Hindi Newsउत्तराखंड न्यूज़During the emergency, political opponents were the target in Dehradun

जब देहरादून पर पड़ी आपातकाल की काली छाया, राजनीतिक विरोधी रहे निशाने पर

आपातकाल को 50 साल पूरे हो चुके हैं। आपातकाल की काली छाया उत्तराखंड के देहरादून शहर पर भी पड़ी थी। यहां कई विपक्षी नेताओं को पकड़कर जेल में डाला गया।

Anubhav Shakya लाइव हिन्दुस्तान, शैलेन्द्र सेमवाल। देहरादूनWed, 25 June 2025 06:49 AM
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जब देहरादून पर पड़ी आपातकाल की काली छाया, राजनीतिक विरोधी रहे निशाने पर

आपातकाल (1975-1977) के दौरान देहरादून सत्ता के सख्त फैसलों का मूक गवाह बना। उस दौर में राजनीतिक विरोधियों पर नकेल कसी गई। खासकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कार्यकर्ता निशाने पर थे। नागरिक अधिकारों को कुचलने के गंभीर आरोप तक लगे। जिनकी गिरफ्तारी नहीं हुई, वे पहचान छिपाकर भागते रहे, तो कई ने जेल की सलाखों के पीछे महीनों बिताए।

आपातकाल की घोषणा के साथ ही देहरादून और इसके आसपास के इलाकों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हो गई थी। तब मीडिया पर सेंसरशिप लाद दी गई। लोगों को किसी ठोस कारण के बिना गिरफ्तार किया जाने लगा था। इतना ही नहीं, नसबंदी अभियान के नाम पर आम लोगों को जबरन ऑपरेशन के लिए मजबूर किया गया।

तब मोती बाजार से शुरू हुआ था संघर्ष

आपातकाल लागू होने से ठीक एक दिन पहले, 24 जून 1975 को मोती बाजार के संघ कार्यालय में प्रशिक्षण शिविर पूरा हुआ था। अगले ही दिन प्रशासन हरकत में आया और नजर कड़ी की गई। कार्यवाह हरीश काम्बोज के अनुसार, उस शिविर में शामिल कार्यकर्ताओं की सूची पुलिस के हाथ न लग जाए, इसके लिए सूची और दस्तावेज रातोंरात बोरी में भरकर मोती बाजार के पास शिशु मंदिर में जला दिए गए। उस रात कार्यकर्ता गुपचुप तरीके से झंडा चौक पहुंचे, जहां टेकचंद की प्रेस में सभी इकट्ठा हुए। लेकिन इससे पहले कि वे वहां से रवाना होते, 150 पुलिसकर्मियों ने घेर लिया और कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, सूची पुलिस के हाथ नहीं लगी।

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