सोंटा गुरु ने तराशा और अमरकांत बन गए कहानीकार
Prayagraj News - प्रयागराज के प्रख्यात कहानीकार अमरकांत को सोंटा गुरु के नाम से प्रसिद्ध भैरव प्रसाद गुप्त ने तराशा। 1951 में इलाहाबाद लौटने के बाद, अमरकांत ने आर्थिक तंगी का सामना करते हुए लेखन की दुनिया में कदम रखा।...
प्रयागराज। ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी व व्यास सम्मान से विभूषित प्रख्यात कहानीकार अमरकांत को कहानीकार के रूप में तराशने का कार्य इलाहाबाद में ‘सोंटा गुरु के नाम से प्रसिद्ध उपन्यासकार व संपादक भैरव प्रसाद गुप्त ने किया था। बात उन दिनों की है जब अमरकांत वर्ष 1951 में आगरा से लौटकर इलाहाबाद आए थे। अमृत पत्रिका में काम करना शुरू किया। वेतन बहुत मामूली था और उन्हें आर्थिक तंगी का सामना किया। इस बीच वे अक्सर प्रगतिशील लेखक संघ की गोष्ठियों में शामिल हुआ करते थे। एक दिन सोंटा गुरु के घर पर संघ की बैठक के दौरान उनकी मुलाकात मार्कंडेय, शेखर जोशी, लक्ष्मीकांत वर्मा, रामस्वरूप चतुर्वेदी, जगदीश गुप्त, धर्मवीर भारती जैसी साहित्यिक शख्सियतों से हुई।
उस समय ‘कहानी पत्रिका के संपादक भैरव प्रसाद गुप्त थे। हिन्दुस्तानी एकेडेमी की त्रैमासिक शोध पत्रिका में अमरकांत पर केंद्रित विशेषांक का संपादन करने वाले साहित्यकार रविनंदन सिंह बताते हैं कि अमरकांत की पहली कहानी वर्ष 1949 में बाबू प्रकाशित हुई थी लेकिन उन्हें तराशने का कार्य सोंटा गुरु ने किया था। जिन्होंने अमरकांत को शिल्प का ज्ञान कराया। अपनी पत्रिका कहानी में उनकी ‘डिप्टी कलेक्टरी कहानी को वर्ष 1953 में प्रकाशित किया था। सोंटा गुरु उनकी गंभीरता और कम बोलने से प्रभावित होते रहते थे। यह कहानी आईएएस व पीसीएस के सिलेबस में शामिल रहीं। अमरकांत खुद इस बात का श्रेय सोंटा गुरु को देते थे कि उन्होंने ही मुझे कहानीकार के रूप में तराश कर हिन्दी साहित्य जगत के सामने प्रस्तुत किया था। साहित्यकार ने बताया कि जिस समय एकेडेमी के अध्यक्ष कैलाश गौतम थे, वहां अक्सर गोष्ठियों का संचालन करता था। जिसमें अमरकांत सोंटा गुरु को अपना गुरु मानने का जिक्र करते थे।
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