गौरैया को विलुप्त होने से बचाएगी जीनोम सेक्वेंसिंग
Varanasi News - वाराणसी में वैज्ञानिकों ने पहली बार गौरैया की जीनोम सिक्वेंसिंग की है। बीएचयू और अन्य संस्थानों की टीम ने यह अध्ययन किया, जो पक्षियों की विकास, अनुकूलन और संरक्षण में मदद करेगा। शोध में पाया गया कि...

वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। दुनियाभर में तेजी से घट रही गौरैया की आबादी को बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने पहली बार इसकी जीनोम सिक्वेंसिंग की है। बीएचयू, मणिपाल विश्वविद्यालय जयपुर, जूलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया कोलकाता और अन्य प्रमुख संस्थानों के शोधकर्ताओं की टीम ने यह उपलब्धि हासिल की है। अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका ‘गीगा बाइट ने इस अध्ययन को प्रकाशित किया है। यह जीनोम सिक्वेंसिंग और असेंबली पैसरिन्स (गौरैया सहित पक्षियों के एक विविध समूह) के मूल्यांकन, अनुकूलन और जनसंख्या गतिशीलता को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है। प्रो. प्रशांत सुरवज्हाला और प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के सह-नेतृत्व में इस अध्ययन में नेक्स्ट जनरेशन सीक्वन्सिंग तकनीकों और जीनोमिक वर्कफ्लो का उपयोग कर एक रेफरेंस जीनोम तैयार किया।
अध्ययन में गौरैया का मुर्गी (गैलस गैलस) और जेब्रा फिंच (टेनियोपाइजिया गुट्टाटा) के जीनोम के साथ महत्वपूर्ण आनुवंशिक समानताएं पाई गईं। शोधकर्ताओं ने गौरैया के सर्कैडियन रिदम, इम्यूनिटी, और ऑक्सीजन परिवहन से संबंधित प्रमुख जीनों की पहचान भी की है, जो गौरैया के विविध पर्यावरणों में अनुकूलन की जानकारी देती हैं। शोध के प्रथम लेखक और जेडएसआई कोलकाता के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विकास कुमार ने कहा कि डीएनए कई स्तरों पर अध्ययन से कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं। शोध के संयोजक प्रो. सुरवज्हाला ने बताया कि यह जीनोम असेंबली पक्षी विकास, अनुकूलन और संरक्षण का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं के लिए एक खजाना है। गौरैया के आनुवंशिक मैप को डीकोड करके इस प्रजाति की रक्षा के लिए संरक्षण रणनीतियों को बेहतर ढंग से तैयार किया जा सकता है। प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए जीनोम विश्लेषण से पता चला कि विश्व में गौरैया (जिसको पैसरिडी परिवार कहते है) की उत्पत्ति 90 लाख वर्ष पूर्व हुई और पैसर डोमेस्टिकस गौरैया 30 लाख वर्ष पूर्व यूरेशियन ट्री स्पैरो से अलग हो गई थी। यह शोध, राजस्थान और भारत सरकार के वन विभाग और बिरला वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान द्वारा समर्थित है। इसमे गोपेश शर्मा, संकल्प शर्मा, संवृथा प्रसाद, तोरल वैशनोई, शैलेश देसाई सहित अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिकों के योगदान शामिल हैं। गौरैया में मिले मानव से ज्यादा जीन वाराणसी। शोधकर्ता प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि गौरैया की बनावट मानव से भी जटिल है। मानव में 21 हजार जीन हैं जबकि गौरैया में 24,152 जीन मिले। जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न कारणों से शुरुआती आबादी घटने के बाद ‘एली इफेक्ट के कारण गिरावट और तेज हुई। एली इफेक्ट झुंड में रहने वाली पक्षियों में साथियों की मौत पर नकारात्मक असर डालती है और धीरे-धीरे उनकी आबादी घटने लगती है। वैश्विक रूप से गौरैया की प्रजातियों की जनसंख्या चिंताजनक रूप से कम हुई है। पेरिस जैसे शहरी क्षेत्रों में 89% तक और भारत के मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में 70% से ज्यादा की कमी दर्ज की गई है। व्यापक शहरीकरण, प्राकृतिक आवास की कमी, और पर्यावरणीय परिवर्तन जैसे कारकों को इन कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
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