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लड़की के पायजामे का नाड़ा खींचना रेप नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश पर SC भड़का

  • रेप केस को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। दरअसल, उच्च न्यायालय ने आदेश में कहा था कि लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना रेप की कोशिश के आरोप लगाने के लिए काफी नहीं है।

Nisarg Dixit लाइव हिन्दुस्तानWed, 26 March 2025 11:29 AM
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लड़की के पायजामे का नाड़ा खींचना रेप नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश पर SC भड़का

रेप केस को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए विवादित आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। दरअसल, उच्च न्यायालय ने आदेश में कहा था कि लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना रेप की कोशिश के आरोप लगाने के लिए काफी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आदेश लिखने वाले जज की संवेदनशीलता पर सवाल उठाए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि यह फैसला लिखने वाले में संवेदनशीलता की कमी को दिखा रहा है। यह फैसला तुरंत नहीं लिया गया, बल्कि सुरक्षित रखने के 4 महीने बाद सुनाया गया। हम आमतौर पर इस स्तर पर स्थगन करने में हिचकिताते हैं, लेकिन पैरा 21, 24 और 26 में की गई बातें कानून में नहीं हैं और यह मानवता की कमी दिखाती हैं। हम इन पैरा में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं।'

'वी द वुमन ऑफ इंडिया' नाम के एक संगठन की तरफ से इस फैसले पर आपत्ति जताई गई थी और सुप्रीम कोर्ट लाया गया था। बाद में शीर्ष न्यायालय ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए इस आदेश पर सोमवार को जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने रोक लगाई है।

साथ ही उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से प्रतिक्रिया मांगी है। साथ ही एटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सहयोग की मांग की है। खास बात है कि 24 मार्च को जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था।

किसने सुनाया था फैसला

उच्च न्यायालय के जस्टिस न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने दो आरोपियों की तरफ से दायर पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए ये टिप्पणी की थी। आरोपियों ने अपनी याचिका में निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार का प्रयास) के साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए कहा था।

उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा था, 'अभियोजन पक्ष के अनुसार, केवल यह तथ्य कि दो आरोपियों, पवन और आकाश ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा। उनमें से एक ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया, लेकिन राहगीरों या गवाहों के हस्तक्षेप पर वे भाग गए, धारा 376, 511 आईपीसी या धारा 376 आईपीसी के साथ पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत लाने के लिए पर्याप्त नहीं है।'

आदेश में आगे कहा गया कि बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए, अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि कृत्य तैयारी के चरण से आगे बढ़ चुका था।

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