12 दिनों की जंग में झूठ-सच के दावे हजार, ईरान-इजरायल में किसे कितना नफा और नुकसान
ईरान और इजरायल के बीच 12 दिन चले भीषण युद्ध के बाद अब दोनों देश अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। युद्ध के दौरान ईरान और इज़रायल दोनों में बिजली, पानी और चिकित्सा सेवाओं पर गंभीर असर पड़ा है। किसे इस जंग में ज्यादा नुकसान हुआ?

मध्य पूर्व एक बार फिर जंग के मुहाने पर खड़ा है। ईरान और इज़रायल के बीच जारी 12 दिन की खूनी जंग के बाद भले ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संघर्षविराम की घोषणा की हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत अब भी गोलियों और मिसाइलों की गूंज से जूझ रही है। दोनों देश अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन मानवता और बुनियादी ढांचे का जो नुक़सान हुआ है, उसने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया है।
ईरान को कितना नुकसान?
इज़रायली एयरस्ट्राइक्स में ईरान का सैन्य और नाभिकीय ढांचा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ। अंतरराष्ट्रीय मीडिया के मुताबिक, 12 दिनों में ईरान ने 600 से 900 लोगों की जान गंवाई, जिनमें IRGC कमांडर, वैज्ञानिक और नागरिक शामिल हैं। 3,000 से अधिक लोग घायल हुए। अमेरिकी और इज़रायली हमलों में फोर्दो, इस्फ़हान और नतांज़ जैसे संवेदनशील परमाणु स्थलों को निशाना बनाया गया। 14 वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिकों और खुफिया अधिकारियों की मौत की पुष्टि ईरानी मीडिया ने की है। तेहरान और उत्तर ईरान में हुए हमलों से लाखों नागरिकों को विस्थापन का सामना करना पड़ा।
ईरान का जवाबी हमला
ईरान ने इज़रायल पर 450 से अधिक मिसाइल और ड्रोन हमले किए। इज़रायल ने स्वीकार किया कि 28 से 63 लोगों की मौत हुई, जबकि 600 से 3,200 लोग घायल हुए। तेल अवीव, हाइफ़ा, बेर्शेबा और रिशत लेजिओन जैसे शहरों में हमले हुए। सबसे घातक हमला बेर्शेबा के सोरोका अस्पताल पर हुआ, जिसमें दर्जनों घायल हुए और स्वास्थ्य सेवाएं ठप पड़ गईं।
दोनों के अपनी 'जीत' के दावे
इज़रायल ने कहा कि उसने ईरान की सैन्य क्षमताओं को 30% तक नष्ट कर दिया है और उसकी परमाणु योजना पर गहरा प्रभाव डाला है। उधर, ईरान ने दावा किया कि उसके मिसाइल हमलों से इज़रायल के तेल भंडार, सैन्य हवाई पट्टियां और साइबर इन्फ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान हुआ है।दोनों सरकारों ने आधिकारिक बयान जारी कर अपनी-अपनी जीत का एलान किया, हालांकि स्वतंत्र विश्लेषकों के अनुसार दोनों पक्षों को गंभीर सामरिक और राजनीतिक नुकसान हुआ है।
विवादास्पद सीज़फायर
12 दिनों की जंग के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 23 जून को घोषणा की कि उन्होंने संघर्षविराम लागू करवा दिया है। लेकिन कुछ ही घंटों बाद तेहरान और उत्तर ईरान में धमाकों की खबरें आईं, जिससे यह साफ हो गया कि सीज़फायर कागज़ों तक ही सीमित रहा। ट्रंप ने इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को फोन कर हमले रोकने को कहा। नेतन्याहू ने जवाब दिया कि “ईरानी उल्लंघन के जवाब में कार्रवाई जरूरी थी।”
कितना नफा और नुकसान
युद्ध के दौरान ईरान और इज़रायल दोनों में बिजली, पानी और चिकित्सा सेवाओं पर गंभीर असर पड़ा है। ईरान में लाखों लोग घर छोड़ने को मजबूर हुए। कई देशों ने अपने नागरिकों को निकालने के लिए आपात निकासी अभियान चलाए। भारत ने "ऑपरेशन सिंधु" के तहत अपने सैकड़ों नागरिकों को तेहरान से सुरक्षित निकाला।
इज़रायल को रणनीतिक बढ़त तो मिली, लेकिन आर्थिक और जनहानि के आंकड़े उसकी 'जीत' को संदिग्ध बनाते हैं। उधर, ईरान को सबसे भारी मानव संसाधन और वैज्ञानिक नुकसान हुआ, लेकिन उसकी जवाबी क्षमता को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नोट किया गया।
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