बोले जमुई: ऑनलाइन प्रक्रिया में फंसे मजदूर, सरकारी लाभ दूर
सेंटरिंग मजदूरों की स्थिति चिंताजनक है। ये मजदूर श्रम कार्ड, स्वास्थ्य सुरक्षा और स्थायी आय के बिना जीवन यापन कर रहे हैं। सरकारी योजनाएं कागजों तक सीमित हैं और अधिकतर मजदूर बिचौलियों के शिकार हैं।...

प्रस्तुति : संजीव कुमार सिंह
सेंटरिंग मजदूर निर्माण कार्य की रीढ़ माने जाते हैं। ये वही लोग हैं, जो लोहे की छड़ों और भारी पटरियों के बीच दिन-रात पसीना बहाकर मकानों की नींव से लेकर छत तक खड़ी करते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि उनकी अपनी जिंदगी बेहद कमजोर बुनियाद पर टिकी होती है। न उनके पास श्रम कार्ड है, न स्वास्थ्य सुरक्षा और न ही स्थायी आय का कोई ठोस जरिया। इनमें से अधिकांश मजदूर अनपढ़ या कम शिक्षित होते हैं, जिन्हें सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होती। ऊपर से बिचौलियों की लूट, सरकारी तंत्र की अनदेखी और जागरूकता की भारी कमी ने उन्हें समाज के हाशिए पर ला खड़ा किया है। उनके बच्चे भी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ते जा रहे हैं। हिन्दुस्तान के बोले जमुई संवाद के दौरान मजदूरों ने कहा कि सरकार की योजनाएं केवल कागज तक सीमित रह जाती हैं। न कोई बताने वाला है, न ही गांव में कभी कोई अफसर आता है।
सेंटरिंग मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या है श्रम कार्ड का न होना। कोई भी पक्का निर्माण कार्य करने वाला मजदूर कानूनन असंगठित क्षेत्र का श्रमिक माना जाता है और उसे श्रम कार्ड बनवाने का अधिकार है। इस कार्ड के माध्यम से वह पेंशन, बीमा, बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा और आवास जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकता है। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि अधिकांश सेंटरिंग मजदूरों के पास श्रम कार्ड ही नहीं है। उनका कहना है कि वे सालों से ईंटा-गारा कर रहे हैं, लेकिन कभी किसी ने यह बताया ही नहीं कि श्रम कार्ड क्या होता है, इसका क्या लाभ है और यह कैसे बनता है। सरकार की अधिकांश योजनाएं अब डिजिटल हो चुकी हैं, लेकिन मजदूरों की जिंदगी आज भी लोहे और गारे के बीच उलझी हुई है। उन्हें न मोबाइल ऐप्स की जानकारी है, न ही इंटरनेट की सुविधा। ऐसे में जब कोई सरकारी सुविधा ऑनलाइन आवेदन पर निर्भर हो, तो ये मजदूर स्वतः ही उससे वंचित रह जाते हैं।
जहां कुछ मजदूरों को श्रम कार्ड की जानकारी मिली भी है, वहां एक नई समस्या सामने आ रही है-बिचौलियों की भूमिका। कई मजदूरों ने बताया कि श्रम कार्ड बनवाने के नाम पर कुछ लोग उनसे एक हजार से 1500 रुपये तक की मांग करते हैं। इतनी बड़ी राशि जुटा पाना उनके लिए बेहद कठिन होता है, क्योंकि वे दिनभर की दिहाड़ी में महज तीन सौ से पांच सौ रुपये ही कमा पाते हैं। अगर सरकार वास्तव में इन मजदूरों तक अपनी योजनाओं का लाभ पहुंचाना चाहती है, तो उसे गांव और प्रखंड स्तर पर श्रम पंजीकरण शिविर लगाकर यह प्रक्रिया नि:शुल्क करनी चाहिए, ताकि बिचौलियों की कोई भूमिका ही न रह जाए। अधिकांश सेंटरिंग मजदूरों के पास राशन कार्ड तो है, लेकिन वे आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। यह योजना हर पात्र परिवार को सालाना पांच लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा देने का दावा करती है, लेकिन आयुष्मान कार्ड के बिना यह सब एक सपने जैसा ही रह जाता है।
सरकारी स्कूलों में नहीं होती अच्छी पढ़ाई
सेंटरिंग मजदूरों के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा सकें। अधिकांश मजदूरों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही जाते हैं, जहां पढ़ाई का स्तर काफी कमजोर होता है। मजदूरों का कहना है- हम भी चाहते हैं कि हमारे बच्चे आगे बढ़ें, लेकिन सरकारी स्कूलों में तो सिर्फ नामांकन भर है। मास्टर साहब आते हैं और चले जाते हैं, पढ़ाई ढंग से नहीं होती।
मजदूरों को आर्थिक संकट का करना पड़ रहा सामना
जमुई जिले में 28 से 30 रुपये प्रति स्क्वायर फीट की दर से सेंटरिंग का काम किया जाता है। एक मजदूर ने बताया- हम दिनभर नीचे से ऊपर तक पटरा और तख्ता उठाते हैं, लेकिन मेहनताना सिर्फ चार सौ रुपये मिलता है। यह हमारे परिश्रम के एक-तिहाई के बराबर भी नहीं है। सेटिंग का काम भी नियमित नहीं होता। महीने में 10-15 दिन काम नहीं मिलता, ऐसे में परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो जाता है। दो वक्त की रोटी जुटाना भी चुनौती बन जाता है। मजदूर बताते हैं- पटरा उठाना और लगाना जोखिम भरा काम है, लेकिन ठेकेदार हमें न सेफ्टी बेल्ट देता है, न हेलमेट और न ही दस्ताने। कई बार हाथ कट जाता है या ऊपर से गिर भी जाते हैं। इलाज के पैसे भी हमें खुद ही देने पड़ते हैं।
इनकी भी सुनिए
शायद ही किसी मजदूर को पता है कि सरकार उनके लिए कोई योजना चला रही है। हमने तो कभी किसी अधिकारी को यहां आकर जानकारी देते नहीं देखा।
-रूपेश
योजनाएं बनती हैं, लेकिन गांव तक उनकी खबर नहीं पहुंचती। अगर कोई हमें योजना के बारे में बता दे, तो हम खुद जाकर आवेदन करेंगे।
-मुकेश
लोहे की छड़ और गिट्टी-बालू के बीच काम बहुत मेहनत वाला होता है, लेकिन मजदूरी सीमित है। सरकार गांव में श्रम कार्ड के लिए शिविर लगवाए।
-मन्नू मांझी
जब हम मजदूर बीमार पड़ते हैं तो सबसे पहले काम छूटता है। इलाज का खर्च खुद उठाना पड़ता है। सरकारी अस्पताल में लंबी लाइन होती है।
-मनोज मांझी
मेरे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं क्योंकि प्राइवेट स्कूल की फीस देना संभव नहीं। लेकिन सरकारी स्कूलों में पढ़ाई बहुत कमजोर है।
-भुवनेश्वर मांझी
सरकार मजदूरों के लिए कई योजनाएं चलाती है, ये तो सुना है। लेकिन हमें यह ही नहीं पता कि कौन-सी योजना हमारे
लिए है।
- पवन कुमार चंद्रवंशी
जब मैंने श्रम कार्ड बनवाने की सोची तो साइबर कैफे वाले ने 1200 रुपये मांग लिए। इतने पैसे हमारे पास कहां होते हैं?
- योगेंद्र मांझी
सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब बीमार हो जाते हैं। सरकारी अस्पताल में समय पर इलाज नहीं मिलता और प्राइवेट अस्पताल महंगे हैं।
- शंकर मंडल
सरकार हमें लेबर कार्ड, आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड और बीमा जैसी सुविधाएं दे। लेबर कार्ड मिलने से कुछ समस्याएं हल होंगीं।
-सुभाष मंडल
मैं पिछले 10 साल से सेंटरिंग का काम कर रहा हूं, लेकिन अबतक किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला। न जीवन बीमा, न आयुष्मान कार्ड, न पेंशन।
- रविंद्र
मोहल्ले में 50 सेंटरिंग मजदूर हैं, लेकिन किसी के पास श्रम कार्ड नहीं है। जानकारी की कमी और पैसों की तंगी के कारण कोई आगे नहीं बढ़ता।
- बबलू रावत
मेरा सुझाव है कि हर पंचायत में एक स्थायी कर्मचारी हो, जो मजदूरों को योजनाओं की जानकारी दे और आवेदन भरवाए।
- रामबालक पासवान
बिचौलिए हर जगह फैले हैं। कुछ लोग खुद को एजेंट बताकर श्रम कार्ड, राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड बनवाने के नाम पर 1000-1500 रुपये मांगते हैं।
- मिथलेश कुमार पासवान
हम भी चाहते हैं कि हमारे बच्चे डॉक्टर, टीचर, इंजीनियर बनें। लेकिन सरकारी स्कूल का माहौल ठीक नहीं है। एक कमरे में तीन क्लास चलती हैं।
- विपिन मंडल
बरसात में जब साइट पर पहुंचते हैं, तो काम बंद हो जाता है। लौटने में किराया लगता है और काम न होने से आमदनी पर असर पड़ता है।
- राहुल यादव
सेंटरिंग के काम में जोखिम तो है ही, पैसे भी बहुत कम मिलते हैं। ठेकेदार काम तो ज़्यादा करवाते हैं, लेकिन भुगतान समय पर नहीं होता।
- नीतीश कुमार यादव
बोले जिम्मेदार
सेंटरिंग या सीमेंट-जाली निर्माण के कार्य को ‘बिहार लघु उद्यमी योजना’ या ‘राजमिस्त्री प्रशिक्षण योजना’ में शामिल कर लाभ दिलाया जा सकता है।
- मितेश कुमार,उद्योग पदाधिकारी, जमुई
शिकायत
1. अधिकांश सेंटरिंग मजदूरों के पास श्रम कार्ड नहीं है, जिसके कारण वे बीमा, पेंशन और छात्रवृत्ति जैसी सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।
2. श्रम कार्ड बनवाने के नाम पर बिचौलिए 1000 से 1500 रुपये तक की अवैध मांग करते हैं।
3. मजदूर आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं, जिसके चलते बीमारी की स्थिति में उन्हें इलाज का पूरा खर्च खुद उठाना पड़ता है।
4. सरकार की कई योजनाएं हैं, लेकिन मजदूरों को उनकी जानकारी नहीं होती है।
5. सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता बेहद कमजोर है, जिससे मजदूरों के बच्चों का भविष्य संकट में पड़ता जा रहा है।
सुझाव
1. सरकार को चाहिए कि प्रखंड स्तर पर श्रम विभाग की ओर से निःशुल्क पंजीकरण शिविर लगाए जाएं, ताकि सभी मजदूरों को श्रम कार्ड उपलब्ध हो सके।
2. श्रम कार्ड बनवाने के नाम पर पैसे वसूलने वाले दलालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
3. राशन कार्ड धारक मजदूरों को प्राथमिकता के आधार पर आयुष्मान कार्ड जारी किया जाएं।
4. प्रत्येक पंचायत भवन या वार्ड स्तर पर 'मजदूर सहायता काउंटर' स्थापित किया जाए, जहां योजनाओं की जानकारी दी जाए और फॉर्म भरने में सहायता मिले।
5. सरकारी स्कूलों में नियमित निरीक्षण की व्यवस्था हो, शिक्षक की उपस्थिति और पढ़ाई की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाए।
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