Yogini ekadashi vrat katha in hindi: योगिनी एकादशी का व्रत हेममाली ने किया था, कोढ़ से मिली थी मुक्ति, पढ़ें संपूर्ण कथा
Yogini ekadashi vrat ki katha in hindi : युधिष्ठर ने पूछा-वासुदेव, आषाढ़ के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है कृपया उसका वर्णन कीजिए। भगवान् श्रीकृष्ण बोले-आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है।

Yogini Ekadashi katha in hindi: आषाढ़ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार यह व्रत 21 जून को है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त योगिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके सभी पाप मिट जाते हैं और मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के चरणों में जगह प्राप्त होती है। व्रत और पूजा के अलावा योगिनी एकादशी पर हेममाली से जुड़ी यह कथा जरूर सुननी चाहिए। कैसे एकादशी के प्रभाव से वह कोढ़ से मुक्त हुआ।
पढ़ें योगिनी एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठर ने पूछा-वासुदेव ! आषाढ़ के कृष्ण पक्षमें जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है ? कृपया उसका वर्णन कीजिए। भगवान् श्रीकृष्ण बोले-श्रेष्ठ ! आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम 'योगिनी' है। संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है। यह व्रत राजा कुबेर से जुड़ा है। अलकापुरी में राजाधिराज कुबेर रहते थे। वे सदा भगवान् शिव की भक्ति में तत्पर थे। उनके यहां हेममाली नाम का एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की पत्नि बड़ी सुन्दर थी। उसका नाम विशदालाक्षी था। एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया, वह अपनी पत्नी विशालाक्षी के प्रेम के वशीभूत होकर घर आराम के लिए ही रुक गया। इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिवजी का पूजन कर रहे थे। उन्होंने दोपहर तक फूल आने का इंतजार किया । जब पूजा का समय खत्म हो गया तो यक्षराज ने गुस्सा होकर सेवकों से पूछा- हेममाली क्यों नहीं आ रहा है, इस बातका पता तो लगाओ।' यक्षों ने कहा-राजन् ! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो घर में ही रमण कर रहा है।
उनकी बात सुनकर कुबेर को बहुत गुस्सा आया और तुरंत ही हेममाली को बुलवाया। कुबेर ने क्रोध में कहा कि आंखें क्रोध से लाल हो गई। वे बोले-'ओ पापी ! ओ दुष्ट तूने भगवान की अवहेलना की है। हेम माली को राजा कुबेर ने क्रोध में आकर श्राप दे दिया कि तुझे स्त्री वियोग सहन करना पड़ेगा तथा मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होना पड़ेगा। कुबेर के श्राप से हेम माली स्वर्ग से पृथ्वी पर जा गिरा और उसी क्षण कोढ़ी हो गया। भूख-प्यास से दुखी होकर भटकते हुए एक दिन वह मार्कंडेय ऋषि के आश्रम में पहुंचा। परन्तु शिव-पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरण-शक्ति लुप्त नहीं थी। वहां उसने तपस्या करते हुए मुनिवर मार्कण्डेय जी का दर्शन हुआ। हेममाली ने मुनि को बताया कि मैं कुबेर का अनुचर हूं। मेरा नाम हेममाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल ले आकर शिव-पूजाके समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी के सुख में फंस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा, इसलिए उन्होंने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं आक्रान्त होकर अपनी पत्नि से बिछुड़ गया।
मार्कण्डेयजीने कहा-तुमने यहां सच्ची बात कही है, असत्य भाषण नहीं किया है; इसलिए मैं तुम्हें एक व्रत के बारे में बताता हूं। तुम आषाढ़ के कृष्णपक्ष में 'योगिनी' एकादशी का व्रत करो। मार्कण्डेयजी के उपदेशसे उसने योगिनी एकादशीका व्रत किया, जिससे उसके शरीर का कोढ़ दूर हो गया। इस कथा के पढ़ने और सुननेसे मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।