दस्तावेज लेखकों को सरकार से सुविधाओं की आस
करोड़ों रुपये की जमीन की खरीद-फरोख्त हो या फिर घर परिवार की संपत्ति का बंटवारा, सभी में दस्तावेज लेखकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह अपनी कलम से तथ्यों को कानूनी रूप देते हैं और फिर नियमानुसार निबंधन कार्यालय में लिखे स्टांप को बिना किसी गलती के दाखिल कराते हैं।

जनपद में चार तहसीले है,लेकिन किसी भी तहसील में दस्तावेज लेखकों के बैठने के लिए चैंबर तक की सुविधा नहीं है। जबकि चारों तहसीलों और रजिस्ट्री कार्यालय में जमीन की खरीद-फरोख्त के लिए बैनामा लेखकों की करीब 150 संख्या है। तमाम समस्याओं से दस्तावेज लेखक जूझ रहे है। पर सरकार और प्रशासनिक स्तर से समस्याओं का निस्तारण नहीं हो पा रहा है। हिन्दुस्तान ने दस्तावेज लेखकों के पास जाकर उनकी समस्याओं को सुना। दस्तावेज लेखकों का क हना है कि शहर में अलीगढ़ रोड़ पर तहसील में रजिस्ट्री कार्यालय है।
इस रजिस्ट्री कार्यालय परिसर में जगह काफी कम है। बैनामा लेखकों के बैठने के लिए चैंबर तक की व्यवस्था नहीं हैं, तमाम दस्तावेज लेखक सड़क किनारे अपना बस्ता लगा रहे है। उनका कहना है कि प्रतिदिन 500 से 600 लोग आते जाते हैं। इतनी भीड़-भाड़ वाली जगह पर पीने के पानी के अलावा शौचालय की व्यवस्था नहीं है। पीने के पानी के लिए बोतल बंद पानी खरीदना पड़ता है। गर्मियों में पानी को लेकर ज्यादा दिक्कत रहती है। परिसर में चारों ओर गंदगी और खड़ी बाइकों से निकलने तक को रास्ता नहीं रहता है। जिससे बैनामा लेखक और अधिवक्ता परेशान रहते हैं। यहां जमीन के सिलसिले में रोजाना सैकड़ों की संख्या में लोग नकदी लेकर आते हैं।
दस्तावेज लेखकों ने बताया कि जिले में ई-फ्रंट आफिस नहीं खुलना चाहिए। प्रदेश सरकार अब संविदा पर निबंधन मित्र भेजने की तैयारी कर रही है। जिससे दस्तावेज लेखकों के काम पर काफी असर पड़ेगा, क्योंकि अभी भी इस काम में काफी प्रतिस्पर्धा हो गई है। जगह-जगह बैनामा लेखक बैठ रहे हैं। जिससे गिने-चुने लोगों के पास ही काम रह गया है। अब यदि सरकार संविदा पर निबंधन मित्र भेज देगी, तो इससे बैनामा लेखकों के काम पर असर पड़ेगा। सरकार के संविदा निबंधन मित्र भेजे जाने की जानकारी मिलने पर जिलेभर के दस्तावेज लेखकों ने विरोध किया। पिछले बीस दिनों से दस्तावेज लेखक धरना प्रदर्शन जिले की हर तहसील पर दे रहे थे। जिससे करीब पांच करोड़ रूपये के राजस्व का नुकसान सरकार का हुआ। शुक्रवार को आश्वासन के बाद धरना प्रदर्शन स्थगित कर दिया गया।
अगर हुआ निजीकरण तो हो जायेंगे बेरोजगार
सरकार के स्तर से संविदा पर निबंधन मित्र रखे जाने की तैयारी चल रही है। इसकी जानकारी लगने पर दस्तावेज लेखकों ने इसका विरोध किया। पिछले बीस दिन से जनपद की हर तहसील पर दस्तावेज लेखकों का धरना प्रदर्शन चला। दस्तावेज लेखकों का मानना है कि यदि सरकार निबंधन मित्र संविदा पर रख लेगी तो दस्तावेज लेखक सड़क पर आ जायेंगे। पूरी तरह से वो बेरोजगार हो जायेंगे। सरकार को दस्तावेज लेखकों के परिवारों की ओर देखते हुए निबंधन मित्र संविदा पर नहीं तैनात करने चाहिए।
बीस दिन तक चला धरना प्रदर्शन
दस्तावेज लेखकों का धरना प्रदर्शन चारों तहसील पर बीस दिन पहले शुरू हुआ। पिछले बीस दिनों से एकजुटता दिखाते हुए दस्तावेज लेखकों ने धरना प्रदर्शन किया। इस दौरान कई संगठनों ने दस्तावेज लेखकों का समर्थन करते हुए उनके साथ खड़े रहे। धरना प्रदर्शन के चलते लोगों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ा। धरना प्रदर्शन के चलते जमीन से जुड़े कार्य पूरी तरह ठप्प हो गए। धरना प्रदर्शन शुरु होने के बाद बीस दिनों तक दस्तावेज लेखक डटे रहे।
आश्वासन के बाद हुआ धरना स्थगित
दस्तावेज लेखकों का धरना प्रदर्शन बीस वें दिन जाकर आश्वासन के बाद स्थगित हो गया। प्रशासनिक अधिकारियों के आश्वासन के बाद जाकर धरना प्रदर्शन स्थगित कर दिया गया। दस्तावेज लेखकों का कहना है कि सरकार के पास तक समस्या को पहुंचाया गया है। यदि निजीकरण किया गया तो दस्तावेज लेखक बेरोजगार हो जायेंगे। फिलहाल आश्वासन मिलने पर धरना प्रदर्शन क ो स्थगित किया गया है। यदि सरकार निजीकरण व्यवस्था को नहीं हटाती है आगे भविष्य में पुन धरना प्रदर्शन व आंदोलन के जरिए अपनी बात को रखा जायेगा।
बीस दिन में पांच करोड़ का नुकसान
दस्तावेज लेखकों के निजीकरण के विरोध में धरना प्रदर्शन बीस दिन तक चला। इसके कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। जमीन की खरीद फरोक्त का काम पूरी तरह से बंद रहा। जनपद में चार तहसील है,जहां बीस दिन तक धरना प्रदर्शन आयोजित किया गया। जिसकी वजह से संपति का बंटवारा सहित जमीन की खरीद फरोख्त का कार्य पूरी तरह बंद रहा। दस्तावेज लेखकों की माने तो बीस दिन में चारों तहसीलों को मिलाकर करीब पांच करोड़ के राजस्व का नुकसान सरकार का हुआ है। जनपद की हाथरस सदर के अलावा सादाबाद,सिकंदराराऊ और सासनी में दस्तावेज लेखक कार्य करते है। चारों तहसीलों में धरना प्रदर्शन के चलते जमीन व संपति से जुड़े कार्य पूरी तरह बंद रहे। बताते चले कि पूरे एक माह में चारों तहसीलों के दास्तावेज लेखक आठ से दस करोड़ का राजस्व सरकार को जाता है।
लोगों को उठानी पड़ी दिक्कतें
दस्तावेज लेखकों के धरना प्रदर्शन के चलते तमाम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। लोग तहसील तक आते मगर वहां धरना प्रदर्शन के चलते काम न हो पाने की वजह से वापस लौट जाते। धरना प्रदर्शन के कारण लोग अपनी संपति व जमीन की खरीद फरोख्त के कार्य न होने के कारण लोगों को दिक्कते झेलनी पड़ी। अब शुक्रवार को धरना प्रदर्शन स्थगित हो जाने के बाद तहसीलों में दस्तावेज लेखकों पर लोग पहुंचेंगे और अपने जरूरी कार्यों को पूरा करायेंगे।
ई-फ्रंट आफिस की नहीं जरूरत
बैनामा लेखकों ने बताया कि जिले में ई-फ्रंट आफिस नहीं खुलना चाहिए। प्रदेश सरकार अब संविदा पर निबंधन मित्र भेज रही है। इससे बैनामा लेखकों के काम पर काफी असर पड़ेगा, क्योंकि अभी भी इस काम में काफी प्रतिस्पर्धा हो गई है। जगह-जगह बैनामा लेखक बैठ रहे हैं। अब यदि सरकार संविदा पर निबंधन मित्र भेज देगी, तो इससे सभी बैनामा लेखकों के काम खत्म हो जायेगा। सरकार को निबंधन मित्र नहीं तैनात करने चाहिए।
शिकायत
- दस्तावेज लेखकों के लिए नहीं है चैंबर की व्यवस्था
- शौचालय न होने के कारण झेलनी पड़ती है दिक्कत
- पीने के पानी के नहीं है बंदोबस्त
- निजीकरण होने से बेरोजगार हो जायेंगे दस्तावेज लेखक
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सुझाव
- दस्तावेज लेखकों के बैठने के लिए होनी चाहिए व्यवस्था
- दस्तावेज लेखकों के लिए होने चाहिए शौचालय
- पीने के पानी के लिए कराई जानी चाहिए व्यवस्था
- निबंधन मित्र की तैनाती सरकार न करें
बिना रजिस्ट्रेशन व सीओपी के काम करने वालों से बैनामा लेखकों को काफी परेशानी होती है। इस व्यवस्था में जितना जल्दी सुधार होगा, हम लोगों को ही फायदा मिलेगा।
दिनेश चंद शर्मा
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जिस स्थान पर बैनामा लेखक बैठते हैं, वहां पर किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं है। ना तो यहां बैठने की व्यवस्था, न पीने के पानी की और न ही शौचालय की। जिसके चलते परेशानी उठानी पड़ती है।
नंद किशोर शर्मा
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निजीकरण नहीं होना चाहिए। सरकार निजीकरण करने के लिए जा रही है। जिसके विरोध में धरना प्रदर्शन करके आक्रोश व्यक्त किया गया। निजीकरण से दस्तावेज लेखक बेरोजगार हो जायेंगे।
हिमांशु गौड
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साइट के नहीं चलने से काफी असुविधा होती है। कई बार शिकायत करने के बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं हो सका है। जिस वजह से बैनामा लेखकों को परेशानी उठानी पड़ती है।
मनीष मित्तल
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सरकार जो निजीकरण करने के लिए जा रही है,वो गलत है। निजीकरण नहीं होना चाहिए। सभी साथी निजीकरण का विरोध कर रहे है। इसके होने से दस्तावेज लेखक बेरोजगार हो जायेंगे।
देवदत्त उपाध्याय
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निजीकरण का विरोध जारी रहेगा। फिलहाल प्रशासनिक अधिकारियों के आश्वासन के बाद धरना प्रदर्शन स्थगित कर दिया गया है। यदि निजीकरण वापस नहीं लिया जाता तो विरोध जारी रहेगा।
राहुल शर्मा
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अभी भी काफी बैनामा लेखक टीनशेड के नीचे बैठकर काम करने को मजबूर है। प्रशासन के अधिकारियों को चाहिए कि इनके लिए पक्के शेड वाले चैबर बने। जिससे बरसात के मौसम में परेशानी नहीं उठानी पड़े।
उमेश कुशवाह
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दस्तावेज लेखकों के साथ सरकार गलत कर रही है। सरकार जो निजीकरण करने के लिए जा रही है,वो गलत है। निजीकरण नहीं होना चाहिए। सभी साथी निजीकरण का विरोध कर रहे है।
हिमांशु गौड
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आए दिन विभागीय वेबसाइट बंद पड़ी रहती है। अक्सर सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को साइट सबसे अधिक व्यस्त रहती है। ऐसे में बैनामा लेखकों को सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ती है।
सतेन्द्र रावत
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सभी कार्यालय के बंद होने का समय निर्धारित है। शाम को चार बजते ही कार्यालय बंद होने लगते हैं। ऐसे में शाम के समय बैनामा लेखकों के पास जो लोग आते हैं, उन्हें अगले दिन आने के लिए कहा जाता है।
के के कौशिक
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निजीकरण का विरोध लगातार जारी रहेगा। इस व्यवस्था को सरकार को लागू नहीं करना चाहिए। ऐसा होने से दस्तावेज लेखक बेरोजगार हो जायेंगे। इसलिए निजीकरण नहीं होना चाहिए।
अजय सारस्वत
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निजीकरण हो जाने से दस्तावेज लेखक बेरोजगार हो जायेंगे। सरकार को चाहिए कि वो दस्तावेज लेखकों के परिवारों की ओर देखते हुए गलत निर्णय न लें। निजीकरण किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं होगा।
नीरज कांत
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निजीकरण नहीं होना चाहिए,यदि निजीकरण हुआ तो सरकार ई-मित्रों के जरिए कार्य करायेगी। जिससे दस्तावेज लेखकों का परिवार भुखमरी की कगार पर आ जायेंगे। इसलिए निजीकरण नहीं होना चाहिए।
शशांक पचौरी,एडवोकेट
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किसी भी प्रकार का नुकसान दस्तावेज लेखकों का नहीं होने दिया जायेगा। जिस प्रकार पहले से कार्य चल रहे है,उसी तरह से काम दस्तावेज लेखक करते रहेंगे।
प्रमोद गोस्वामी,अध्यक्ष,रेवन्यू बार एसोसिएशन,हाथरस।
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सरकार को चाहिए कि वो दस्तावेज लेखकों के परिवारों की तरह ध्यान देना चाहिए। निजीकरण से भुखमरी की कगार पर दस्तावेज लेखक पहुंच जायेंगे। की ओर देखते हुए गलत निर्णय न लें।
जे पी शर्मा
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सरकार निजीकरण करके ई-मित्रों से काम कराने की सोच रही है,जोकि गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिए,क्योंकि दस्तावेज लेखक बेरोजगार हो जायेंगे। परिवार का भरण पोषण पर संकट आ जायेगा।
राहुल वशिष्ठ,एडवोकेट
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