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बोले रायबरेली/खाद-बीज संकट

Raebareli News - समय पर खाद-बीज के लिए जद्दोजहद रायबरेली, संवाददाता। जिले के करीब पांच लाख

Newswrap हिन्दुस्तान, रायबरेलीWed, 25 June 2025 05:58 PM
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बोले रायबरेली/खाद-बीज संकट

समय पर खाद-बीज के लिए जद्दोजहद रायबरेली, संवाददाता। जिले के करीब पांच लाख से अधिक किसान खाद-बीज की किल्लत से जूझ रहे हैं। इस समय धान की रोपाई का समय चल रहा है। इसके लिए पौध तैयार की जा रही है। किसानों को धान का बीज नहीं मिल पाया। किसान उन्नत किस्म का बीज चाहते हैं ताकि उत्पादन बेहतर हो सके। महंगे दामों पर उर्वरक मिल रही है। कॉपरेटिव सोसाइटी की ओर से खाद मिले तो किसानों को कम पैसे लगेंगे। लेकिन, ऐसा नहीं हो रहा है। किसान सरकार से समय पर खाद और बीज चाहते हैं। खाद-बीज के साथ बिजली भी किसानों को रुला रही है।

धान की रोपाई में पानी अधिक लगता है। अगर पौध समय पर तैयार नहीं हुई तो धान की फसल में देरी होगी। ऐसे में धान की पौध तैयार करने के लिए डीजल पंप का सहारा ले रहे हैं। महंगा डीजल, खाद-बीज के लिए मारामारी से किसानों की परेशानी और बढ़ गई है। अगर किसानों को समय पर खाद-बीज मिल जाए तो उन्हें काफी राहत मिले। धान या गेहूं की फसल बुवाई के समय किसानों को खाद-बीज के लिए जूझना पड़ता है। धान की रोपाई से पहले किसानों को समय पर खाद-बीज नहीं मिल पाई। सरकारी एजेंसी से खाद नहीं मिलने पर किसानों को महंगे दामों पर खाद लेनी पड़ रही है। यही हाल बीज का रहा। कृषि विभाग ने बीज वितरण की बात कही, लेकिन किसान लाभान्वित नहीं हो पाए। अगर किसानों को उन्नत किस्म के बीज समय पर मिल जाए तो उनका उत्पादन बढ़ जाएगा। जिले में मुख्य रूप से धान, गेहूं, चना, और सरसों जैसी फसलें उगाई जाती हैं। खरीफ के मौसम में धान, ज्वार, उड़द, अरहर, मूंगफली, तिल और रबी के मौसम में गेहूं, चना, तोरिया, सरसों प्रमुख फसलें हैं। जायद के मौसम में सूरजमुखी, उड़द, मूंग सीमित मात्रा में उगाए जाते हैं। कुछ किसान सब्जियों की खेती भी करते हैं। खरबूजा, तरबूज जैसी फसलों की भी खेती होती है। पांच लाख से अधिक किसान फसलों से जुड़े हुए हैं। ऐसे में खाद-बीज की समस्या को लेकर आपके अपने हिन्दुस्तान अखबार ने इन किसानों से बात की तो उनका दर्द झलक पड़ा। किसानों ने कहा कि उन्हें समय पर खाद और बीज उपलब्ध हो जाए। इसके साथ ही सिंचाई के संसाधन व्यवस्थित हो तो उनकी सारी दिक्कतों का अपने आप समाधान हो जाएगा। उनका कहना है कि गेहूं और धान की बुवाई के समय खाद-बीज के लिए परेशानी होती है। इस समय धान की बुवाई का समय है। पहले पौध तैयार करते हैं। इसके बाद उसकी रोपाई होती है। पौध तैयार करने से पहले किसानों को अच्छे बीज की दरकार रहती है। हर साल की तरह इस बार भी कृषि विभाग ने बीज देने की बात कही और दावा किया कि किसानों को बीज दिए गए। बावजूद इसके किसान बीज के लिए भटकते रहे। किसानों का कहना है कि समय पर बीज मिले तभी उनको फायदा है। अगर समय पर बीज नहीं मिले तो वह पौध कैसे तैयार कर सकेंगे और समय पर रोपाई भी नहीं कर सकेंगे। किसानों का कहना है कि उन्होंने बाजार से बीज खरीदे। महंगे के साथ-साथ गुणवत्ता पर भी शक रहता है। यही हाल खाद का रहता है। सरकारी एजेंसियों से खाद लेने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। मांग के अनुरूप खाद नहीं मिल पाती है। ऐसे में किसानों का बाजार से महंगे दामों पर खाद लेना पड़ता है। गेहूं की बुवाई के समय यह समस्या अधिक रहती है। खाद-बीज के लिए केंद्रों पर लाइन लगी रहती है। किसान इंतजार करके घर लौट जाते हैं, लेकिन खाद-बीज नहीं मिल पाता है। किसानों का कहना है कि सरकार को इस समस्या का स्थायी समाधान होना चाहिए। ताकि किसानों का खाद-बीज के लिए भटकना नहीं पड़े। नकली खाद और बीज ने बढ़ाई परेशानी किसान बताते हैं कि खुले बाजार में उपलब्ध बैग में कंकड़-पत्थर वाली खाद मिल जाती है। बीज ऐसा मिल रहा है कि बोवाई के बाद एक खेत में अलग-अलग ऊंचाई के पौधे निकलते हैं। नतीजा-उत्पादन पर सीधा असर और पूरे सीजन की मेहनत पर पानी। आधुनिक युग में जहां कृषि को वैज्ञानिक बनाना चाहिए था, वहीं जिले के 80 फीसदी किसान अब भी परंपरागत तरीकों से खेती करने को मजबूर हैं। क्योंकि न तो समय पर संसाधन मिलते हैं और न ही समुचित प्रशिक्षण। सरकार की ओर से घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को राहत देने की बजाय निराशा दे रहा है। लागत बढ़ गई है-जुताई, बीज, खाद, मजदूरी आदि हर चीज दोगुना महंगी हो गई, लेकिन एम एस पी अब भी पुराने ढर्रे पर है। किसानों की पीड़ा सिर्फ मौसम से नहीं, व्यवस्था से भी है। वे मुआवजा नहीं चाहते-बस इतना चाहते हैं कि फसल डूबे नहीं, सूखने न पाए। अगर सरकार सिर्फ सिंचाई और बीज की समय पर व्यवस्था कर दे, तो हम अपने दम पर खेत को सोना बना सकते हैं। कभी मौसम तो कभी आवारा पशु करते हैं नुकसान रायबरेली। किसान जीतोड़ मेहनत करके खेतों में फसलों को पैदा करते हैं। रखवाली करते हैं लेकिन कभी मौसम की मार फसलों को शिकार बना लेती हैं तो कभी छुट्टा पशु किसानों की फसलों का दुश्मन बन जाता है। कर्ज लेकर फसलें पैदा करने वाले किसान इन समस्याओं का सामना कैसे करें। सरकार ने दैवीय आपदा से होने वाले नुकसान से बचाव के लिए फसलों का बीमा करवाने की योजना शुरू कर रखी है, लेकिन बीमा किसानों तक नहीं पहुंच पाता। किसानों के सामने छुट्टा पशु और जंगली जानवर फसलों के लिए सबसे बड़े संकट का विषय हैं। किसान खेतों पर रहता है, लेकिन जानवर उसकी जान का खतरा भी बन जाते हैं और किसान घर चला आता है तो खलिहान में फसलें जानवरों के निशाने पर आ जाती हैं। इन तमाम समस्याओं के निराकरण के लिए किसान प्रशासन के सामने अपनी मांग रखते हैं, लेकिन उनकी मांगों को अक्सर अनसुना किया जा रहा है। किसान चाहते हैं कि जिला प्रशासन किसानों की समस्याओं के निराकरण के लिए हर माह उनके साथ वार्ता करे। बैठक में स्थानीय किसानों और प्रशासनिक अमले से जुड़े प्रतिनिधि को भी शामिल किया जाए। खाद की कालाबाजारी से परेशान रायबरेली। किसान बताते हैं कि धान रोपाई और गेहूं आदि के बुवाई के समय डीएपी की किल्लत बढ़ जाती है। जरूरत के वक्त यूरिया भी नहीं मिलती है। जो यूरिया की बोरी है वह अधिक दामों में मिलती है। इसे खरीदने के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसके बाद फसल बोई जाती है। खाद समितियों पर समय से यूरिया नहीं पहुंचती है और मिलती भी है तो सिर्फ दो-तीन बोरी। मजबूर किसान कहां जाएं, खेती करनी है तो मनमाने रेट पर यूरिया खरीदनी मजबूरी है। गन्ना, धान व सब्जी बोने वाले किसान हर सीजन में फसलों के लिए जरूरी सुविधाओं के लिए जूझते हैं। इनमें सबसे ज्यादा आफत यूरिया और डीएपी की है। फार्मर आईडी निःशुल्क हो और हर गांव में लगे कैंप रायबरेली। किसानों का कहना है कि कहने के लिए किसानों को नि:शुल्क पानी उपलब्ध करवाया जाता है पर जब खेतों में सिंचाई की जरूरत होती है तो कभी नहर में पानी नहीं तो कभी ट्यूबवेल चलाने के लिए बिजली नहीं। औसतन हर महीने सरकारी ट्यूबवेलों के खराब होने से भी सिंचाई में दिक्कत होती है। सरकार का खेती पर जोर है पर जब सुविधाओं की बात आती है तो उसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है। फार्मर आईडी बनाने के लिए हर गांव में कैंप लगें। जनसेवा केंद्रों पर इसे मुफ्त बनवाया जाए। रियल टाइम खतौनी में त्रुटियों को ठीक करने के लिए हर तहसील में अलग से स्टाफ की तैनाती हो। ग्राम पंचायत भवन में लेखपाल, सचिव आदि कर्मचारियों की गैर-हाजिरी पर अंकुश लगाया जाए। जो भी जनसेवा केंद्र बने हैं, उन्हें नियमित रूप से खुलवाया जाए। शिकायत -बुवाई का समय निकल जाने के बाद सरकारी बीज की उपलब्धता होती है। इससे निजी दुकानों से बीज आदि लेना पड़ता है। -बाजार में मिल रही खाद में अशुद्धता और घटिया बीज से उत्पादन प्रभावित हो रहा है। -बारिश अनियमित है और समय पर बुवाई/धान रोपाई के लिए नहर या सोलर सिस्टम की सुविधा नहीं मिलती। -किसानों की फसल का नि:शुल्क बीमा नहीं होता है। इससे किसान बीमा नहीं करवाते हैं। -बढ़ती लागत के मुकाबले एमएसपी अपर्याप्त है, जिससे किसानों को घाटा हो रहा है। सुझाव -बुवाई से पहले ही पंचायत स्तर पर प्रमाणित बीज और खाद मुहैया कराई जाए। जिससे उपज बढ़े और किसानों के घर आर्थिक समृद्धि आए। -बाजार की निगरानी कर दोषी विक्रेताओं पर दंडात्मक कार्रवाई हो। इससे किसानों की फसल बर्बाद नहीं होगी और आर्थिक रूप से मजबूत होंगे। -गांवों में सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई प्रणाली और नहरों का जीर्णोद्धार किया जाए। जिससे किसानों पर आर्थिक बोझ नहीं बढ़ेगा और लाभ मिलेगा। -परंपरागत खेती से बाहर निकलने के लिए किसानों को आधुनिक कृषि का प्रशिक्षण दिया जाए। जिससे उपज में बढ़ोतरी होगी। -हर साल खेती की लागत के आधार पर समर्थन मूल्य की समीक्षा और बढ़ोतरी की जाए। जिससे किसान बिचौलिये से बचेंगे और फायदा होगा। नंबर गेम 04 हजार मीट्रिक टन डीएपी उपलब्ध हैं। 05 लाख से अधिक किसान हैं। 170 से अधिक सहकारी क्षेत्र के विक्रय केंद्र जिले में हैं। -------- बोले जिम्मेदार खरीफ में बीज और खाद की कोई किल्लत नहीं है। जिले में पर्याप्त मात्रा में यह दोनों उपलब्ध हैं। विभाग पूरी सक्रियता से काम कर रहा है। किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज मिले, इसके लिए लगातार निगरानी की जा रही है। नकली खाद और बीज की शिकायतों पर छापेमारी कर कार्रवाई की जा रही है। किसानों से अपील है कि वे विभागीय योजनाओं का लाभ लेने के लिए समय पर पंजीकरण कराएं और किसी भी समस्या की जानकारी तुरंत संबंधित अधिकारी को दें। अखिलेश पांडेय, जिला कृषि अधिकारी इनकी भी सुनिए हर ग्राम पंचायत स्तर पर अधिकारी किसानों तक आए और समय-समय पर चौपाल आदि के माध्यम से इनकी समस्याएं सुने और उनका निराकरण कराए। हर चार माह में एक बार जिला स्तर के अधिकारियों के साथ बैठक होनी आवश्यक है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। कृष्णकुमार --- जिला प्रशासन बीज पैदा करने वाले किसानों को चिह्नित, करे। हर साल इन किसानों द्वारा पैदा किए बीज को सस्ती दरों पर वितरित कराए। खुले बाजार में जो खाद मिलता है, उसमें कंकड़ मिलते हैं। बीज भी ऐसा कि पौधे एक साथ नहीं निकलते। फसल एक जैसी नहीं होती। आशीष कुमार ----- आलू, लहसुन का बीज स्थानीय स्तर पर पैदा किया जाएगा तो लागत कम आएगी। इसका किसानों को फ़ायदा होगा। कम लागत का बीज आसानी से मिलेगा। इस पर भी स्थानीय स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिए। इसका लाभ सभी किसानों को मिलेगा। शिवशंकर --- किसानों के लिए फसलों की सिंचाई बड़ी चिंता रहती है। नहरों का पानी टेल तक पहुँचाने की व्यवस्था नहीं है। ज़रूरत के समय फसलों को पानी नहीं मिल पाता है। इससे आए दिन किसान परेशान होते रहते हैं। इस पर कोई जिम्मेदार कार्रवाई नहीं करता है। लक्ष्मीशंकर ------ किसानों को समय से खाद और बीज होगी उपलब्ध होना चाहिए। दुकानों पर खाद की कालाबाज़ारी बिलकुल बंद हो। खेतों में फसलों की रखवाली के लिए दिन रात जुटा रहा रहता है। परंतु फसल बर्बादी के बाद उसकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आता है। भोला ----- गेहूं, बाजरा, आलू, मूंगफली, सरसों जैसी फसलों को खेत से ही उठाने कराने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। मंडी तक पहुंचते-पहुंचते फसलों की दर कम हो जाती है। इससे किसानों को नुकसान होता रहता है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। शिवकुमार ----- हम किसानों के पास सबसे बड़ी समस्या फसलों की सुरक्षा है। नीलगाय, आवारा पशु आदि फसलों की बरबादी के कारण बनते हैं। इस समस्या का स्थाई आज तक समाधान नहीं हो सका है। इसके साथ ही कीटनाशकों में बेतहाशा वृद्धि भी परेशान कर रही है। रामपियारे ------ फसलों की रखवाली के लिए दिन रात किसान जुटा रहा रहता है। परंतु फसल बर्बादी के बाद उसकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आता है, जबकि सरकार के दावे बहुत होते हैं। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए। तभी कुछ भला किसानों का हो सकता है। श्रीराम ----- नकली खाद, महंगा डीजल, एम एस पी में बढ़ोतरी नहीं। इससे किसान कहां टिक पाएगा? खेती अब सिर्फ संघर्ष रह गया है। जब बीज नहीं था तब मौसम साथ दे रहा था, अब बीज आता है तो खेत सूख जाता है। हम किसान किसी से लड़ भी नहीं सकते। चन्नीलाल ------ हर बार बीज समय पर नहीं मिलता और जो मिलता है वह सबके लिए नहीं होता। बस हाशिये पर हम किसान ही हैं। सब कुछ इतना महंगा हो गया है कि लागत निकलना मुश्किल है। ऊपर से नकली खाद और घटिया बीज से मेहनत बेकार चली जाती है। राजरानी ------ हम मुआवजा नहीं चाहते, सिर्फ यह हो कि समय पर बीज और खाद मिले। हम भी अपनी मेहनत से फसल उगाना जानते हैं। सरकारी सिस्टम इतना धीमा है कि बीज बांटते-बांटते बुवाई का समय ही बीत जाता है। और खेत सूख जाते हैं। पानी के लिए भी डीजल चाहिए। रामबाबू ------- खेती अब जोखिम बन गई है। जितना पैसा लगाओ, उतनी ही अनिश्चितता बढ़ती है। अगर समय पर बीज और खाद मिल जाए, तो आधी समस्या वहीं खत्म हो जाए। इस पर काम करने की आवश्यकता है। तभी कुछ हल निकल सकता है। रज्जो --- सरकार हर साल योजनाएं बनाती है, लेकिन उसका लाभ हमें वक्त पर नहीं मिलता। हर बार बीज इतनी देर से मिलता कि खेत में अब नमी ही नहीं बचती ।समय निकल जाने के डर से निजी दुकानों का सहारा लेना मजबूरी बन जाता है। गंगादेई ------ कृषि विभाग की योजनाएं पोस्टर में अच्छी लगती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। बीज और खाद समय से नहीं मिलते, जो मिलते हैं वो घटिया होते हैं। इस ओर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। तभी किसानों को इसका लाभ मिल सकता है। उर्मिला

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