Hindi Newsधर्म न्यूज़Shani ke Upay: Do this work today and tomorrow to reduce effect of Shani ki Sadesati ka Upay

आज और कल करें ये काम, कम होगा शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव

Shani ke Upay: आज शनि का दिन शनिवार है व कल ज्येष्ठ मास रवि प्रदोष का व्रत रखा जाएगा। साढेसाती का प्रभाव कम करने और शनि देव की असीम कृपा पाने के लिए शनिवार व रवि प्रदोष व्रत पर करें ये खास उपाय-

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 7 June 2025 06:45 PM
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आज और कल करें ये काम, कम होगा शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव

Shani ke Upay: आज शनिवार है व कल रविवार के दिन प्रदोष व्रत है। शनिवार का दिन शनि देव का माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव के भक्तों को शनि देव ज्यादा परेशान नहीं करते हैं। ऐसे में आज संध्या के समय व कल शनि देव और शिव जी की आराधना करने से शनि की साढ़ेसाती व ढैया का प्रभाव कम हो सकता है। कल प्रदोष व्रत के दिन शिव चालीसा का पाठ करने से शनि के बुरा प्रभावों को कम करने के साथ शिव जी को प्रसन्न भी कर सकते हैं। मान्यताओं के अनुसार, दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि देव की कृपा बनी रहती है।

आज और कल करें ये काम, कम होगा शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव: आगे पढ़ें दशरथकृत शनि स्तोत्र-

दशरथ उवाच

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥

रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।

सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥

याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।

एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥

प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।

पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥

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दशरथकृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च॥

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।

नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते॥

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥

प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।

एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥

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दशरथ उवाच

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।

अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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