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पड़ोसी देश की अब नई करतूत ‘कृषि आतंकवाद’, फंगस तस्करी करते 2 गिरफ्तार; क्या है ये दुर्लभ केस

फ्यूजेरियम ग्रैमिनीरम एक बायोलॉजिकल पैथोजेन यानी फंगस है, जो एक तरह के सूक्ष्मजीव होते हैं जो इंसानों, पशुओं और पौधों सहित अन्य जीवों में रोग पैदा कर सकते हैं या उन्हें हानि पहुंचा सकते हैं। इससे पूरी फसल चौपट हो सकती है।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 4 June 2025 06:10 PM
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पड़ोसी देश की अब नई करतूत ‘कृषि आतंकवाद’, फंगस तस्करी करते 2 गिरफ्तार; क्या है ये दुर्लभ केस

पड़ोसी देश चीन की एक नई करतूत सामने आई है। उसके दो नागरिकों को अमेरिका की केंद्रीय जांच एजेंसी FBI ने खतरनाक फंगस की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया है। ये दोनों चीनी नागरिक खतरनाक फंगस के जरिए अमेरिका में कृषि आतंकवाद फैलाने की फिराक में थे। FBI ने जिन दो लोगों को गिरफ्तार किया है और जिला अदालत में पेश किया है, उनमें 33 साल की जियान और 34 साल का उसका ब्वॉयप्रेंड लियू शामिल है। इन दोनों पर साजिश रचने, अमेरिका में तस्करी करने, झूठे बयान देने और वीजा धोखाधड़ी करने के आरोप हैं।

FBI ने इसे गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा करार दिया है और चेतावनी दी है कि खाद्य आपूर्ति को निशाना बनाने वाले ये जैविक एजेंट अर्थव्यवस्थाओं को पंगु बना सकते हैं और लाखों लोगों को मौत के मुंह में ढकेल सकते हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर ये कृषि आतंकवाद क्या है, और फंगस जैसे सूक्ष्म जीव से इतना बड़ा खतरा कैसे पैदा हो गया है?

क्या है कृषि आतंकवाद?

कृषि आतंकवाद को अंग्रेजी में Agroterrorism कहा जाता है, जो Agricultural Terrorism का छोटा रूप है। इससे तात्पर्य किसी भी देश की खाद्य आपूर्ति या कृषि क्षेत्र में कीटों, बीमारियों या रोगाणुओं को जानबूझकर प्रवेश कराना है, जिसका उद्देश्य आर्थिक व्यवधान पैदा करना, खाद्यान्न की कमी या सामाजिक अशांति पैदा करना है। दरअसल, ये फंगस फसलों में रोग पैदा करते हैं, जिसकी वजह से फसल चौपट हो सकती है और कृषि उत्पादन नगण्य हो सकता है। इससे कोई भी देश आर्थिक रूप से पंगु बन जा सकता है और वहां के लोगों के सामने भुखमरी जैसी स्थिति आ सकती है।

दशकों से चली आ रहे पारंपरिक आतंकवाद के विपरीत, इसका निशाना नागरिक या बुनियादी ढांचा नहीं, बल्कि पौधे, पशुधन और महत्वपूर्ण एग्रो सिस्टम हैं। खाद्यान्न आपूर्ति श्रृंखलाओं की वैश्विक कड़ी की वजह से इसका असर स्थानीय बाजार से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हो सकता है। इसका प्रभाव एक देश से कई देशों के अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर देखने को मिल सकता है। दिलचस्प बात यह भी है कि चीनी नागरिकों की ये करतूत ऐसे वक्त पर सामने आई है, जब चीन और अमेरिका ट्रेड वॉर में उलझे हुए हैं और दोनों देश एक-दूसरे को पटखनी देने को बेचैन हैं।

अमेरिकी अधिकारियों ने क्या कहा?

मंगलवार को अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया कि दोनों चीनी नागरिकों ने अमेरिका में 'फ्यूजेरियम ग्रैमिनीरम' नामक फंगस की तस्करी की है जिसे वैज्ञानिक कृषि आतंकवाद का हथियार बताते हैं। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, जियान और उसके बॉयफ्रेंड लियू को कथित तौर पर अपने रिसर्च के लिए चीनी सरकार से फंडिंग मिल रही थी। यह बात भी सामने आई है कि जियान चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की एक वफादार है और उसे इस फंगस पर रिसर्च करने के लिए फंडिंग मिली थी।

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बयान में कहा गया कि लियू एक चीनी यूनिवर्सिटी में काम करता है और वहीं पर वो फ्यूजेरियम ग्रैमिनीरम पर रिसर्च कर रहा है, जबकि जियान मिशिगन यूनिवर्सिटी में रिसर्चर है। लियू ने पूछताछ में बताया है कि वह भी मिशिगन यूनिवर्सिटी में अपनी गर्लफ्रेंड के साथ इस पर रिसर्च करना चाहता था। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि फ्यूजेरियम ग्रैमिनियरम नामक फंगस जो फसल को संक्रमित करता है, पहले से ही उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में मौजूद है, लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार ले जाना अपराध है। इसे नए क्षेत्रों में, या बिना अनुमति के रिसर्च के मकसद से भी कहीं दूसरे वातावरण में ले जाना खतरनाक है क्योंकि इससे फसलों पर विनाशकारी असर पड़ सकते हैं।

1990 के दशक में दंश झेल चुका है अमेरिका

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि यह फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट (जिसे स्कैब भी कहा जाता है) का कारण बनता है, जो फसलों की एक गंभीर बीमारी है और मुख्य रूप से गेहूं, जौ, जई और मकई जैसी अनाज की फसलों को नष्ट करती है। फंगस इन पौधों के फूल वाले हिस्से पर हमला करता है, जिससे पौधों में अनाज नहीं विकसित हो पाता है और पैदावार कम हो जाती है। लेकिन नुकसान यहीं नहीं रुकता, इससे प्रभावित अनाज को खाने से पशुओं और इंसानों को भयानक बीमारी से ग्रस्त कर देता है। अमेरिका में, इस फंगस ने 1990 के दशक में गेहूं और जौ के किसानों को करीब 3 अरब डॉलर से 4 अरब डॉलर तक का नुकसान पहुंचाया था। 1993 और 1998 में भी गेहूं की पैदावार को 50 प्रतिशत तक नुकसान हुआ था। फसल संक्रमण की वजह से किसानों को अपने अनाज को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था।

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