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Jagannath Rath Yatra 2025: क्या है राजा इन्द्रद्युम्न का जगन्नाथ रथ यात्रा से संबंध, रथयात्रा में कैसे मिलेगा पुण्य

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi: पुरी, ओडिशा में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा का शुरू होती है। जानें भगवान गुंडिचा मंदिर क्यों जाते हैं, इसके पीछे की कहानी

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानThu, 26 June 2025 02:12 PM
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Jagannath Rath Yatra 2025: क्या है राजा इन्द्रद्युम्न का जगन्नाथ रथ यात्रा से संबंध, रथयात्रा में कैसे मिलेगा पुण्य

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi: पुरी, ओडिशा में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा का शुरू होती है। इस साल रथ यात्रा 27 जून से सुरू हो रही है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा तीन भव्य रथों पर सवार होकर अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, इसके पीछे की क्या कहानी है, राजा इन्द्रद्युम्न से इसका क्या संबंध है, जानें स्कंदपुराण में इस बारे में क्या कहा गया है।

क्यों जाते हैं भगवान गुंडिचा मंदिर

आपको बता दें कि भगवान्‌ विष्णु हर साल यात्रा करते हैं। रथयात्रा के बाद गुंडिचा मंदिर जाकर भगवान् सात दिन तक निवास करते हैं। इसके पीछे एक कथा है, जिसका जिक्र स्कंदुराण में मिलता है। शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में भगवान्‌ विष्णु ने राजा इन्द्रद्युम्न को यह वर दिया था कि मैं तुम्हारे तीर्थ के किनारे हर साल निवास करूंगा। मेरे वहां रहने पर सभी तीर्थ उसमें निवास करेंगे। उस तीर्थे में विधिपूर्वक स्नान करके जो लोग सात दिनों तक विराजमान जगन्नाथ, बलरामका ओर सुभद्राका दर्शन करेगें,उन्हें भगवान विष्णु की कृपा मिलेगी। आपको बता दें कि राजा इंद्रद्युम्न भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे। उन्हें भगवान जगन्नाथ की मूर्ति की स्थापना के लिए जाना जाता है।

रथयात्रा में कैसे मिलेगा पुण्य
स्कंदपुराण में वर्णन है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में की प्रदक्षिणा कैसे करें और दान से क्या फल मिलता है, सामने से भगवान के दर्शन करने से भी भगवान प्रसन्न होते हैं। ऐसा कहा गया है कि जो पवित्र सहस्रनामका पाठ करते हुए रथ की प्रदक्षिणा करता है, वह बैकुंठ धाम में निवास करते हैं। जो लोग भगवान्‌ श्रीकृष्णके उदेश्य से दान देता है, उसका वह थोड़ा भी दान मेरुदान के समान अक्षय फल देनेवाला होता है। जो भगवान के आगे रहकर उनके मुखार विन्द का दर्शन करते और मार्गकी धूल या कीचड़ में प्रणाम करते हैं, श्रीविष्णु के उत्तम धाम में जाते हैं।

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