बेहतर संबंध बनाने हैं तो 4 बातें माननी होंगी, भारत ने चीन के सामने रखा सीमा पर शांति का फॉर्मूला
पिछले कुछ महीनों में दोनों पक्षों ने डी-एस्केलेशन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। अक्टूबर 2024 में सैन्य वापसी को लेकर एक समझौता हुआ था, जिसके बाद डेमचोक और डेपसांग जैसे क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी शुरू हुई।

भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए भारत ने एक चार सूत्री योजना का प्रस्ताव रखा है। यह जानकारी हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके चीनी समकक्ष के बीच हुई बैठक के बाद सामने आई है। यह बैठक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के ढांचे के तहत चीन के किंगदाओ में आयोजित की गई थी, जहां दोनों देशों ने सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने पर सहमति जताई।
शंघाई सहयोग संगठन की रक्षा मंत्रियों की बैठक से इतर राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जुन के बीच अहम द्विपक्षीय मुलाकात हुई। सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में राजनाथ सिंह ने सीमा तनाव कम करने और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए चार सूत्रीय योजना पेश की।
1. 2024 के डिसएंगेजमेंट प्लान का सख्ती से पालन
भारत ने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य टकराव को कम करने के लिए दोनों देशों की सेनाओं को चरणबद्ध तरीके से पीछे हटाने का सुझाव दिया। गलवान घाटी में 2020 की हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था, जिसके बाद से भारत और चीन ने डी-एस्केलेशन की प्रक्रिया शुरू की है। हाल के महीनों में डेमचोक और डेपसांग जैसे क्षेत्रों से सैन्य वापसी के बाद यह प्रस्ताव और मजबूत हुआ है।
2. तनाव कम करने के लिए निरंतर प्रयास- नियमित राजनयिक और सैन्य संवाद
भारत ने सीमा प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए नियमित और पारदर्शी संवाद पर जोर दिया। दोनों देशों ने विशेष प्रतिनिधियों की बैठक और कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता जैसे तंत्रों को और मजबूत करने पर सहमति जताई है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी और चीनी उप विदेश मंत्री सुन वेईदॉन्ग के बीच हाल ही में नई दिल्ली में हुई बैठक में भी इस पर चर्चा हुई थी, जहां द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने के लिए कई उपायों पर विचार किया गया।
3. सीमा निर्धारण और सीमांकन की प्रक्रिया में तेजी
भारत ने सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए एक संयुक्त तंत्र स्थापित करने का सुझाव दिया, जिसमें दोनों देशों की सेनाओं के बीच हॉटलाइन और अन्य संचार चैनलों को मजबूत करना शामिल है। यह तंत्र भविष्य में गलतफहमियों और टकराव को रोकने में मदद करेगा। दोनों पक्षों ने इस दिशा में काम करने के लिए सकारात्मक रुख अपनाया है।
4. विशेष प्रतिनिधि स्तर की मौजूदा व्यवस्था का उपयोग करते हुए नई प्रक्रियाएं बनाना
भारत ने विशेष प्रतिनिधि स्तर की मौजूदा व्यवस्था का उपयोग करते हुए नई प्रक्रियाएं विकसित करने का प्रस्ताव रखा है, ताकि भारत-चीन सीमा विवाद को और प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सके। इस व्यवस्था के तहत, दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि नियमित रूप से मिलते हैं और सीमा मुद्दों पर व्यापक चर्चा करते हैं। भारत का सुझाव है कि इस तंत्र को और मजबूत करने के लिए नई प्रक्रियाएं स्थापित की जाएं, जैसे कि संयुक्त निगरानी समितियों का गठन, वास्तविक समय में संचार के लिए हॉटलाइन की स्थापना, और स्थानीय स्तर पर सैन्य कमांडरों के बीच त्वरित समन्वय के लिए प्रोटोकॉल।
इस दौरान राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा भी उठाया और स्पष्ट किया कि हालिया ऑपरेशन सिंदूर इस विषय पर भारत की "सैद्धांतिक स्थिति" को दर्शाता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत आतंकवाद के प्रति किसी भी तरह की नरमी नहीं बरतेगा। बैठक के बाद राजनाथ सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, "किंगदाओ में SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जुन से मुलाकात की। द्विपक्षीय संबंधों से जुड़े विषयों पर रचनात्मक और भविष्य की दृष्टि से चर्चा हुई। करीब छह साल बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा के पुनः आरंभ होने पर प्रसन्नता जाहिर की। दोनों देशों के लिए आवश्यक है कि इस सकारात्मक गति को बनाए रखें और द्विपक्षीय संबंधों में नई जटिलताओं को टालें।"
राजनाथ ने भेंट की मधुबनी पेंटिंग
राजनाथ सिंह ने इस अवसर पर बिहार की पारंपरिक मधुबनी पेंटिंग भी भेंट की, जो मिथिला क्षेत्र की एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। चीन की ओर से जारी आधिकारिक रीडआउट के अनुसार, भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह चीन के साथ किसी भी टकराव की स्थिति नहीं चाहता और आपसी संवाद और विश्वास को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि भारत सरकार की ओर से अब तक इस बैठक पर औपचारिक बयान नहीं आया है।
यह बैठक ऐसे समय हुई है जब भारत ने SCO के उस साझा दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, जो आतंकवाद पर भारत की सख्त नीति को कमजोर करता। दस्तावेज में 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का कोई उल्लेख नहीं किया गया था, जिसमें पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने 26 लोगों की हत्या की थी। वहीं, चीन और पाकिस्तान ने दस्तावेज में बलूचिस्तान का जिक्र कर अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर निशाना साधने की कोशिश की।