न्यायिक आदेशों की अवहेलना में गर्व महसूस करते हैं अफसर; HC ने कलक्टर, SDM को लगाई फटकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम स्थगनादेश का उल्लंघन करते हुए एक महिला का घर ध्वस्त करने के लिए बागपत जिले के कलक्टर, एसडीएम और तहसीलदार को कड़ी फटकार लगाई।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम स्थगनादेश का उल्लंघन करते हुए एक महिला का घर ध्वस्त करने के लिए बागपत जिले के कलक्टर, एसडीएम और तहसीलदार को कड़ी फटकार लगाई। साथ ही टिप्पणी की कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के कार्यकारी अधिकारियों, विशेषकर पुलिस और नागरिक प्रशासन के अधिकारियों के बीच न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने में एक प्रकार का गौरव महसूस करने की संस्कृति विकसित हो गई है। ऐसा लगता है कि इससे उन्हें अपराधी होने का अपराध बोध होने की बजाय उपलब्धि का अहसास होता है। कोर्ट ने बागपत के एसडीएम सदर, तहसीलदार सदर व राजस्व निरीक्षक को सात जुलाई तक व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में यह स्पष्ट किया जाए कि न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए ध्वस्त की गई इमारत को सरकारी लागत पर उनके द्वारा पुनर्निर्माण और उसके मूल स्वरूप में बहाल करने का आदेश क्यों न दिया जाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने क्षमा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। मामले के तथ्यों के अनुसार क्षमा ने गत 15 मई को हाईकोर्ट से अंतरिम निषेधाज्ञा प्राप्त की थी, जिसमें उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत उसके खिलाफ शुरू की गई बेदखली और ध्वस्तीकरण की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि याची के निर्माण को ध्वस्त नहीं किया जाएगा और पांच जुलाई 2024 को जारी ध्वस्तीकरण आदेश के अनुक्रम में किसी भी वसूली पर भी रोक लगा दी गई थी। आरोप लगाया गया है कि गत 16 मई को एसडीएम व तहसीलदार के नेतृत्व में और पुलिस की सहायता से राजस्व अधिकारियों की टीम ने एक दिन पहले हुए न्यायालय के आदेश की कॉपी दिखाने के बावजूद उसके घर को ध्वस्त कर दिया।
इसके बाद याची ने संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत हाईकोर्ट में अर्जी दी ताकि संबंधित अधिकारियों को दंडित किया जा सके। अर्जी में हाईकोर्ट के आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने के लिए बागपत की सदर तहसील के एसडीएम अवनीश त्रिपाठी, सदर तहसीलदार अभिषेक कुमार, राजस्व निरीक्षक दीपक शर्मा और लेखपाल मोहित तोमर को दंडित करने की मांग की गई है। अर्जी के साथ वे तस्वीर भी दाखिल की गई हैं, जिनके बारे में कोर्ट ने कहा कि इनसे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि जब ध्वस्तीकरण चल रहा था, अधिकारी तब हाईकोर्ट का आदेश पढ़ रहे थे और फिर भी उन्होंने ऐसा काम किया।
इस संबंध में कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही आदेश अपलोड करने में देरी हुई हो, आदेश स्थायी अधिवक्ता की उपस्थिति में किया गया और यदि याची यह दावा करता है कि स्थगन आदेश किया गया है तो यह प्राधिकारियों का कर्तव्य है कि वे मकान गिराने जैसे कठोर कार्य से तब तक पीछे रहें, जब तक इस न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश किए जाने के तथ्य की पुष्टि नहीं हो जाती। कोर्ट ने कहा कि यह एक ऐसा मामला हो सकता है जहां प्रतिपूर्ति का आदेश दिया जाना चाहिए, जिसके लिए राज्य को पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता होगी।