जमीन नामांतरण को लाई 'जियो टैगिंग' व्यवस्था बनी जंजाल, फर्जीवाड़े रुकने के बजाय बढ़ीं नई समस्याएं
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे फर्जीवाड़े रुकेंगे और भूमि रिकॉर्ड अधिक सुरक्षित होंगे। लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावों के उलट है। इससे कई तरह की नई समस्याएं पैदा हो गई हैं।

झारखंड सरकार ने जमीन के म्यूटेशन (नामांतरण) को पारदर्शी बनाने के लिए जियो टैगिंग आधारित नई व्यवस्था लागू की है। इसके तहत अब राजस्व उपनिरीक्षक को जमीन का फिजिकल वैरिफिकेशन कर जीपीएस लोकेशन के साथ फोटो अपलोड करना (जियो टैगिंग) अनिवार्य कर दिया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे फर्जीवाड़े रुकेंगे और भूमि रिकॉर्ड अधिक सुरक्षित होंगे। लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावों के उलट है। इससे कई तरह की नई समस्याएं पैदा हो गई हैं।
राज्यभर से शिकायतें सामने आ रही हैं कि बिना समूचित तैयारी के नई व्यवस्था लागू कर दी गई। रांची में अधूरा ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया, जबकि अधिकांश जिलों में प्रशिक्षण की प्रक्रिया ही पूरी नहीं हो सकी है। नेटवर्क की समस्याएं, फोटो अपलोड में दिक्कत और तकनीकी संसाधनों की कमी से म्यूटेशन की फाइलें अटकी पड़ी हैं।
अंचल अधिकारियों ने बताया कि एक कर्मचारी को दो-तीन हलकों की जिम्मेदारी दी गई है, जिनमें 10 से 40 गांव शामिल होते हैं। ऐसे में हर गांव जाकर जमीनी निरीक्षण करना, फोटो खींचना और अपलोड करना न सिर्फ मुश्किल है, बल्कि बिना भत्ता और संसाधनों के लगभग असंभव है। अंचल अधिकारियों का कहना है कि बिना जियो टैगिंग के म्यूटेशन की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ रही है।
राज्यभर में म्यूटेशन के हजारों मामले लंबित हैं। लोग महीनों से कागज लेकर दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, पर कोई समाधान नहीं। डीसी हर बैठक में काम जल्दी निपटाने का निर्देश देते हैं, लेकिन फील्ड कर्मचारियों के पास न तो संसाधन हैं, न ही पर्याप्त स्टाफ। अधिकारियों का कहना है कि सरकार को पहले खाली पदों पर बहाली करनी चाहिए, तकनीकी प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए, तभी ऐसी प्रणाली कारगर हो सकती है। साथ ही जियो टैंगिंग के लिए हर जगह जाना होगा, इसके लिए सरकारी सहायता (यात्रा भत्ता) दी जाए।