व्हाट्सएप पर बात, स्टोर रूम से किनारा; जस्टिस वर्मा की वो गलतियां जो बन गईं गले की फांस
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली समिति ने 10 दिनों तक मामले की पड़ताल की थी। इस दौरान 55 गवाहों से पूछताछ की और जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास का दौरा भी किया था।

दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर होली की रात आग लगने और उनके स्टोर रूम में भारी मात्रा में अधजली नकदी मिलने के मामले में जांच करने वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय कमेटी ने पहली बार उन रहस्यों से पर्दा उठाया है, जिसकी गिरफ्त में जस्टिस वर्मा जा फंसे हैं। पहली बार उन 10 चश्मदीदों के नाम भी सामने आए हैं, जिन्होंने अपनी आंखों से भारी मात्रा में अधजले नोट देखे थे। इस जांच रिपोर्ट में कमेटी ने जस्टिस वर्मा के आचरण को संदिग्ध करार दिया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है।
जांच समिति ने जस्टिस वर्मा की उन बड़ी गलतियों को भी उजागर किया है, जो ना सिर्फ उनके आचरण और व्यवहार पर संदेह पैदा करता है बल्कि उन्हें नकदी कांड में संदेह के घेरे में ला खड़ा करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जस्टिस वर्मा ने अपने आवास पर नकदी मिलने के मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज न कराना और चुपचाप इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपना तबादला स्वीकार कर लेना उन बातों में शामिल है, जिसे जांच कमेटी ने सहज और स्वभाविक नहीं माना है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल ने इन निष्कर्षों को आधार पर जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की थी।
केवल व्हाट्सएप चैट से ही क्यों बात
तीन सदस्यीस जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जांच के क्रम में जस्टिस वर्मा के कई कर्मचारियों ने पूछताछ में बताया कि 14-15 मार्च की रात जस्टिस वर्मा ने केवल व्हाट्सएप के जरिए ही उनसे बात की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस व्हाट्सएप चैट का विवरण प्राप्त नहीं किया जा सका, क्योंकि यह एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म है।
जिस स्थान पर नकदी मिली, वहां न जाना
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी दिल्ली लौटने के बाद एक बार भी उस स्टोर रूम में नहीं गए, जहां आग लगी थी। जस्टिस वर्मा ने यह कहकर इसे सही ठहराने की कोशिश की कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों की भलाई की चिंता थी। हालांकि, जांच समिति को जस्टिस वर्मा का यह जबाव अजीब लगा क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में कोई भी व्यक्ति नुकसान का आकलन करने के लिए कम से कम एक बार घटनास्थल पर जाएगा।
साजिश का दावा बेमतलब
तीन सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि जस्टिस वर्मा ने अपने खिलाफ साजिश का आरोप लगाने के बावजूद पुलिस में कभी इस बारे में शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर वाकई कोई साजिश थी, तो जज को शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी या हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस या भारत के चीफ जस्टिस के संज्ञान में उस साजिश को लाना चाहिए था।
चुपचाप से ट्रांसफर स्वीकार कर लेना
जांच पैनल ने यह भी पाया कि जस्टिस वर्मा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपना ट्रांसफर उसी दिन चुपचाप स्वीकार कर लिया, जिस दिन यह प्रस्तावित था। इसके लिए उन्होंने किसी से कोई सवाल-जवाब नहीं किया। यह ट्रांसफर प्रस्तावित होने के कुछ घंटों के भीतर किया गया, जबकि उनके पास अपना फैसला बताने के लिए अगली सुबह तक का समय था। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने ट्रांसफर के पीछे के कारणों का पता लगाने की कोशिश भी नहीं की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टोर रूम का सीसीटीवी कैमरा भी काम नहीं कर रहा था, जो संदेह पैदा करता है।
बता दें कि जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर 14-15 मार्च की दरम्यानी रात को आग लगी थी, जिसमें अधजले कैश बरामद हुए थे। जब आगजनी हुई थी, तब उस समय जस्टिस वर्मा अपने आवास पर नहीं थे। मामले की सूचना मुख्य न्यायाधीश को दिए जाने के बाद तत्कालीन सीजीआई संजीव खन्ना ने उन्हें दिल्ली से इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया था। अब संसद के मॉनसून सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग लाने की चर्चा है।