…

पीठ ने आगे कहा, "इस मामले के तथ्य सभी के लिए आंखें खोलने वाले हैं। यह कानूनी व्यवस्था में खामियों को उजागर करता है।" पीठ ने कहा कि पीड़िता की नजर में यह कानूनी अपराध नहीं था, फिर भी लड़की को अपने पति को बचाने के लिए पुलिस और कानूनी व्यवस्था के साथ लड़ाई लड़नी पड़ी। पीठ ने कहा, "हालांकि कानून इसे अपराध कहता है, लेकिन पीड़िता ने इसे अपराध के रूप में नहीं देखा। उस घटना ने पीड़िता को कष्ट नहीं दिया, बल्कि इसके बाद के परिणाम ने उसे झकझोर कर रख दिया। उसे आरोपी को सजा से बचाने के लिए पुलिस और कानूनी व्यवस्था से लगातार संघर्ष करना पड़ा।"

कलकत्ता हाईकोर्ट का विवादास्पद बयान

यह मामला तब सुर्खियों में आया था जब कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2023 में शख्स को बरी करते हुए विवादास्पद टिप्पणी की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी को बरी करते हुए कहा था कि लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं पर काबू रखने की जरूरत है। टिप्पणी की आलोचना होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वतः संज्ञान लिया था। 20 अगस्त, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और व्यक्ति की 20 साल सजा को बरकरार रखा।

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एक्सपर्ट कमिटी ने किया अध्ययन

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को तत्काल रूप से जेल ना भेजने का आदेश देते हुए एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन करने का निर्देश दिया था। इस साल 3 अप्रैल को कमिटी के निष्कर्षों की समीक्षा करने और पीड़िता से बात करने के बाद कोर्ट ने पाया कि पीड़िता को वित्तीय सहायता की जरूरत है। कोर्ट ने 10वीं बोर्ड परीक्षा पूरी होने के बाद पीड़िता को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का भी निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि वह आरोपी से भावनात्मक रूप से जुड़ गई है और अपने छोटे से परिवार के लिए पोजेसिव भी है। ऐसे में शख्स को सजा नहीं दी जा सकती है।

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