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बेटा-बहू, बेटी-दामाद; नीतीश-कुशवाहा को छोड़ दें तो नेता फैक्ट्री बना है सबका परिवार, खुद गिन लीजिए

बिहार की राजनीति में परिवारवाद सिर्फ लालू यादव, चिराग पासवान या जीतन राम मांझी तक सीमित नहीं है। राज्य के कोने-कोने में पहले खुद, फिर बीवी या बच्चे और रिश्तेदारों को सांसद-विधायक बनाने वाले नेता फैले हुए हैं।

Ritesh Verma लाइव हिन्दुस्तान, पटनाTue, 24 June 2025 03:34 PM
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बेटा-बहू, बेटी-दामाद; नीतीश-कुशवाहा को छोड़ दें तो नेता फैक्ट्री बना है सबका परिवार, खुद गिन लीजिए

नीतीश कुमार सरकार द्वारा जीतन राम मांझी और अशोक चौधरी के दामाद और चिराग पासवान के बहनोई को आयोग और बोर्ड में मनोनीत करने से राजनीति में नेताओं के परिवारवाद पर बहस जरूर छिड़ी है। लेकिन, दुर्भाग्य से सवाल उठाने वालों की पहचान भी परिवार है। बिहार में अभी पहली पंक्ति के प्रभावी नेताओं में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को छोड़ दें तो कोई ऐसा नजर नहीं आता है, जो राजनीति में परिवार के विस्तार में ना जुटा हो। ललन सिंह, गिरिराज सिंह, मुकेश सहनी या नित्यानंद राय जैसे नेता कम हैं, जो खुद के दम पर बने।

जज के बच्चे जज, अफसर के बच्चे अफसर, डॉक्टर के बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर के बच्चे इंजीनियर और कलाकारों के बच्चे कलाकर बन सकते हैं तो नेताओं के बच्चे नेतागिरी क्यों ना करें, यह सवाल भी जायज है। बच्चों के लिए मां-बाप के पेशे को अपनाना शायद कम तकलीफदेह होता है। सफल होने की संभावना ज्यादा होती है। और सबसे बड़ी बात, बच्चों को उस पेशे के माहौल और परिवेश की आदत लग चुकी होती है। इसलिए बिहार में तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, सम्राट चौधरी जैसे नेताओं के बीच नीतीश के बाद कौन का जवाब देने की होड़ लगी है। इस रेस में आज कोई नीतीश या लालू की तरह पहली पीढ़ी का नेता नहीं है, जिनके पिता का नाम पूछना पड़े।

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तो गिनती शुरू करते हैं उनकी, जिनके परिवार से किसी एक ने राजनीति में जमने के बाद फैमिली को बढ़ाना शुरू कर दिया। इस लिस्ट में विजय कुमार चौधरी, नितिन नबीन जैसे नेताओं को नहीं रखा जा रहा, जो पिता के निधन के बाद उप-चुनाव से राजनीति में आए। भारत भूषण मंडल, ललन यादव और राणा रणधीर सिंह जैसे विधायकों के नाम भी नहीं हैं, जो पिता की विरासत से आ गए हैं लेकिन मजबूती से जगह नहीं बना पाए हैं। जेडीयू नेता और मंत्री शीला मंडल जैसों के नाम भी नहीं हैं, जिनके चचेरे ससुर धनिक लाल मंडल मंत्री व गवर्नर रहे, लेकिन चचेरे जेठ भारत भूषण मंडल राजद विधायक हैं।

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लिस्ट में निखिल कुमार, उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह या चंद्रिका राय जैसों के भी नाम नहीं मिलेंगे जो पारिवारिक राजनीति से स्थापित हुए, लेकिन फिलहाल किसी सदन में नहीं हैं। अशोक कुमार सिंह या मनोज कुमार शर्मा जैसे पूर्व विधायकों के नाम भी नहीं मिलेंगे, जो राजनीति में पिता के नाम पर आए लेकिन फिलहाल विधानसभा से बाहर हैं। लिस्ट में वो नाम भी नहीं मिलेंगे, जिनके परिवार से पहले कौन सांसद या विधायक बना था, ये आपको पता हो, लेकिन हम उस सूचना तक नहीं पहुंच पाए हों। सूची में उनको रखने की कोशिश है, जिन्हें उनके पिता, मां, ससुर, सास, पति, पत्नी, भाई, बहनोई, साला जैसे करीबी रिश्तेदारों ने राजनीति में उतारा, स्थापित किया और जगह बना चुके हैं।

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नीतीश के बेटे निशांत कुमार को जेडीयू में सक्रिय करने की कोशिश चल रही है लेकिन मुख्यमंत्री खुद इस पर ब्रेक लगाकर बैठे हैं क्योंकि वो परिवारवाद के खिलाफ हैं। लालू और राबड़ी देवी को नीतीश इस पर घेरते रहते हैं। रालोमो अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के दो बच्चे हैं। बेटा दीपक कुशवाहा और बेटी प्रीतिलता कुशवाहा। दोनों को राजनीति से मतलब नहीं है। बेटे का छोटा-मोटा व्यापार है और बेटी सरकारी नौकरी करती हैं।

लालू यादव परिवार: राबड़ी देवी, मीसा भारती, रोहिणी आचार्या, तेज प्रताप यादव, तेजस्वी यादव

बिहार की राजनीति में सबसे बलशाली परिवार लालू यादव का है। इसमें उनके साले सुभाष यादव और साधु यादव या उन दोनों के कुनबे को नहीं जोड़ रहे हैं। पहले लालू खुद सीएम बने। फिर पत्नी राबड़ी देवी को सीएम बनाया। राबड़ी अभी विधान परिषद में हैं। बड़ी बेटी मीसा भारती को पहले राज्यसभा भेजा और हारते-हारते वो इस बार लोकसभा भी जीत गईं। लालू को किडनी देने वाली बेटी रोहिणी आचार्या को सारण से लोकसभा चुनाव लड़ाया गया, लेकिन हार गईं। चर्चा विधानसभा लड़ने की शुरू हो गई है।

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बड़े बेटे तेज प्रताप यादव दो बार विधायक और मंत्री बने। अभी एक लड़की से कथित संबंध बाहर आने के बाद परिवार और पार्टी से निकाल दिए गए हैं। छोटे लड़के तेजस्वी यादव पार्टी के सर्वेसर्वा जैसा बन चुके हैं। दो बार डिप्टी सीएम रहे और महागठबंधन के अघोषित सीएम कैंडिडेट हैं। लालू के दो दामाद राजनीतिक घरानों से हैं। हरियाणा में विधायक रहे चिरंजीव राव कांग्रेस के बड़े नेता और मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के बेटे हैं। उत्तर प्रदेश में सपा से सांसद और फिर विधायक बने तेज प्रताप सिंह यादव मुलायम सिंह यादव के पोते हैं। यूपी में ही लालू के एक और दामाद राहुल यादव दो बार चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं पाए। राहुल के पिता जितेंद्र यादव भी चार चुनाव हारे।

रामविलास पासवान परिवार: पशुपति कुमार पारस, चिराग पासवान, अरुण भारती, प्रिंस पासवान, धनंजय पासवान, अनिल कुमार साधु

रामविलास पासवान जब तक सक्रिय रहे तब तक उनके भाई पशुपति कुमार पारस और रामचंद्र पासवान भी चुनाव लड़ते और हारते-जीतते रहे। रामचंद्र के निधन के बाद उनके बेटे प्रिंस को भी लोकसभा पहुंचा दिए। रामविलास के निधन के बाद पार्टी में बंटवारे के बाद पारस केंद्रीय मंत्री बन गए और तब कमजोर चिराग आज बिहार में परिवार के सबसे ताकतवार नेता हैं। 2015 में अलौली से हारे पारस हाजीपुर से एक बार सांसद बनने के बाद चुनाव भी नहीं लड़ पाए। समस्तीपुर सांसद रहे प्रिंस पासवान का भी वही हाल हुआ।

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चिराग पासवान पिता की पारंपरिक सीट हाजीपुर से जीते और पुरानी सीट जमुई से बहनोई अरुण भारती को जिताकर सांसद बनाया। रामविलास की पहली पत्नी के दामाद धनंजय पासवान उर्फ मृणाल पासवान को अभी नीतीश सरकार ने राज्य एससी आयोग का अध्यक्ष बनाया है। धनंजय के साढ़ू अनिल कुमार साधु 2018 में रामविलास के सामने ही लोजपा छोड़ राजद में चले गए थे और चिराग को कोसते रहते हैं।

जीतन राम मांझी परिवार: संतोष सुमन, दीपा मांझी, ज्योति मांझी, देवेंद्र कुमार

कांग्रेस, राजद के रास्ते जेडीयू में पहुंचे जीतनराम मांझी के लिए नीतीश का कुछ समय का कुर्सी छोड़ना अभयदान साबित हो गया। ना सिर्फ राजनीति में पूछ बढ़ी बल्कि हम नाम से पार्टी बनाई तो परिवार के लिए जगह बढ़ती गई। समधन ज्योति मांझी को बाराचट्टी से विधायक बनवाया। बेटे संतोष कुमार सुमन विधानसभा नहीं जीत पाए तो विधान परिषद में भिजवाकर नीतीश सरकार में मंत्री बनवा लिए।

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संतोष सुमन की पत्नी दीपा मांझी भी इमामगंज से उपचुनाव जीतकर विधायक बन गईं। यह सीट जीतनराम मांझी ने गया से सांसद बनने के बाद खाली की थी। दामाद देवेंद्र कुमार राज्य एससी आयोग में उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। सीएम मांझी का पीए बनने से विवाद होने पर देवेंद्र ने इस्तीफा दे दिया था। मांझी की दूसरी पत्नी के बेटे प्रवीण सुमन को इमामगंज से उपचुनाव लड़ने की चाहत थी, लेकिन कई तरह के विवाद में रहने के कारण उनकी राजनीतिक एंट्री नहीं हो पा रही है।

शकुनी चौधरी परिवार: पार्वती देवी, सम्राट चौधरी, रोहित चौधरी

बिहार की राजनीति में कोइरी जाति (कुशवाहा) के कद्दावर नेता रहे शकुनी चौधरी खुद तारापुर से कई बार विधायक और खगड़िया से सांसद रहे। कांग्रेस, समता पार्टी, राजद, जेडीयू और हम में रहे शकुनी जब 1998 में सांसद बने तो पत्नी पार्वती देवी को तारापुर से विधायक बनवाया। राबड़ी सरकार में उनके बेटे सम्राट चौधरी बिना विधायक या विधान पार्षद मंत्री बनाए गए, लेकिन भाजपा नेता सुशील मोदी ने उम्र पर सवाल उठाया तब राज्यपाल ने हटाया। सम्राट राजद, जदयू, हम होते हुए भाजपा पहुंचे हैं और अब बिहार में भाजपा के सबसे मजबूत नेता हैं।

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नीतीश सरकार में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी सीएम रेस में भी गिने जाते हैं। परबत्ता से दो बार विधायक रहे सम्राट 2005 के अक्टूबर वाले चुनाव में जब खुद नहीं लड़ पाए तो भाई राजेश को लड़ाया जो हार गए। शकुनी के तीसरे बेटे रोहित चौधरी जेडीयू में हैं और संभावना है कि उन्हें एनडीए के पक्ष में कुशवाहा वोट को वापस लाने के लिए इस बार तारापुर से विधानसभा का टिकट भी मिल जाए।

दिलकेश्वर राम परिवार: राजेश कुमार

बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और कुटुम्बा के विधायक राजेश कुमार भी दूसरी पीढ़ी के नेता हैं। उनके पिता दिलकेश्वर राम देव विधानसभा से कई बार विधायक और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री रहे। राम फिर कई चुनाव हारे भी। उनके बेटे राजेश कुमार पहली बार 2010 में लड़े और हार गए। ना सिर्फ हारे बल्कि दस हजार से भी कम वोट के साथ तीसरे नंबर पर रहे।

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राजेश कुमार 2015 के विधानसभा चुनाव में ना सिर्फ जीते बल्कि जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन को हराया और पहली बार विधायक बने। 2020 के चुनाव में भी राजेश ने मांझी की पार्टी हम के कैंडिडेट श्रवण भुइंया को हराया। मजे की बात यह कि राजेश से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे अखिलेश प्रसाद सिंह ने अपने बेटे आकाश को सीट और पार्टी बदलकर विधानसभा से लोकसभा तक चुनाव लड़ाया लेकिन कहीं से जीत नहीं मिली।

ललित नारायण मिश्रा परिवार: जगन्नाथ मिश्रा, विजय मिश्रा, नीतीश मिश्रा, ऋषि मिश्रा

बिहार में लंबे समय तक कांग्रेस की राजनीति में दबदबदा रखने वाले ललित नारायण मिश्रा के भाई जगन्नाथ मिश्रा राज्य में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री रहे। ललित नारायण मिश्रा की 1975 में हत्या के बाद पहली बार सीएम बने जगन्नाथ मिश्रा तीन बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। बाद में वो शरद पवार की एनसीपी होते जेडीयू में गए। ललित नारायण मिश्रा के बेटे विजय मिश्रा दरभंगा से एक बार लोकदल के सांसद और जाले विधानसभा सीट से एक बार कांग्रेस और दो बार भाजपा के विधायक रहे।

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2014 में नीतीश सरकार बचाने के लिए विजय मिश्रा ने विधायकी छोड़ी तो जेडीयू ने उनको विधान परिषद में भेजा। उनके बेटे ऋषि मिश्रा 2014 में जाले उपचुनाव जेडीयू से जीते, लेकिन 2015 का चुनाव हार गए। जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा झंझारपुर सीट से चार बार के विधायक हैं और नीतीश सरकार में भाजपा कोटे से उद्योग मंत्री हैं। नीतीश मिश्रा तीन बार जेडीयू के एमएलए बने थे लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए।

महावीर चौधरी परिवार: अशोक चौधरी, शांभवी चौधरी, सायन कुणाल

शेखपुरा-बरबीघा इलाके के बड़े कांग्रेसी नेता रहे महावीर चौधरी चार बार विधायक रहे और मंत्री भी। उनके बेटे अशोक चौधरी बरबीघा से दो बार विधायक बने और फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी बनाए गए। अशोक के दूसरी बार विधायक बनने के बाद एक चुनाव महावीर चौधरी खुद हारे और अगला चुनाव अशोक चौधरी भी हारे। अशोक फिर विधान परिषद गए और अब भी उसी सदन में हैं। 2018 में अशोक चौधरी कांग्रेस से जेडीयू में गए और आज नीतीश के सबसे करीबी नेताओं में गिने जाते हैं।

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2024 के लोकसभा चुनाव में अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी को चिराग पासवान की पार्टी लोजपा-आर ने समस्तीपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ाया और वो जीतीं। शांभवी से जेडीयू के ही मंत्री महेश्वर हजारी के बेटे सन्नी हजारी कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे। नीतीश ने महेश्वर हजारी को एनडीए के खिलाफ जाने पर खुली चेतावनी दी थी। शांभवी जीत गईं और हजारी भी मंत्री बने हुए हैं। सरकार ने अशोक के दामाद और शांभवी के पति सायन कुणाल को बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड में सदस्य बना दिया है। सायन महावीर मंदिर ट्रस्ट के सदस्य और किशोर कुणाल के बेटे हैं।

राजो सिंह परिवार: संजय सिंह, सुनीता सिंह, सुदर्शन कुमार

शेखपुरा इलाके के ही दूसरे दिग्गज नेता राजो सिंह के परिवार से भी चार लोग चुनाव जीत चुके हैं। राजो पहली बार 1972 में बरबीघा से निर्दलीय जीते थे, जहां से बाद में महावीर चौधरी लड़ने लगे। पिछले दो चुनाव से राजो सिंह के पोता सुदर्शन कुमार बरबीघा से ही विधायक हैं। 1977 से 1998 तक राजो सिंह शेखपुरा से लगातार पांच बार जीते।

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राजो सिंह बेगूसराय से लोकसभा गए तो उनके बेटे संजय सिंह 1998 का उपचुनाव और 2000 का चुनाव जीते। फिर संजय की पत्नी सुनीला देवी दो चुनाव जीतीं लेकिन 2010 में हार गईं। 2015 में संजय के बेटे सुदर्शन बरबीघा से कांग्रेस के टिकट पर और 2020 में जेडीयू के टिकट पर जीते।

राम सेवक हजारी परिवार: महेश्वर हजारी, शशि भूषण हजारी, मंजू हजारी, सन्नी हजारी, अमन भूषण हजारी

रामविलास पासवान के रिश्तेदार और समकालीन समाजवादी नेता राम सेवक हजारी का परिवार भी राजनीति हर तरफ फैला है। छह बार विधायक और एक बार सांसद रहे राम सेवक हजारी के बेटे महेश्वर हजारी समस्तीपुर से एमपी, वारिसनगर और कल्याणपुर से चार बार लोजपा व जेडीयू के विधायक रहे। नीतीश सरकार में मंत्री हैं। विधानसभा उपाध्यक्ष रहे। महेश्वर हजारी के बेटे सन्नी हजारी कांग्रेस से समस्तीपुर का लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए। राम सेवक हजारी के बड़े बेटे कमलेश्वर हजारी की पत्नी मंजू हजारी रोसड़ा से भाजपा की विधायक रह चुकी हैं।

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राम सेवक हजारी के भाई शशि भूषण हजारी भी प्रभावी नेता थे। दरभंगा की कुशेश्वर स्थान सीट से शशि भूषण हजारी ने भाजपा के टिकट पर 2010 में रामविलास पासवान के भाई रामचंद्र पासवान और 2015 में जेडीयू के टिकट पर रामविलास के दामाद धनंजय उर्फ मृणाल पासवान को हराया। शशि भूषण हजारी 2020 का चुनाव भी जीते लेकिन बीच में निधन के बाद उनके बेटे अमन भूषण हजारी ने उपुचनाव में यह सीट जेडीयू के लिए जीती।

जगदानंद सिंह परिवार: सुधाकर सिंह, पुनीत सिंह, अजीत सिंह

लालू यादव के सबसे भरोसेमंद और राष्ट्रीय जनता दल के सबसे बड़े राजपूत चेहरे जगदानंद सिंह ने अपने चचेरे भाई और तीन बार के विधायक सच्चिदानंद सिंह को रामगढ़ से हिलाकर अपने लिए जगह बनाई थी। उसके बाद लगातार छह बार विधायक, मंत्री और सांसद तक बने। जगदानंद के सांसद बनने के बाद उपचुनाव में राजद ने अंबिका यादव को लड़ाया तो बेटे सुधाकर सिंह भाजपा से टिकट लेकर लड़ गए। जगदानंद ने ना सिर्फ बेटे के खिलाफ प्रचार किया बल्कि सुनिश्चित किया कि राजद कैंडिडेट जीते और सुधाकर हारें।

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बाद में जगदानंद सिंह के दूसरे बेटे पुनीत सिंह के गया स्नातक सीट से एमएलसी चुनाव में सुधाकर भाई का पक्ष लेने लगे तो भाजपा ने निकाल दिया। फिर राजद में आ गए। पुनीत चुनाव में हार गए। सुधाकर पिता की पारंपरिक सीट रामगढ़ से 2020 में जीते और विधायक और कुछ समय मंत्री भी बने। फिर बक्सर से लोकसभा पहुंच गए। फिर सीट खाली हुई तो जगदानंद के तीसरे बेटे अजीत सिंह जेडीयू से लौटकर राजद में आए और लालू ने उपचुनाव लड़ा दिया। जगदानंद और सुधाकर मिलकर भी अजीत को नहीं जिता सके। भाजपा के अशोक सिंह ने सीट वापस छीन ली।

दिग्विजय सिंह परिवार: पुतुल कुमारी, श्रेयसी सिंह

अपने जमाने के बड़े समाजवादी नेता रहे दिग्विजय सिंह राजनीति में आने के बाद पहले राज्यसभा में रहे। जॉर्ज फर्नांडीस के करीबी दिग्विजय सिंह समता पार्टी बनने के बाद बांका से लोकसभा का चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे। दिग्विजय सिंह दो बार लोकसभा हारने के बाद तीन बार जीते थे। पहली बार समता पार्टी, दूसरी बार जेडीयू और तीसरी बार निर्दलीय।

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दिग्विजय सिंह के निधन के बाद 2010 के उपचुनाव में उनकी पत्नी पुतुल कुमारी निर्दलीय लड़कर सांसद बनीं। 2014 में पुतुल भाजपा के टिकट पर लड़ीं लेकिन हार गईं। 2019 में पुतुल निर्दलीय लड़ीं और तीसरे नंबर पर चली गईं। 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले उनकी बेटी और शूटर श्रेयसी सिंह भाजपा में शामिल हो गईं। भाजपा ने जमुई से चुनाव लड़ाया जिसे जीतकर वो पहली बार विधायक बनी हैं।

कृष्णा यादव परिवार: राजबल्लभ यादव, विभा देवी, अशोक यादव, प्रमिला यादव, बिनोद यादव

नवादा के दो राजनीतिक परिवार में एक राजबल्लभ यादव का परिवार है। दबंग भी। राजनीति में पहले भाई कृष्णा यादव आए और भाजपा के टिकट पर 1990 में नवादा जीते। कृष्णा यादव 1995 में जनता दल से गोबिंदपुर जीते और भाई राजबल्लभ नवादा से निर्दलीय लड़कर जीते। लालू ने टिकट नहीं दिया था तो राजबल्लभ बागी हो गए थे। जीतकर लालू के साथ ही रहे। राजबल्लभ फिर राजद के टिकट पर 2000 और 2015 भी जीते। रेप केस में सजा हुई तो पत्नी विभा देवी को राजद ने लड़ाया और वो भी जीत गईं। राजबल्लभ और विभा को राजद ने कई बार लोकसभा चुनाव भी लड़ाया लेकिन सीट नहीं निकाल पाए।

राजबल्लभ यादव के परिवार में फूट या लालू का साथ रहा छूट? भतीजे MLC अशोक हुए नीतीश के साथ

2022 में राजबल्लभ ने फिर बगावत की और कृष्णा यादव के बेटे और अपने भतीजे अशोक यादव को एमएलसी चुनाव में राजद के श्रवण कुशवाहा से भिड़ा दिया। कुशवाहा हारे और अशोक यादव एमएलसी बन गए। अशोक अब जेडीयू के साथ हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में राजबल्लभ के भाई बिनोद यादव को राजद ने टिकट नहीं दिया। श्रवण कुशवाहा को लड़ाया। बिनोद निर्दलीय लड़ गए और हारे। बिनोद के चुनाव में पूरा परिवार राजद से बागी हो गया। अशोक और उनकी मां प्रमिला देवी जिला परिषद सदस्य भी रहे हैं। राजबल्लभ को अभी 15 दिन का पैरोल मिला है। अशोक के नीतीश के पाले में जाने के बाद विभा देवी भी जेडीयू में जा सकती हैं।

युगल किशोर यादव परिवारः गायत्री यादव, कौशल यादव, पूर्णिमा यादव

नवादा की दूसरी ताकतवर राजनीतिक फैमिली युगल किशोर यादव की है। ये भी दबंग हैं। सबसे पहले युगल किशोर यादव 1969 में लोकतांत्रिक कांग्रेस से गोबिंदपुर से विधायक बने। निधन के बाद उपचुनाव में 1970 में पत्नी गायत्री यादव पहली बार निर्दलीय एमएलए बनीं। फिर 1972 में कांग्रेस से नवादा की विधायक बनीं। 1980 से 1990 तक कांग्रेस से लगातार तीन बार गोबिंदपुर से जीतीं। 1995 में राजबल्लभ यादव के भाई कृष्णा यादव से हार गईं। 2000 में गायत्री यादव राजद से जीतीं। तब बेटा कौशल यादव मां के खिलाफ कांग्रेस से लड़ गया और तीसरे नंबर पर रहा।

मगही बोलकर विरोधियों को भी साधने में माहिर थीं 'देवी जी', बेटे ने ही कर दिया था सियासी पारी का अंत

2005 के फरवरी वाले चुनाव में गायत्री यादव के खिलाफ कौशल यादव फिर से निर्दलीय लड़ गए और अपनी मां को हराकर पहली बार विधायक बने। इस चुनाव में कौशल की पत्नी पूर्णिमा यादव भी नवादा से निर्दलीय जीतीं। इसके बाद गायत्री दूसरे बेटे के साथ रहने लगीं। कौशल और पूर्णिमा 2010 तक गोबिंदपुर और नवादा से लगातार तीन बार जीते। 2010 में दोनों जेडीयू से जीते। 2015 में कौशल नहीं लड़े और पूर्णिमा यादव को गोबिंदपुर से कांग्रेस के टिकट पर जिताया। राजबल्लभ को सजा के बाद नवादा सीट खाली हुई तो उपचुनाव में कौशल जेडीयू से जीते। 2020 में पति-पत्नी दोनों नवादा और गोबिंदपुर से जेडीयू के टिकट पर लड़कर हार गए।

सूरजभान सिंह परिवार: वीणा देवी, चंदन सिंह, रमेश राय

अंडरवर्ल्ड की दुनिया से आकर राजनीति में छा गए सूरजभान सिंह का परिवार राजनीति में सक्रिय है। सूरजभान सिंह जेल में रहते 2000 में मोकामा से निर्दलीय लड़े और राजद के दबंग नेता दिलीप सिंह को हराकर पहली बार विधायक बने। दिलीप सिंह चर्चित बाहुबली अनंत सिंह के बड़े भाई थे। 2004 में बलिया लोकसभा सीट से लोजपा सांसद बने। सजायाफ्ता होने के कारण 2009 नहीं लड़े। 2014 के लोकसभा चुनाव में सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी मुंगेर से जेडीयू के नेता ललन सिंह को हराकर लोजपा से लोकसभा पहुंचीं।

अभी बस खिड़की खुली है; महागठबंधन में पशुपति पारस की एंट्री पर तेजस्वी बोले- आगे देखेंगे

2019 के चुनाव में सूरजभान के भाई चंदन सिंह लोजपा से नवादा लोकसभा जीते। सूरजभान सिंह के बहनोई रमेश राय विभूतिपुर से लोजपा के टिकट पर 2015 में विधानसभा लड़े लेकिन हार गए। सूरजभान के अंडरवर्ल्ड के दिनों के सबसे करीबी साथी ललन सिंह मोकामा से लोजपा, जाप और भाजपा के टिकट पर खुद और पत्नी को लड़ा चुके हैं लेकिन अनंत सिंह या उनकी पत्नी नीलम देवी से जीत नहीं पा रहे हैं। लोजपा में टूट के बाद सूरजभान पशुपति पारस के साथ चले गए थे, जिसका खामियाजा चिराग पासवान की एनडीए में ताकतवार वापसी के बाद उठाना पड़ा है।

दिलीप सिंह परिवार: अनंत सिंह, नीलम देवी

मोकामा से दो बार विधायक और राजद सरकार में मंत्री रहे दिलीप कुमार सिंह को इलाके के लोग बड़े सरकार कहते थे। दिलीप सिंह दबंग थे और राजनीति में कूदने से पहले कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह धीरज के लिए मोकामा में बूथ मैनेजमेंट देखते थे। 1990 में खुद ही जनता दल के टिकट पर लड़े और जीत गए। बिहार में तब दबंग लोगों के नेता बनने का दौर शुरू हो गया था। नेता के लिए बूथ मैनेज करने वाले खुद लड़ने और जीतने लगे। दो बार जीतने के बाद दिलीप सिंह को 2000 में सूरजभान सिंह ने हरा दिया जो अंडरवर्ल्ड में दिलीप सिंह से बड़ा नाम बन गए थे। बाद में दिलीप सिंह को राजद ने विधान पार्षद बना दिया।

मोकामा का टिकट हमारे पास, 20 दिन में जेल से... पोती की शादी में पैरोल पर आए बाहुबली अनंत सिंह का दावा

2005 के चुनाव में इलाके में छोटे सरकार नाम से मशहूर दिलीप के छोटे भाई अनंत सिंह मोकामा से जेडीयू के टिकट पर लड़े और जीते। पहले तीन बार जेडीयू, फिर एक बार निर्दलीय और 2020 में राजद से अनंत सिंह लगातार पांच बार विधायक बने। सजायाफ्ता होने के बाद सीट खाली हुई तो अनंत सिंह ने पत्नी नीलम सिंह को उपचुनाव जिताकर विधायक बनाया। नीलम को अनंत सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मुंगेर से ललन सिंह के खिलाफ भी लड़ा दिया, लेकिन वो जीत नहीं पाईं। राजद विधायक नीलम सिंह फिलहाल जेडीयू कैंप के साथ हैं।

पप्पू यादव परिवार: रंजीत रंजन

राजनीति में दो दबंग एक-दूसरे से गोली-बंदूक से लड़ते-लड़ते स्थापित हो जाएं, पप्पू यादव और आनंद मोहन उसके उदाहरण हैं। राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव 1990 में निर्दलीय सिंहेश्वर सीट से जीतकर पहली बार विधायक बने थे। पप्पू पूर्णिया और मधेपुरा से अब तक छह लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। 1991 में निर्दलीय ही पूर्णिया से पहली बार संसद गए। 1996 में समाजवादी पार्टी से, 1999 में फिर निर्दलीय सांसद बने। 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उदय उर्फ पप्पू सिंह ने लोजपा के टिकट पर लड़े पप्पू यादव को पूर्णिया में हरा दिया। लेकिन उसी चुनाव में पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन सहरसा से लोजपा के टिकट पर जीत गईं।

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2004 में लालू यादव ने मधेपुरा सीट छोड़ी तो पप्पू यादव राजद के टिकट पर उपचुनाव जीते। पप्पू ने 2009 में मां शांति प्रिया को पूर्णिया से निर्दलीय लड़ाया, जिन्हें पप्पू सिंह ने पौने लाख के अंतर से हराया। 2009 में रंजीत रंजन कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से दूसरे नंबर पर रहीं। पप्पू यादव 2014 में शरद यादव को हराकर मधेपुरा से दोबारा राजद के सांसद बने। 2014 में रंजीत रंजन सुपौल से कांग्रेस से फिर जीतीं। 2015 में पप्पू यादव ने जाप नाम से पार्टी बना ली और फिर 9 साल इसी का राजनीति की।

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2019 में पप्पू जाप से मधेपुरा हारे और रंजीत कांग्रेस से सुपौल में हारीं। 2022 में रंजीत को कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ से राज्यसभा भेज दिया। पप्पू 2024 में पूर्णिया लौटे। लालू यादव और नीतीश कुमार की तगड़ी घेराबंदी के बावजूद वो निर्दलीय जीत गए। पप्पू ने पूर्णिया से लड़ने के लिए अपनी पार्टी जाप का कांग्रेस में विलय करने का ऐलान किया था। पप्पू कांग्रेस में सेट नहीं हो पा रहे हैं और रह-रहकर इस मसले पर कभी दुख, कभी गुस्सा दिखाते रहते हैं।

आनंद मोहन परिवार: लवली आनंद, चेतन आनंद

आनंद मोहन पहली बार 1990 में जनता दल के टिकट पर महिषी विधानसभा सीट से जीते। लालू से मतभेद के बाद आनंद मोहन ने बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई और 1995 का चुनाव बड़े पैमाने पर लड़े। बहुत कामयाबी नहीं मिली। 1996 और 98 में शिवहर से लोकसभा गए। 2007 में डीएम जी कृष्णैया मॉब लिंचिंग केस में सजा हो गई। नीतीश सरकार ने जेल नियमों में कुछ बदलाव किया तो 2023 में रिहाई हुई। चुनाव तो नहीं लड़ सकते लेकिन राजनीति में खूब सक्रिय हैं।

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आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद 1994 में वैशाली लोकसभा उपचुनाव से सांसद बनीं। बिहार के सीएम रहे सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा को हराया। 1996 में लवली ने बिपीपा से नबीनगर विधानसभा जीती। फरवरी 2005 के चुनाव में जेडीयू से बाढ़ सीट जीतीं। आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद भी 2020 के चुनाव में शिवहर से राजद के विधायक बने। नीतीश के गठबंधन बदलने के बाद चेतन भी राजद का पाला छोड़ जेडीयू के साथ हो गए हैं। आनंद मोहन का परिवार कांग्रेस, सपा, हम जैसी पार्टियों में भी रहा है।

सुनील पांडेय परिवार: हुलास पांडेय, गीता पाडेय, सुशील पांडेय

शाहाबाद के दबंग सुनील पांडेय का परिवार भी राजनीति में जम चुका है। नरेंद्र पांडेय उर्फ सुनील पांडेय खुद 2000 में पहले समता पार्टी और फिर जेडीयू से चार बार लगातार विधायक बने। पीरो से तीन बार और एक बार तरारी से। अपनी हरकतों से चर्चा में रहने वाले सुनील ने 2015 का चुनाव पत्नी गीता पांडेय को लोजपा से लड़ाया, जो सीपीआई-माले के सुदामा प्रसाद से हार गईं। 2020 में सुनील पांडेय खुद निर्दलीय लड़े और लोजपा का समर्थन रहा लेकिन फिर भी सुदामा से जीत नहीं सके। सुदामा प्रसाद के आरा सांसद बनने के बाद तरारी उपचुनाव में सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत उर्फ सुशील पांडेय ने भाजपा के टिकट पर माले के राजू यादव को हराया।

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सुनील पांडेय के एक भाई हुलास पांडेय चिराग पासवान की पार्टी लोजपा-आर के नेता हैं। हुलास आरा-बक्सर स्नातक एमएलसी सीट से एक बार चुनाव जीतने के बाद जेडीयू का साथ भी दे चुके हैं। हुलास ने 2020 का विधानसभा चुनाव ब्रह्मपुर से लोजपा के लिए लड़ा लेकिन हार गए। हुलास ने रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या को लेकर सीबीआई की चार्जशीट में नाम आने के बाद लोजपा-आर संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। कोर्ट ने आरोपपत्र को बाद में खारिज कर दिया तो हुलास को राहत मिली।

तस्लीमुद्दीन परिवार: सरफराज आलम, शाहनवाज आलम

सीमांचल की राजनीति में मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के परिवार की भी तूती बोलती है। पांच बार सांसद और पांच बार विधायक रहे तस्लीमुद्दीन कांग्रेस से राजनीति में आए और 1969 में जोकीहाट सीट से पहली बार विधानसभा पहुंचे। फिर इसी सीट से निर्दलीय, जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के टिकट पर 1972, 1977, 1985 और 1995 में जीते। 1989 में जनता दल के टिकट पर पूर्णिया से सांसदी जीते। जनता दल और फिर राजद से 1996, 1998 और 2004 में किशनगंज जबकि 2014 में अररिया से लोकसभा सांसद बने। केंद्र में मंत्री भी रहे।

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1996 में किशनगंज से लोकसभा जीतने के बाद तस्लीमुद्दीन ने अपनी पारंपरिक जोकीहाट सीट से बेटे सरफराज आलम को लड़ाया और वो जीत गए। सरफराज जनता दल से उपचुनाव और 2000 का चुनाव राजद से जीते। सरफराज 2005 का दोनों चुनाव जेडीयू कैंडिडेट से हार गए तो 2010 में जेडीयू में शामिल होकर टिकट ले आए। जेडीयू से 2010 और 2015 जीते सरफराज आलम 2018 में अररिया से राजद के लिए लोकसभा उपचुनाव जीते, जब उनके पिता तस्लीमुद्दीन के निधन से यह सीट खाली हुई थी।

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लेकिन सरफराज 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए तो 2020 में जोकीहाट से विधानसभा चुनाव लड़ने पहुंच गए। राजद ने सरफराज को ही टिकट दिया। उनके भाई शाहनवाज आलम असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से टिकट लाकर लड़ गए और राजद को हरा दिया। शाहनवाज कुछ दिन बाद ओवैसी के तीन और विधायकों के साथ राजद में शामिल हो गए। 2025 के चुनाव में राजद के टिकट के लिए दोनों भाइयों में रेस लगी है।

कृष्ण सिंह परिवार: नरेंद्र सिंह, अभय सिंह, अजय प्रताप, सुमित सिंह

जमुई इलाके के कद्दावर समाजवादी नेता नरेंद्र सिंह का परिवार भी राजनीति में भरपूर संख्या में है। लालू, नीतीश और रामविलास के साथ काम कर चुके और कई बार मंत्री रहे नरेंद्र सिंह से पहले उनके स्वतंत्रता सेनानी पिता कृष्ण सिंह राजनीति में आए थे और तीन बार विधायक रहे। 1962 में कृष्ण सिंह झाझा सीट से सोशलिस्ट पार्टी से जीते। फिर 1967 और 69 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चकाई जीती। उनके बाद नरेंद्र ने 1985 में कांग्रेस, 1990 में जनता दल और 2000 में निर्दलीय ये सीट जीती। 2000 में नरेंद्र सिंह चकाई के साथ-साथ जमुई से भी जीते लेकिन जमुई सीट छोड़ दी और वहां से ताकत लगाकर जेडीयू के सुशील सिंह को जिताया।

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2005 के फरवरी वाले चुनाव में नरेंद्र सिंह के बेटे अभय सिंह ने लोजपा के टिकट पर चकाई जीती लेकिन अक्टूबर में जेडीयू के सिंबल पर जमुई सीट से विधायक बने। फरवरी 2010 में अभय सिंह ने पत्नी और बच्चे के साथ गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। जमुई से 2010 के चुनाव में नरेंद्र के दूसरे बेटे अजय प्रताप ने जेडीयू और तीसरे बेटे सुमित सिंह ने चकाई से झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के टिकट पर चुनाव जीता। 2015 के चुनाव में दोनों भाई अपनी-अपनी सीटों पर राजद के कैंडिडेट से हार गए। 2020 में सुमित सिंह निर्दलीय लड़कर दोबारा जीते और नीतीश सरकार के साथ होकर मंत्री बन गए। लेकिन अजय प्रताप हार गए और पांचवें नंबर पर रहे।

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मजेदार बात ये है कि चकाई में नरेंद्र सिंह के परिवार को फाल्गुनी यादव और जमुई में जय प्रकाश नारायण यादव के परिवार से हार और जीत का सबक मिलता रहा है। चकाई में फाल्गुनी यादव ने 5 बार नरेंद्र सिंह के परिवार को हराया है। 1977, 80, 95 और 2005 में कुल चार बार फाल्गुनी ने खुद और 2015 में उनकी पत्नी सावित्री देवी ने जीत हासिल की। इसी तरह जमुई में राजद के बड़े नेता जय प्रकाश नारायण यादव के भाई विजय प्रकाश यादव से नरेंद्र सिंह के परिवार के लोगों की हार-जीत लगी रहती है।

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