बोले बेल्हा : चार माह न करना पड़े इंतजार, समय से मानदेय की दरकार
Pratapgarh-kunda News - परिषदीय स्कूलों में मध्यान्ह भोजन योजना के तहत रसोइयों को महज दो हजार रुपए मासिक मानदेय दिया जाता है, जो समय पर नहीं मिलता। रसोइयों ने मानदेय बढ़ाने और सरकारी योजनाओं का लाभ देने की मांग की है। उनकी...
परिषदीय स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या में इजाफा करने के लिए शासन की ओर से मध्यान्ह भोजन योजना की शुरुआत की गई। शुद्ध और ताजा मध्यान्ह भोजन बनाने के लिए प्रत्येक परिषदीय स्कूल में रसोइयों की नियुक्ति की गई है। हकीकत यह है कि वर्तमान समय में परिषदीय स्कूलों की व्यवस्था में रसोइया एक अहम कड़ी हैं। कारण हेडमास्टर इनसे साफ-सफाई से लेकर स्कूलों के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का काम ले रहे हैं। बावजूद इसके रसोइयों को काम के बदले महज दो हजार रुपए मासिक मानदेय दिया जाता है। वह भी कभी समय से नहीं मिलता। रसोइयों को मानदेय के लिए चार से पांच महीने इंतजार करना पड़ता है।
एक और अहम बात रसोइयों से वर्ष में 11 महीने काम लिया जाता है लेकिन मानदेय सिर्फ 10 महीने का दिया जाता है। मानदेय बढ़ाने सहित कई अन्य समस्याओं के समाधान की मांग रसोइया कई वर्ष से कर रही हैं लेकिन उनकी सुनने तक को कोई तैयार नहीं है। परिषदीय स्कूलों की व्यवस्था की कड़ी बन चुकी रसोइयों को सरकारी योजनाओं के लाभ में भी कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती। अधिकतर रसोइयों के पास राशन कार्ड नहीं है, आयुष्मान गोल्डेन कार्ड की सुविधा से भी इन्हें वंचित रखा गया है। रसोइयों का कहना है कि सबसे पहले उनका मानदेय बढ़ाया जाए, इसके बाद स्वास्थ्य बीमा और जीवन बीमा का लाभ दिया जाए। इसके अलावा सरकार की आयुष्मान गोल्डेन कार्ड, राशन कार्ड और पात्र रसोइयों को प्रधानमंत्री आवास योजना में प्राथमिकता से शामिल कर लाभ दिया जाए। बेल्हा में कुल 2372 परिषदीय स्कूल हैं, इन स्कूलों में मध्यान्ह भोजन बनाने के लिए कुल करीब 5000 रसोईयों की नियुक्ति की गई है। रसोईयों की नियुक्ति छात्र संख्या के सापेक्ष की जाती है। एक से 25 छात्र संख्या पर एक रसोइया की तैनाती की जाती है। इसी तरह 26 से 100 छात्र संख्या तक दो रसोइयां की तैनाती का प्रावधान है। यदि किसी स्कूल में छात्र संख्या 101 से 200 तक होती है तो फिर रसोइयों की संख्या भी तीन हो जाती है। 201से 300 छात्र संख्या तक चार रसोईयों की तैनाती का निर्देश है जबकि पंजीकृत छात्रों की संख्या 301 से 1000 तक होने पर स्कूल में ताजा और शुद्ध मध्यान्ह भोजन बनाने के लिए पांच रसोइयों की नियुक्ति करने का प्रावधान है। परिषदीय स्कूलों में मध्यान्ह भोजन पकाने के लिए तैनात रसोइयों में अधिकतर महिलाएं हैं। रसोइयों का कहना है कि विभाग की ओर से हमें प्रत्येक महीने दो हजार रुपए मानदेय दिया जाता है लेकिन यह कभी भी समय पर नहीं मिलता। मानदेय के लिए हमें चार से पांच महीने तक इंतजार करना पड़ता है। मई और जून महीने का मानदेय हमें नहीं मिलता। यह स्थिति तब है जब रसोइयां पूरी जिम्मेदारी से अपने दायित्व का निर्वहन कर रही हैं। तमाम स्कूल ऐसे हैं जिनका ताला खोलने और बंद करने का काम भी रसोइयों के जिम्मे हैं। ऐसे स्कूल में हेडमास्टर और शिक्षक निर्धारित समय पर नहीं आते, ऐसे में स्कूल की चॉबी रसोइयां के पास रहती है। स्कूल की रसोई की साफ-सफाई से लेकर भोजन को गुणवत्तापूर्ण तरीके से तैयार करना और बच्चों को परोसने तक के काम में कहीं भी तनिक लापरवाही नहीं की जाती। जिले के तमाम स्कूल के सिलेंडर चोरी हो गए हैं अथवा भोजन बनाते समय खत्म हो जाते हैं। ऐसे हालात में रसोइयों को चूल्हे पर लकड़ी जलाकर भोजन पकाना पड़ता है। इससे रसोइयों को काफी परेशानी भी उठानी पड़ती है, फिर भी रसोइयां कभी शिकायत नहीं करते। मौसम सर्दी, गर्मी का हो अथवा बारिश का, जन बनाने में कभी देरी नहीं होती। इसके बाद भी हमारी छोटी छोटी समस्याओं का समाधान करने में जिम्मेदार गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। जिम्मेदार लापरवाह, देरी से मिलता है बजट परिषदीय स्कूल के पंजीकृत बच्चों के लिए शुद्ध और ताजा भोजन पकाने के लिए नियुक्त रसोइयों को मानदेय देने के लिए केंद्र सरकार की ओर से 1000 रुपए स्वीकृत किए गए हैं। इसमें से 60 फीसदी धनराशि ही केंद्र सरकार की ओर से दी जाती है, शेष 40 फीसदी धनराशि प्रदेश सरकार की ओर से दी जाती है। इसके बाद प्रदेश सरकार की ओर से दो बार में 500-500 रुपये मानदेय में बढ़ोतरी की जा चुकी है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि मानदेय का बजट कभी समय पर नहीं मिलता। बजट अक्सर देरी से मिलने के कारण रसोईयों के बैंक खाते तक पहुंचने में बिलम्ब हो जाता है। जिम्मेदारों की इस लापरवाही का खामियाजा रसोइयों को भुगतना पड़ रहा है। महंगाई के मद्देनजर बढ़ना चाहिए मानदेय जिले के परिषदीय स्कूलों में तैनात रसोइयों का कहना है कि महंगाई के इस दौर में महज दो हजार रुपए मानदेय से गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। इतने मानदेय में शायद ही कोई सरकारी विभाग में काम करता होगा। हम लोगों ने कई बार मानदेय बढ़ाने की मांग जिम्मेदारों के माध्यम से शासन से की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। कम से कम इतना मानदेय मिलना चाहिए कि हम सम्मानजनक तरीके से जीवन गुजार सकें। हालांकि हमारी मांगों पर विचार करना तो दूर किसी ने समझने तक की जरूरत नहीं समझी। सफाई का काम भी करते हैं हम वैसे तो परिषदीय स्कूलों में रसोईयों की तैनाती महज मध्यान्ह भोजन बनाने और बच्चों को खिलाने के लिए की गई है लेकिन अधिकांश स्कूल में रसोइयों से अतिरिक्त काम भी लिए जाते हैं। हेडमास्टर रसोइयों से भोजन बनवाने के अलावा साफ-सफाई और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी वाले काम भी कराते हैं। नौकरी बचाने के फेर में रसोइयों को मन दबाकर हेडमास्टर के आदेश का पालन करना पड़ता है। दरअसल परिषदीय स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नियुक्ति नहीं की गई है, सफाई के लिए सफाई कर्मचारी नामित किया जाता है लेकिन वह कभी कभार ही स्कूल की सफाई करता है ऐसे में हेडमास्टर सफाई का काम भी रसोइयों से ले रहे हैं। यही नहीं हेडमास्टर सहित अधिकतर शिक्षक दूर दराज से आते हैं ऐसे में स्कूल खोलन और बंद करने तक की जिम्मेदारी भी गांव की रसोइया को सौंप दी जाती है। सरकारी योजनाओं में मिले प्राथमिकता जिले के परिषदीय स्कूलों में तैनात रसोइयों का कहना है कि हमें महज दो हजार रुपए मानदेय दिया जाता है। महंगाई के इस दौर में दो हजार रुपए में परिवार का भरण पोषण कैसे किया जा सकता है। अधिकतर रसोइयों का अपना परिवार और बच्चे हैं। बच्चों की पढ़ाई, पालन-पोषण, परिवार का खर्च दो हजार रुपए में कैसे चलाया जा सकता है। कई रसोइयों के परिवार में बुजुर्ग हैं जिनकी तबीयत खराब रहती है, उनका इलाज कराने के लिए कर्ज लेना पड़ता है। कई रसोइया ऐसे हैं जिनके पास खेती बारी नहीं है। ऐसे में उन्हें बाजार से राशन खरीदकर परिवार का पेट भरना पड़ता है। जिम्मेदारों की अनदेखी के कारण रसोइयों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। रसोइयों का कहना है कि हमें आयुष्मान गोल्डेन कार्ड, राशन कार्ड में प्राथमिकता मिलना चाहिए। त्योहारों पर अक्सर रहते हैं खाली हाथ परिषदीय स्कूलों में तैनात रसोइयों को सबसे बड़ा दर्द इस बात से रहता है कि उनका मानदेय कभी समय पर नहीं मिलता रसोइयों का कहना है कि त्योहारों पर अधिकतर कर्मचारियों को मानदेय और वेतन के अलावा बोनस आदि दिया जाता है लेकिन हमें हमारा मानदेय भी नहीं मिलता। अक्सर ऐसा होता है कि प्रमुख त्योहारों पर हमारे हाथ खाली रह जाते हैं ऐसे में हमें दुकानदार से उधार सामान लेना पड़ता है। अहम बात यह कि हमारे हेडमास्टर और विभाग के अधिकारी भी हमारी इस समस्य को गंभीरता से नहीं लेते। यही कारण है कि पूरी ईमानदारी से अपना काम करने के बाद भी हमें दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है। शिकायतें 0 महंगाई के इस दौर में रसोइयों को सिर्फ दो हजार रुपए मानदेय दिया जा रहा है, इतने कम पैसे में परिवार का भरण पोषण मुश्किल हो रहा है। 0 मानदेय समय पर नहीं मिलने से रसोइयों को दूसरों से उधार लेकर परिवार का खर्च चलाना पड़ता है। नौकरी करने के बाद भी हम आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। 0 रसोइयों को वर्ष में 11 महीने काम लिया जाता है लेकिन मानदेय सिर्फ 10 महीने का दिया जाता है। यह सीधे सीधे हमारा शोषण है। 0 रसोइयों के लिए विभाग की ओर से ड्रेस निर्धारित किया गया है। साड़ी खरीदने के लिए साल में सिर्फ एक बार पांच सौ रुपये दिए जाते हैं। यह नाकाफी है। 0बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों सहित शासन के जिम्मेदार हमारी समस्याओं के निस्तारण में तनिक भी रुचि नहीं लेते। सुझाव 0 बेतहाशा बढ़ रही मंहगाई के मद्देनजर रसोइयों के मानदेय में तत्काल उचित बढ़ोतरी की जानी चाहिए। जिससे रसोइया परिवार का पालन पोषण कर सकें। 0 प्रत्येक महीने के आखिरी दिन हमारे मानदेय का भुगतान किया जाना चाहिए। जिससे हमें दूसरों से सामान अथवा पैसे उधार न लेना पड़े। रसोइयों को यूनीफार्म खरीदने के लिए वर्ष में कम से कम दो बार दो-दो हजार रुपए दिए जाने चाहिए। जिससे वह नियमित और साफ ड्रेस में स्कूल आएं। 0 रसोइयों की सेहत जांच के लिए प्रत्येक महीने के आखिरी में मेडिकल कैंप लगवाया जाए जिसमें जांच के साथ दवाओं की मुफ्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। 0 सभी रसोइयों को आयुष्मान भारत योजना के दायरे में लेकर आयुष्मान गोल्डेन कार्ड जारी किया जाना चाहिए। जरा हमारी भी सुनिए.... दो हजार रुपए महीने के मानदेय में परिवार का गुजारा नहीं हो पाता। 30 दिन के हिसाब से देखा जाए तो हमको प्रतिदिन सिर्फ 66 रुपए ही मिलते हैं। इतने कम पैसे में किसी भी सरकारी विभाग में कोई कर्मचारी काम नहीं कर रहा है। सुशीला देवी हमारी रोज की आमदनी मनरेगा मजदूरों से भी कम है। जबकि हम किसी से कम मेहनत नहीं करते। हर मौसम में बच्चों के लिए भोजन पकाने और उन्हें परोसने के बाद बर्तन आदि साफ करते हैं। स्कूल के अन्य काम में भी सहयोग करते हैं। भानमती कई स्कूलों में सिलेंडर चोरी हो गए हैं अथवा किसी कारणवश नहीं हैं। ऐसे स्कूल में रसोइयों को चूल्हे पर लकड़ी जलाकर भोजन पकाना पड़ता है। शासनादेश के मुातबिक यह सही नहीं है लेकिन हेडमास्टर और शिक्षक दबाव बनाकर हमसे काम लेते हैं। कुसुम लता विभाग की ओर से वर्ष में सिर्फ एक बार हमें ड्रेस (साड़ी) खरीदने के लिए 500 रुपए दिए जाते हैं। जबकि भोजन पकाते समय कपड़े हर रोज गंदे होते हैं। ऐसे में विभाग को ड्रेस के लिए हमें कम से कम दो बार में दो हजार रुपये देना चाहिए पैसे देने चाहिए। राकेश्वरी कुछ हेडमास्टर अच्छे मसाले और खाद्य पदार्थ खरीदने में लापरवाही करते हैं। इससे भोजन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। जबकि अभिभावक और जांच करने वाले अधिकारी इसमें हमारी गलतियां साबित करते हैं। विभाग को ऐसे हेडमास्टर पर नजर रखने की जरूरत है। उर्मिला पाल हमें सिर्फ दो हजार रुपए मासिक के हिसाब से मानदेय दिया जाता है। वह भी कई माह से नहीं मिला। इतने कम पैसे में परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। यह मानेदय एक व्यक्ति की खुराकी के लिए भी पर्याप्त नहीं है। यशोदा देवी स्कूलों के कायाकल्प, उन्हें सजाने, संवारने के नाम पर लाखों रुपए का सालाना बजट दिया जाता है। जबकि उसके सापेक्ष कोई काम नहीं कराए जाते लेकिन हम रसोइयों को दो हजार रुपए पर पूरे माहभर भोजन पकवाया जाता है। यह सरासर हमारा शोषण है। सुजाहिन हम कड़ी मेहनत कर हर मौसम में स्कूल खुलने से पहले जाते हैं। भोजन बनाकर बच्चों को परोसते हैं। बच्चों के भोजन के बाद बर्तन से लेकर रसोई तक की सफाई करने के बाद घर जाते हैं लेकिन हमें मेहनत के सापेक्ष मानदेय नहीं दिया जाता। सीता इतने कम पैसे में पूरे महीने भोजन पकाना और स्कूल की अन्य कार्यों में सहयोग करना, प्रत्येक रसोइया ने अपना कर्तव्य मान लिया है लेकिन जिम्मेदारों को भी हमारी समस्याओं के बारे में सोचना चाहिए। हमारे साथ ही परिवार के लोग रहते हैं जिसमें बच्चे भी हैं। सुलोचना हम रसोइया शांतिपूर्ण तरीके से अपना काम करते हैं, यही कारण है कि हमारी मांगों को भी गंभीरता से नहीं लिया जाता। हकीकत यह है कि हमें भी अन्य कर्मचारियों की तरह अपनी मांगों को लेकर मुखर होने की जरूरत है। एक दिन काम बंद कर देने पर पूरे विभाग के समझ में आ जाएगा। चांदकली बोले जिम्मेदार जिले के परिषदीय स्कूलों में नियुक्त रसोइया भी बेसिक शिक्षा विभाग के परिवार हैं। उनकी मांगों को गंभीरता से लेकर प्राथमिकता से समाधान कराया जाएगा। समय समय पर शासन से मिलने वाली सुविधाओं से प्रत्येक रसोइयों को लाभान्वित कराया जाता है। इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए पॉक कला प्रतियोगिता का आयोजन कर उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता है। भूपेन्द्र सिंह, बीएसए
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।