शमशान में ऐसे बना उत्तराखंड का पहला हनुमान मंदिर, बाबा नीब करौरी महाराज ने की थी स्थापना
उत्तराखंड का पहला हनुमान मंदिर बजरंगढ़ है। यह मंदिर नैनीताल-हल्द्वानी मोटर मार्ग में घाटी नामक स्थान में बजरी के एक ऊंचे पहाड़ी टीले पर स्थित है। इस स्थान पर पहले श्मशान था। मुकुन्दा की किताब ‘अनन्त कथामृत’ में उत्तराखंड के पहले हनुमान मंदिर के निर्माण का वर्णन है।

उत्तराखंड का पहला हनुमान मंदिर बजरंगढ़ है। यह मंदिर नैनीताल-हल्द्वानी मोटर मार्ग में घाटी नामक स्थान में बजरी के एक ऊंचे पहाड़ी टीले पर स्थित है। इस स्थान पर पहले श्मशान था। मुकुन्दा की किताब ‘अनन्त कथामृत’ में उत्तराखंड के पहले हनुमान मंदिर के निर्माण का वर्णन है। मंदिर निर्माण से पहले वह स्थान स्थानीय जनता की नजर में डरावना स्थान था। इस मंदिर के निर्माण से पहले उत्तराखंड में हनुमान जी की पूजा और उपासना का उतना चलन नहीं था और उनको वानरी सेना का एक नायक और रामदूत के रूप में ही देखा जाता था।
नीब करौली महाराज ने की स्थापना
इस मंदिर का निर्माण नीब करौली महाराज ने करवाया था। नीब करौली महाराज हर शाम इस घाटी पर बैठा करते थे। कभी-कभी पूरी रात ही वहीं बैठा करते थे। बाद में नीब करौली महाराज ने श्मशान भूमि में आसन जमा लिया। फिर एक दिन नीब करौली महाराज ने कुछ भक्तों से कहा कि आने वाले मंगलवार को यहां पर हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करवा दो। भक्तों ने मंगलवार को वहां पर हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित करवा दिया।
बाबा नीब करौरी महाराज
बाबा नीब करौरी महाराज जी को हनुमान जी का अवतार कहा जाता है। मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर बाबा नीब करौरी महाराज जी का जन्म हुआ था। बाबा नीब करौरी का जन्म अकबरपुर, उत्तरप्रदेश में हुआ था। बाबा नीब करौरी महाराज जी का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था।
मंदिर निर्माण के बाद हुआ चमत्कार
हनुमान जी की मूर्ति स्थापित होने के बाद प्राण प्रतिष्ठा और भंडारा हुआ। प्राण प्रतिष्ठा के बाद वहां पर भीषण वर्षा हुई और तब नीब करौली महाराज ने बोला- "पवन तनय बल पवन समाना, बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना" "कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होय तात तुम पाही"। इसके बाद वर्षा थम गई और आसमान बिल्कुल साफ हो गया। अब यह मंदिर उत्तराखंड का प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है और यहां दूर-दूर से भक्त दर्शन करने आते हैं।