मौन और सात्विक भोजन ही दिव्यता की निशानी
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में मां जगदंबा मातेश्वरी के 60वें स्मृति दिवस को अध्यात्मिक दिवस के रूप में मनाया गया। वक्ताओं ने लोगों को दिव्य जीवन जीने का उपदेश दिया। स्वामी...

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय केंद्र में ब्रह्माकुमारी संस्था की प्रथम मुख्य प्रशासनिका मां जगदंबा मातेश्वरी के 60वें स्मृति दिवस को अध्यात्मिक दिवस के रूप में मनाया गया। वक्ताओं ने लोगों को अध्यात्मिक जीवन जीने का उपदेश दिया। शुक्रवार को गीतानगर स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विवि केंद्र में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ स्वामी परब्रह्मानंद सरस्वती महाराज, स्वामी योगीराज प्रणव चैतन्य महाराज ने संयुक्त रूप से किया। स्वामी परब्रह्मानंद ने कहा कि हम मातेश्वरी को क्यों याद कर रहे हैं, क्योंकि याद उन्हीं को करते हैं जो अनुकरण के योग्य हो। जगदंबा मातेश्वरी ने परमात्मा के सानिध्य में स्वयं को आत्मसात कर स्वयं के जीवन को दिव्य बनाया।
उसे अनुकरण कर हम भी अपने जीवन को दिव्य बनाएं, क्योंकि दिव्यता देह-त्याग के बाद नहीं बल्कि देह में रहकर ही अनुभव हो सकती है। इंद्रियों का मौन और सात्विक भोजन ही दिव्यता की निशानी है। स्वामी प्रणव चैतन्य ने कहा कि आप सभी एक निष्ट है। परमात्मा एक निष्ट भक्तों की मुराद जरूर पूरी करते हैं। आज का मनुष्य एक निष्ठ न होने के वजह से ही दुखों में डूबा हुआ है। संस्था के ऋषिकेश सेंटर की प्रमुख संचालिका राजयोगिनी और बाल-ब्रह्मचारिणी बीके आरती ने कहा कि मातेश्वरी की मुख्य विशेषता थी कि वो हर घड़ी को अन्तिम घड़ी मानती थीं। इसीलिए वह तीव्र पुरुषार्थी बनी। उन्होंने अपने मन रूपी घोड़े की लगाम परमात्मा को सौंप कर कभी कोई संकल्प-विकल्प नहीं किया।
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