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सरकारें नहीं बन सकती हैं जज और जूरी, सुप्रीम कोर्ट ने किया न्याय; CJI गवई ने क्यों कही ये बात?

भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस बी आर गवई इटली के मिलान में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। अपने वक्तव्य के दौरान उन्होंने कहा है कि कार्यपालिका कभी भी न्यायपालिका का काम नहीं कर सकती। इस संबंध में उन्होंने SC के एक अहम फैसले का हवाला दिया।

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तानFri, 20 June 2025 09:00 AM
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सरकारें नहीं बन सकती हैं जज और जूरी, सुप्रीम कोर्ट ने किया न्याय; CJI गवई ने क्यों कही ये बात?

Justice BR Gavai: भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस बी आर गवई ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का जिक्र करते हुए कहा है कि सरकारें कभी न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाने में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर जोर देते हुए उच्चतम न्यायालय के बुलडोजर जस्टिस पर रोक लगाने के फैसले का हवाला दिया। जस्टिस गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि कार्यपालिका कभी न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है, और सरकारें जज और जूरी नहीं बन सकतीं।

मुख्य न्यायधीश इटली के मिलान में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। उन्हें ‘सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने संविधान की भूमिका’ विषय पर संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया था। इस दौरान CJI गवई ने गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों को न्याय दिलाने में पिछले 75 सालों में सर्वोच्च न्यायालय के योगदान पर चर्चा करते हुए बताया कि शीर्ष अदालत ने हाल ही में "बुलडोजर जस्टिस" पर रोक लगाने का अहम फैसला सुनाया था।

अनुच्छेद 21 का जिक्र

जस्टिस गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कार्यपालिका को जज और जूरी बनने से रोक दिया। गवई सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का जिक्र कर रहे थे, जिसमें सरकार को कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार कर आरोपियों के घरों को मनमाने ढंग से गिराने से रोकने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि सरकार का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 1970 के दशक के बाद से उच्चतम न्यायालय ने राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का हवाला देकर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ की व्याख्या को काफी हद तक व्यापक बना दिया। न्यायालय ने माना कि जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।

समाज में बराबरी के बिना विकसित होने का दावा नहीं

मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि समाज में बराबरी के बिना कोई भी देश विकसित होने का दावा नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, “समाज के बड़े हिस्से को हाशिए पर रखने वाली असमानताओं को ठीक किए बिना कोई भी राष्ट्र असल में प्रगतिशील या लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता। दूसरे शब्दों में, सामाजिक आर्थिक न्याय स्थिरता, सामाजिक सामंजस्य और सतत विकास के लिए एक व्यावहारिक आवश्यकता है।”

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