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Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी ये 10 रोचक बातें, क्या जानते हैं आप?

Unique Facts about Rath Yatra: पुरी की रथ यात्रा की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होता है। कोई भी व्यक्ति, किसी भी धर्म, जाति या देश का हो, रथ खींच सकता है। जानें रथ यात्रा से जुड़ी खास बातें-

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तानFri, 27 June 2025 09:51 AM
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Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी ये 10 रोचक बातें, क्या जानते हैं आप?

Interesting facts about Rath Yatra: विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से प्रारंभ होती है। इस साल रथ यात्रा आज यानी 27 जून से शुरू हो रही है। उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर अपनी भव्यता व धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह धाम भगवान श्रीकृष्ण के जगन्नाथ स्वरूप को समर्पित है, जहां साथ में उनके बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा की पूजा होती है। जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई व बहन तीन भव्य रथों पर सवार होकर मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेंगे। जानें जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी 10 खास बातें-

1. कैसे हुई रथ यात्रा की शुरुआत: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पीछे एक पौराणिक कहानी है। भगवान जगन्नाथ को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना गया है। जब भगवान श्रीकृष्ण का देहांत हुआ तो उनकी अस्थियां समुद्र में विसर्जित कर दी गईं। उसी समय ओडिशा के राजा को सपना आया कि समुद्र में एक पवित्र लकड़ी बहकर आएगी जिसे भगवान के रूप में स्थापित करना है। तब राजा इन्द्रद्युम्न ने उस लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्ति बनवाई।

कहा जाता है कि भगवान की मूर्ति बनाने के लिए खुद देवशिल्पी विश्वकर्मा आए। विश्वकर्मा ने राजा के सामने शर्त रखी कि बंद कमरे में मूर्तियां बनाएंगे। मूर्ति बनने तक अंदर कोई नहीं जाएगा। राजा ने इस शर्त को मान लिया। एक दिन राजा को कमरे के अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो वे अंदर चले जाए। तब से भगवान की मूर्तियां अधूरी हैं। राजा ने अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर में स्थापित कर दिया। कहा जाता है कि उस समय भविष्यवाणी हुई कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी जन्मभूमि मझुरा जरूर जाएंगे। तब राजा इन्द्रद्युम्न ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन भगवान के उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तब से रथ यात्रा की परंपरा चली आ रही है।

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2. रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में देवी सुभद्रा व सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। इन्हें उनके रंग व ऊंचाई से पहचाना जाता है।

3. बलराम जी के रथ को तालध्वज कहा जाता है। इसका रंग लाल व हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ कहा जाता है। इसका रंग काला या नीला और लाल होता है। जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघष या गरुड़ध्वज कहा जाता है। इसका रंग लाल और पीला होता है।

4. भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ की ऊंचाई 45.6 फीट, बलराम जी का तालध्वज 45 फीट और देवी सुभद्रा के दर्पदलन रथ की ऊंचाई 44.6 फीट होती है।

5. भगवान के रथों का निर्माण नीम की पवित्र व परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से होता है, जिसे दारु कहा जाता है। रथों के निर्माण के लिए नीम के स्वस्थ व शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए मंदिर की ओर से खास समिति का गठन किया जाता है।

6. इन तीनों रथों में निर्माण के लिए किसी भी प्रकार के कील या कांटे का प्रयोग नहीं किया जाता है। रथों के निर्माण के लिए लकड़ी का चयन बसंत पंचमी से प्रारंभ होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से शुरू होता है।

7. जब रथ यात्रा के लिए तीनों रथों का निर्माण संपन्न हो जाता है, तब छर पहनरा नामक अनुष्ठान किया जाता है। इसके लिए पुरी के गजपति राजा पालकी में आते हैं और तीनों रथों का विधि-विधान से पूजन करते हैं। 'सोने की झाड़ू' से रथ मंडप और रास्ते को साफ करते हैं।

8. रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती है और तीनों रथ गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। यह भगवान की मौसी का घर है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिन विश्राम करते हैं। मान्यता है कि यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने तीनों देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई थीं।

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9. रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में होती है, उस दौरान बारिश जरूर होती है। कहते हैं कि आज तक कभी रथ यात्रा में बारिश न हुई हो, ऐसा मौका नहीं आया है।

10. आषाढ़ माह के दसवें दिन तीनों रथ फिर से मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के मंदिर वापस लौटने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। मंदिर के द्वार अगले दिन एकादशी को खोले जाते हैं।

इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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