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बोले मथुरा: बिना सुविधाओं के कैसे बनें प्रगतिशील किसान

Mathura News - मथुरा में लगभग 360000 किसान हैं, जिनमें से 312000 किसान सम्मान निधि ले रहे हैं। खेती में परंपरागत तरीके से कार्य करने वाले किसानों को जलवायु परिवर्तन, बिजली और उर्वरक की कमी जैसी समस्याओं का सामना...

Newswrap हिन्दुस्तान, मथुराThu, 26 June 2025 02:05 AM
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बोले मथुरा: बिना सुविधाओं के कैसे बनें प्रगतिशील किसान

मथुरा। जनपद में करीब 360000 किसान हैं, जिनमें से 312000 किसान सम्मान निधि ले रहे हैं। 331000 भूमि पर इस समय खेती की जा रही है। इस क्षेत्र में किसान परम्परागत खेती पर ही निर्भर हैं। ज्यादातर किसान गेहूं, आलू, धान, मूंग और बाजरा की ही खेती कर रहे हैं। क्षेत्र में कई किसानों द्वारा खेती में नये प्रयोग भी किए गये पर आसपास में परम्परागत खेती होने के चलते उन्हें खासी सफलता नहीं मिल सकी। मांट तहसील क्षेत्र में तमाम गांव ऐसे हैं, जहां बांगर व खादर दोनों तरह की कृषि भूमि है, पर बांगर की अपेक्षा खादर की जमीन में खेती करने में लागात कम आती है।

खादर में अधिकतर दो ही फ़सल हो पाती हैं, क्यों कि आधे जून से लेकर अगस्त तक वहां यमुना का पानी भर जाता है। यमुना भी हर बार बाढ़ आने पर अपना रास्ता बदल देती है, जिसके चलते खादर की जमीनों पर कब्जे को लेकर विवाद चलते रहते हैं। बांगर में खेती करने वाले किसान फसल आसानी से कर लेते हैं, पर यहां भी कभी कभार देवीय आपदा किसानों को परेशान कर देती है। कैसे बनें प्रगतिशील किसान:क्षेत्र में कई किसान नया प्रयोग करने का प्रयास करते हैं पर एक तो समस्या है कि उन्हें उचित जानकारी नहीं मिल पाती है। कभी कभार कृषि गोष्ठी कृषि विभाग द्वारा जानकारी दी जाती हैं, पर उसमें आने वाले अधिकारी प्रॉपर जानकारी किसानों के साथ साझा नहीं कर पाते हैं। किसानों का कहना है कि आधी अधूरी जानकारी के चलते किसान फिर उसी परम्परागत खेती को ही करने लगते हैं। जलवायु प्रदूषण और अधिक पैदावार के चक्कर में इलाके में चना, मटर, मक्का जैसे मोटे अनाज की खेती पूरी तरह बंद सी ही हो चुकी है। पानी बिजली, उर्वरक से परेशान हैं किसान: किसानों को प्रगतिशील बनने से रोकने में सरकारी व्यवस्था भी कम जिम्मेदार नहीं है। पानी की बात करें तो जो जमीन माइनर के पानी के भरोसे हैं। हालात यह हैं कि माईनरों की लम्बे समय से सफाई न होने से उनमें सिल्ट जमा है और टेल तक पानी ही नहीं पहुंच रहा है। पर्याप्त बिजली न मिलने से ट्यूवबेल से सिंचाई करने वाले किसान परेशान हैं। उर्वरक की स्थिति यह है कि पर्याप्त मात्रा में सरकारी गोदामों पर डीएपी, यूरिया नहीं मिल पाता, दुकानदार मनमानी क़ीमत पर बेचते हैं और उसमें भी पेस्टीसाइड भी लेना पड़ता है, चाहे जरूरत हो या नहीं। सभी तरह के बीजों में भी मनमानी की जा रही है। किसान दिन रात मेहनत करता है और उसकी मेहनत पर कभी बेमौसम बरसात तो कभी बेसहारा पशु पानी फेर देते हैं। फसल बर्बाद होने पर किसान रो जाता है। ऐसे में जल्द मुआवजा मिले ऐसी व्यवस्था हो। -रेनू भारती खेती के लिये समय से न बिजली मिल रही न पानी, उर्वरक के रेट हर वर्ष बढ़ते जा रहे हैं, भारत कृषि प्रधान देश है, सरकार को पुख्ता योजना बनानी चहिये। नई तकनीक के बारे में जानकरियां देनी चाहिए। -सोनू पटवारी परम्परागत खेती के स्थान पर नये प्रयोग करने को किसान तैयार हैं पर उसकी सही जानकारी लिये बिना जोखिम नहीं उठाया जा सकता। किसान को सही दिशा देने की जरूरत है। -राज बिहारी परम्परागत खेती से हट कर कुछ किसान सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं, जिसमें अच्छा मुनाफा हो रहा है और लागत भी कम आती है। किसानों को नयी-नयी जानकारी दी जानी चाहिये। -बाबूलाल शर्मा कृषि विभाग से जुड़े अधिकारियों को चाहिए कि समय-समय पर किसानों के बीच जाएं और उन्हें बेहतर खेती के तरीके बताएं। सिर्फ औपचारिकता निभाने से काम नहीं चलने वाला। -कृष्ण कान्त शर्मा किसानों के सामने बड़ी समस्या बेसहारा गोवंश हैं। पूरी-पूरी रात जाग कर खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। किसान परेशान है। झटका मशीन लगाने से कुछ किसानों की मौत भी हो चुकी है। -केहरी सिंह नहर और माइनरों में समय से पानी नहीं मिल पाता है। खेती प्रभावित होती है। नहर व बंबों की समय समय पर सफाई होनी चाहिए, जिससे किसान को फसल को समय पर पानी उपलब्ध हो सके। -विष्णू सारस्वत मैं बड़ा किसान हूं और प्रगतिशील किसान बनने की चाह रखता हूं। कई बार परम्परागत खेती से हट कर प्रयोग भी किए हैं। कुछ नयी-नयी जानकारी मिलें तो खेती में बहुत कुछ संभावनाएं हैं। -विजेंद्रपाल सिंह खाद बीज व कीटनाशक दवाओं के नाम पर खुली लूट हो रही है और सरकारी अमला चुप्पी साधे बैठा है। सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिये, ताकि आगे ऐसी गड़बड़ी न हो सके। -ललित चौधरी मैंने कई तरह के प्रयोग खेती में करके देखे हैं, और अच्छा रिजल्ट रहा है लेकिन अब बढ़ती उम्र के कारण और प्रयोग सम्भव नहीं हैं। ऐसे में जो खेती चल रही है, उसी को करने में सही लगता है। -पदम सिंह शर्मा

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