जेल में यातनाएं झेलीं, फिर 32 साल लड़ी न्याय की जंग; आपातकाल की एक कहानी ऐसी भी
बागेश्वर के शिक्षक चंद्र सिंह राठौर को आपातकाल के समय सन् 1975 को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। राठौर ने बताया कि इसलिए जेल हुई कि वे ऐसा साहित्य पढ़ते थे, जो तब की सरकार को नापसंद था।

इमरजेंसी के समय सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे एक शिक्षक को सिर्फ इसलिए जेल हुई कि वह ऐसा साहित्य पढ़ते थे, जो सरकार को पसंद नहीं था। डेढ़ साल जेल में रहने के बाद वह अपने घर लौटे, लेकिन सरकारी नौकरी गंवा बैठे। इसके बाद उन्होंने 32 साल अपने हक के लिए लड़ाई लड़ी। लंबी लड़ाई के बाद नौकरी मिली, लेकिन पूरा वेतन आज तक नहीं मिला। उस समय को याद कर वह आज भी सिहर उठते हैं।
25 लोग आए और उठाकर ले गए
उत्तराखंड में बागेश्वर जिले के कांडा तहसील के मलसूना गांव निवासी चंद्र सिंह राठौर ने ‘हिन्दुस्तान’ से अपनी कहानी साझा की। राठौर ने बताया कि वह तब 50 साल पहले राजकीय इंटर कॉलेज देवतोली में बतौर शिक्षक तैनात थे। वह बोर्ड परीक्षा की ड्यूटी कर रहे थे। तभी एसडीएम समेत 25 लोग आए और उनको उठाकर ले गए। तीन दिन तक बागेश्वर में रखा गया और ठीक से खाना तक नहीं मिला। वह कहते हैं कि वह जो किताबें पढ़ते थे और लोगों को बांटते थे, उसे अनमार्गी साहित्य कहा जाता है। लेकिन, तब की सरकार को यह पसंद नहीं था। इसके बाद अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया। डेढ़ साल तक वह वहां रहे। उनको जेल में पर्याप्त खाना-पानी नहीं मिला। बहुत यातनाएं दी गईं। वे साधना करते थे। इसलिए यातनाओं को झेल गए। वह कहते हैं कि अनमार्गी साहित्य आज भी जिंदा है। इससे जुड़े लोग 200 देशों में है।
रिहा हुए तो नौकरी से हटा दिया
चंद्र सिंह पांच फरवरी 1977 को जेल से रिहा हुए, लेकिन सरकारी नौकरी से हटा दिया गया। इसके लिए वह मुंसीफ कोर्ट, जिला न्यायालय, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गए। न्याय पाने के लिए उन्हें 32 साल लगे। इसके बाद नौकरी मिली, लेकिन वेतन आज तक नहीं मिल पाया। अब वह हल्द्वानी में रहते हैं। दौड़-भाग करने की उम्र नहीं रही।
‘संघी होने की वजह से किया गिरफ्तार’
पौड़ी निवासी गोविंद राम धींगरा, जो आपातकाल में जेल में रहे, पुरानी यादें ताजा करते हुए बताते हैं कि आरएसएस से जुड़े होने की वजह से हमारे कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई थी। वे देश विभाजन के समय आ गए थे। गोविंद बहुत अधिक बोलने में असमर्थ हैं, फिर भी वे बताते हैं कि तब आरएसएस से जुड़े होने पर हम लोगों ने नारेबाजी भी की। साथियों ने भी कहा कि तब वह कर्मठ आरएसएस कार्यकर्ता रहे थे।
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