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नहीं आ रहे शादी के रिश्ते, अंतिम संस्कार भी चुनौती! बिहार का एक 'पुल' बना कई गांवों की मुसीबत

बिहार के किशनगंज में दल्लेगांव पंचायत में मेची नदी पर बने बिना एप्रोच पुल लोगों के लिए मुसीबत बन गया है। जिसके चलते कई गांवों के बेटे-बेटियों के शादी के रिश्ते नहीं आ रहे हैं। यही नहीं अंतिम संस्कार के लिए भी नदी पार कर कई किमी रेत में चलना पड़ता है।

sandeep हिन्दुस्तान, एक प्रतिनिधि, किशनगंजMon, 23 June 2025 03:44 PM
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नहीं आ रहे शादी के रिश्ते, अंतिम संस्कार भी चुनौती! बिहार का एक 'पुल' बना कई गांवों की मुसीबत

बिहार के किशनगंज जिले के ठाकुरगंज प्रखंड के दल्लेगांव पंचायत में मेची नदी पर बने बिना एप्रोच पुल लोगों को मुंह चिढ़ा रहा है। बिना एप्रोच के बने पुल से स्थानीय ग्रामीणों के लिए सबसे समस्या है। दल्लेगांव पंचायत के दलाले गांव, ,तेलिभिटा, बैगनबाड़ी, भवानीगंज आदि गांव नदी के दूसरे किनारे तरफ है। जिससे स्थानीय ग्रामीणों को भारी समस्या से जूझना पड़ रहा है। पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि गुलाम हसनैन ने बताया कि दल्लेगांव तेलीभीट्टा, भवानीगंज, बेगनबाड़ी को जोड़ने वाली मेची नदी पर 2023 तक पूल सह एप्रोच का निर्माण पूर्ण हो जाना चाहिए था।

अगर पूल का एप्रोच बन जाता तो लोगों को आवागमन में कोई दिक्कत नहीं होता।उन्होंने बताया कि पूल का मांग को लेकर वर्ष 2019 में दल्लेगांव के लोगों ने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया था। इसके बाद प्रशासन की नींद खुली थी। यह मामला स्थानीय मीडिया के द्वारा प्रमुखता से प्रकाशित करने के बाद बिहार सरकार तक पहुंची। फिर सरकार ने पुल बनाने का अलॉटमेंट किया पुल तो बन गया लेकिन आधा अधूरा रह गया।

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दल्लेगांव के मुखिया सोगरा नाहिद ने कहा कि देश आजाद होने का 78 साल के बाद भी आज भी दल्लेगांव पंचायत मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाया है। उन्होंने बताया कि पूल पूर्ण नहीं होने नदी के उस पार जाने के लिए का गांव जाने के लिए आज भी नाव एवं चचरी से लोग उस पार आते जाते हैं जिस वजह नदी के उस पार के गांव के बेटा बेटियों का समय पर और अच्छे घर मे शादी का रिश्ता नही होता है क्योंकि नदी उन गांव के विकास की बाधा बनी हुई है इस वजह से बेटीयों का रिश्ता नहीं आता है।

नदी के उस पार के गांव की गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराने के लिए गर्भवती महिलाओं को नाव से पार कर अस्पताल लेजाना पड़ता है जिस वजह से कई बार गर्भवती महिला की जान जोखिम में पड़ जाती है उसके अलावा अगर किसी अचानक तबीयत बिगड़ी गई तो नाव के साहरे हॉस्पिटल पहुंचाया जाता है।नाव से पार करने से देरी के वजह से कई मरीजों को अस्पताल लेजाने में देर हो जाने से रास्ते में ही मौत हो गई है।

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दल्लेगांव पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि सह एआईएमआईएम सीमांचल युवा प्रभारी गुलाम हसनैन ने बताया कि दल्लेगांव पंचायत आज भी विकास की रोशनी नही पहुंची है।। नेपाल सीमा से सटे दल्ले गांव पंचायत के कई गांव जहां मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है वहीं विकास का सबसे बड़ी बाधा मेची नदी पर एप्रोच बगैर पुल बना हुआ है।बाढ़ बरसात में जनजीवन पूरी तरह प्रभावित होता है

वहीं गांव की सबसे बड़ी समस्या मैय्यत (मृतक)को कब्रिस्तान में दफनाने समय सामने आती है। उन्होंने बताया कि कब्रिस्तान नदी पार दूसरे किनारे स्थित है।उन्होंने बताया कि हाल के दिनों गांव में मैय्यत हो गई थी। तथा नदी में पानी बढ़ने के वजह से मैय्यत को परिजनो द्वारा नाव से नदी पार करना पड़ा। इसके बाद रेत पर करीब आधा किलोमीटर पैदल चलकर जनाजा ले जाना पड़ा है।

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नदी की तेज धारा शव यात्रा को और भी कठिन बना देती है। नदी पर पुल चालू नही होने के वजह से कब्रिस्तान तक पहुंचने में लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह समस्या सिर्फ मैय्यत को दफनाने तक ही सीमित नहीं है। शादी-विवाह और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में भी लोगों को इसी तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। आजादी के 78 साल बाद भी यह गांव विकास की मुख्यधारा से दूर है। जबकि उक्त दल्ले गांव पुल सह एप्रोच निर्माण कार्य जनवरी 2023 तक पूर्ण कर लिया जाना था।

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