'आइए, बैठकर बात करते हैं', चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को क्यों बुलाया
आयोग के सूत्रों ने बताया कि फुटेज साझा करने से मतदाताओं की पहचान आसानी से हो सकती है, जिससे उन्हें दबाव, भेदभाव या धमकी का सामना करना पड़ सकता है। ईसीआई ने यह भी कहा कि सीसीटीवी फुटेज केवल आंतरिक मैनेजमेंट के लिए है।
निर्वाचन आयोग ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धांधली के आरोपों पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया है। सूत्रों के अनुसार, ईसीआई ने 12 जून को राहुल को ईमेल के जरिए पत्र भेजा था, जो उनके निवास पर भी प्राप्त हुआ। कांग्रेस नेता ने हाल ही में चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं, जिसमें मतदान केंद्रों की वीडियो फुटेज और तस्वीरों को सुरक्षित रखने की अवधि को 45 दिनों तक सीमित करने के निर्देश का हवाला दिया गया। राहुल ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के निर्वाचन क्षेत्र नागपुर दक्षिण पश्चिम में मतदाता सूची में 5 महीनों में 8% की वृद्धि का दावा किया है, जिसे उन्होंने वोट चोरी करार दिया।
राहुल गांधी ने एक्स पर दावा किया कि कुछ बूथों में 20-50% मतदाताओं की वृद्धि हुई और बूथ लेवल ऑफिसर्स ने अज्ञात व्यक्तियों की ओर से वोट डालने की सूचना दी। उन्होंने कहा कि मीडिया ने बिना सत्यापित पते वाले हजारों मतदाताओं का खुलासा किया है। राहुल ने मशीन से पढ़ने लायक डिजिटल मतदाता सूची और सीसीटीवी फुटेज को तुरंत जारी करने की मांग की है। ईसीआई ने गांधी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग की वीडियो या सीसीटीवी फुटेज साझा करना मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है।
आरोपों पर आयोग का क्या तर्क
आयोग के सूत्रों ने बताया कि फुटेज साझा करने से मतदाताओं की पहचान आसानी से हो सकती है, जिससे उन्हें दबाव, भेदभाव या धमकी का सामना करना पड़ सकता है। ईसीआई ने यह भी स्पष्ट किया कि सीसीटीवी फुटेज केवल आंतरिक मैनेजमेंट के लिए है। इसे 45 दिनों तक रखा जाता है, जो चुनाव याचिका दायर करने की अवधि के तहत है। राहुल ने ईसीआई पर चुप्पी साधने या मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहा कि ये छिटपुट खामियां नहीं, बल्कि वोट चोरी का मामला है। उन्होंने दावा किया कि आयोग का रवैया इसे स्वीकार करने जैसा है। ईसीआई ने अपने बचाव में कहा कि फुटेज साझा करने की मांग लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा के नाम पर की जा रही है, लेकिन यह वास्तव में मतदाताओं के हितों के खिलाफ है। इसका उद्देश्य संदिग्ध है।