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बोले मथुरा-वृंदावन ने विधवाओं को दिया हौसला और जीने का हुनर

Mathura News - बोले मथुरा-विधवाओं के लिए वृंदावन में एक सरकारी और करीब आधा दर्जन निजी विधवा आश्रम हैं,

Newswrap हिन्दुस्तान, मथुराTue, 24 June 2025 04:46 AM
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बोले मथुरा-वृंदावन ने विधवाओं को दिया हौसला और जीने का हुनर

विधवाओं के लिए वृंदावन में एक सरकारी और करीब आधा दर्जन निजी विधवा आश्रम हैं, जहां विधवाओं को आवश्यक सुविधाएं मुहैया करायी जा रही हैं। ऐसी भी विधवाएं हैं जो इन आश्रमों में नहीं रहना चाहतीं और किराये के कमरों में जीवन बसर कर रही हैं। अगर ये कहा जाए कि कन्हैया की नगरी विधवाओं के जीवन में खुशी के रंग भरने का कार्य कर रही है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक समय विधवाओं को समाज से अलग-थलग कर दिया जाता था, वहीं अब विधवा महिलाएं आत्मनिर्भर बनकर समाज में सम्मान के साथ रह रही हैं। सदियों से ब्रजभूमि में शरण लेने वाली तिरस्कृत की गईं देशभर की विधवाएं अब सिर्फ उपेक्षित जीवन नहीं जी रही, बल्कि अपने हौसलों से एक नई सुबह की इबारत लिख रही हैं।

वृंदावन में रहने वाली इन विधवाओं ने विभिन्न स्वयं सहायता समूहों और संगठनों के सहयोग से कढ़ाई, सिलाई, अगरबत्ती निर्माण, पूजा सामग्री निर्माण जैसे कार्यों में निपुणता हासिल की है। यह बदलाव न सिर्फ उनके जीवन में आत्मसम्मान और आर्थिक स्थिरता लेकर आया है, बल्कि यह समाज को यह संदेश भी दे रहा है कि परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, संकल्प और समर्थन से हर बदलाव संभव है। ब्रजभूमि की ये विधवाएं अब सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। आज धर्मभूमि वृंदावन की पवित्र धरा विधवा महिलाओं की एक ऐसी शक्ति, जो विषम हालातों में भी उम्मीद का दीप जलाए रखती हैं। उसके प्रतीक के रूप में पहचान बनती जा रही है। ब्रजभूमि से रहा सदियों पुराना नाता: ब्रजभूमि सैकड़ो वर्षों से विधवाओं को आश्रय देने के लिए महत्वपूर्ण केंद्र रही है। यहां की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण, विधवाएं अक्सर अपने जीवन के अंतिम वर्षों में यहां आकर बस जाती हैं। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों से विधवाओं का आश्रय स्थल वृंदावन वर्षों से रहा है। वैसे तो देश में अनेकों तीर्थस्थल हैं, लेकिन जो मान- सम्मान विधवाओं को वृंदावन में मिला, वह और कहीं नहीं मिला। यही कारण रहा कि विधवाओं को अपनों से तिरस्कृत होने पर वृंदावन सहारा देता आया। कन्हैया के भजन और भक्ति में डूबकर यहां अपना जीवन गुजारा जाता रहा है। आज अकेले वृंदावन में भारत के विभिन्न राज्यों की लगभग 2 हजार विधवाएं सरकारी और निजी आश्रमों में रह रही हैं। पहले जीवन में अंधकार ही अंधकार था। वृंदावन आकर मुझे कृष्ण नाम जपने का सुकून मिला। अब रोज मंदिर जाती हूं और प्रभु के भजन गाकर जीती हूं। वहीं सरकार द्वारा प्रदत्त रोजगार की लाभकारी योजनाओं से आत्मनिर्भर बनने में अच्छा लगता है। -गंगा देवी घरवालों ने पति की मृत्यु के बाद मुझे छोड़ दिया, लेकिन श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन ने मुझे अपनाया। सिलाई-कढ़ाई सीखकर अब खुद कमाती हूं। आत्मनिर्भर बनकर गर्व होता है। ठाकुरजी की भक्ति से नया जीवन जीने की शक्ति आज मिल रही है। -रेखा पति की मृत्यु के बाद सबने मुंह मोड़ लिया। वृंदावन में सेवा का मार्ग मिला और मैंने दूसरों की मदद को अपना उद्देश्य बना लिया। आत्मनिर्भरता का महत्व समझकर मैं अपने जीवन को सार्थक बना रही हूं। पोशाक आदि वस्तुओं का निर्माण करना मैं सीख चुकी हूं। -निर्मला देवी मैंने पति के जाने के बाद बोलना छोड़ दिया था। अब वृंदावन में हर दिन गा रही हूं, भजन से जीवन में नई ऊर्जा आई है। महिला आश्रय सदन में सरकार के प्रयास हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है। आज वृंदावन में रहकर जीवन कोई बोझ नहीं लगता है। -मुन्नी देवी यहाँ आकर पहली बार लगा कि मैं अकेली नहीं हूं। आश्रम में सब बहनों की तरह हूं। हम मिलकर ठाकुरजी की पोशाक, कपड़ों के अन्य सामान बनाते हैं और अब वृंदावन में आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा मुझे मिली है, जिससे मैं अपने जीवन को एक नए दिशा में ले जा सकती हूं। -भूरी बाई कभी लगता था जीवन यहीं थम गया। लेकिन वृंदावन में भजन-कीर्तन और आश्रम की बहनों का साथ मिला। अब मुस्कुराना सीख गई हूं। सभी के साथ स्वरोजगार के बहुत कुछ कार्य सीखने को मिल रहे हैं। जीवन अब नीरस नहीं लगता। -नीती

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