मुहर्रम कोई उत्सव नहीं, बल्कि ग़म और सब्र का महीना है: हसनैन
Shamli News - बीते बुधवार को मुहर्रम का चाँद दिखाई दिया, जिससे शिया समुदाय में अज़ादारी का दौर शुरू हो गया। गाँव गंगेरु में कई इमामबाड़ों पर मजलिसें आयोजित की जा रही हैं। हजरत मौलाना कमर हसनैन ने बताया कि मुहर्रम...

बीते बुधवार को मुहर्रम का चाँद दिखाई देने के साथ ही शिया समुदाय में सवा दो महीने का शोक (अज़ादारी) शुरू हो गया। शुक्रवार को गाँव गंगेरु में बड़े संख्या के शिया समुदाये के लोग रहते है। गंगेरू के छोटा इमामबाड़ा व बड़े इमाम बड़े सहित कई स्थानों पर अज़ादारी शुरू हो गई है। दिल्ली से आये हजरत मौलाना कमर हसनैन ने कहा कि मुहर्रम में दिन-रात अज़ादारी और मजलिसें कीजिए, मगर पूरी सच्चाई और खुलूस के साथ। उन्होंने यह भी बताया कि इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम वर्ष का पहला महीना होता है, लेकिन इसका आगाज़ शोक और इमाम हुसैन की याद में श्रद्धांजलि से होता है, न कि उत्सव के रूप में होता है।
गांव के विभिन्न इमामबाड़ों और अज़ाखानों में दस दिवसीय मजलिसों के आयोजन किया गया। कई जगहों पर रौनक़-ए-अज़ा की शुरुआत हो गई है, अलम, ताबूत और जुलूस की तैयारियां शुरू हैं। इस मौके पर महिलाओं और पुरुषों ने काले वस्त्र धारण कर गम का इज़हार किया और दस रोज़ा मजलिसों का सिलसिला आरंभ हो गया। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 71 साथियों की करबला में दी गई कुर्बानी की याद में यह महीना पूरी अकीदत और सादगी से मनाया जाता है। मर्सियाखान आले मोहम्मद ने किया। इस दौरान अमीर, मौ०वसी हैदर, शमी हैदर, असरफ अली,मंजर अब्बास, जमीर हैदर सहित सैकड़ो शिया सोगवार मौजूद रहे।
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