बड़ा हो कर भी मां-बाप के साथ सोता है बच्चा? ध्यान रहे लग सकती हैं ये 5 बुरी आदतें!
कई बार पेरेंट्स ये सोचकर बच्चों को अपने पास सुला लेते हैं कि वो अकेले डरेंगे या रोएंगे। एक उम्र तक तो ये ठीक है लेकिन जब ये आदत लंबी चलने लगती है, तो इसके कई दुष्परिणाम सामने आने लगते हैं।

छोटे बच्चों का पेरेंट्स के साथ सोना बहुत आम बात है। एक उम्र तक तो ये ठीक है लेकिन जब ये आदत लंबी चलने लगती है, तो इसके कई दुष्परिणाम सामने आने लगते हैं। शुरुआत में ये बच्चों को सुरक्षा और प्यार का एहसास देता है, लेकिन धीरे-धीरे इस वजह से बच्चों का मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास प्रभावित होता है। कई बार पेरेंट्स ये सोचकर बच्चों को अपने पास सुला लेते हैं कि वो अकेले डरेंगे या रोएंगे, लेकिन पेरेंट्स का ये फैसला बच्चे के लिए सही नहीं है। पेरेंट्स के साथ सोने की बच्चों की आदत उनके अंदर कुछ बुरी आदतें विकसित कर सकती हैं। चलिए जानते हैं पेरेंट्स के साथ सोने से बच्चे के अंदर कौन सी बुरी आदते आ सकती हैं।
आत्मनिर्भरता की कमी
जब बच्चा हमेशा पेरेंट्स के साथ सोता है, तो वो खुद पर भरोसा करना नहीं सीख पाता। उसे हर समय यह महसूस होता है कि उसे अकेले नींद नहीं आ सकती या वह अकेला सुरक्षित नहीं है। ये आत्मनिर्भरता की कमी है। आगे चलकर बच्चा छोटी-छोटी चीजों में भी मदद चाहता है और कोई भी काम अकेले करने से डरने लगता है। बच्चे की इस आदत की वजह से उसे स्कूल हॉस्टल या किसी नए माहौल में एडजस्ट करने में बहुत प्रॉब्लम होती है।
नींद की क्वालिटी पर असर
बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए उन्हें प्रॉपर नींद लेना बहुत जरूरी है। लेकिन जब बच्चे पेरेंट्स के साथ सोते हैं, तो अक्सर उनकी नींद में बाधा पड़ती है। पेरेंट्स की देर से सोने की आदत है या उन्हें देर रात तक टीवी या मोबाइल चलाने की आदत है, तो इसकी वजह से बच्चे की स्लीप साइकिल भी डिस्टर्ब होती है। ऐसे में जब बच्चे की नींद नहीं पूरी होती, तो इससे उसे पूरे दिन थकान लगी रहती है, जिसका असर उसके शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है।
डर और असुरक्षा की भावना बढ़ना
जब बच्चे बड़े होने के बाद भी पेरेंट्स के साथ ही सोते रहते हैं तो उनके मन में डर और असुरक्षा की भावना बढ़ने लगती है। ऐसे बच्चे अक्सर अकेले कमरे में जाने से या अंधेरे में सोने से घबराने लगते हैं। इसकी वजह से धीरे-धीरे बच्चा मानसिक रूप से भी कमजोर होने लगता है और उसका कॉन्फिडेंस भी कम होने लगता है।
प्राइवेसी की समझ ना होना
जब कोई बच्चा पेरेंट्स के साथ सोता है तो उसे खुद के और दूसरों के पर्सनल स्पेस का एहसास नहीं हो पाता है। ऐसे बच्चे को किसी की प्राइवेसी की भी कोई समझ नहीं होती है। ऐसा बच्चा खुद तो दूसरों पर डिपेंडेंट रहता ही है, साथ ही यह भी कभी नहीं समझ पाता है कि हर व्यक्ति का अपना एक स्पेस है। इस वजह से कई बार ऐसे बच्चों को फ्यूचर में सोशली एडजस्ट होने में प्रॉब्लम होने लगती है।
दूसरे बच्चों से तुलना और हीन भावना
जो बच्चा अपने पेरेंट्स के साथ सोता हैं, ऐसा बच्चा जब स्कूल या किसी सोशल ग्रुप में दूसरे बच्चों से सुनता है कि वे अकेले सोते हैं, तो वह खुद को कमजोर या अलग महसूस कर सकता है। इससे उसमें हीन भावना आने लगती है। वो बच्चा खुद को कमजोर समझने लगता है, जिसका असर उसके आत्मसम्मान पर भी पड़ता है।
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