नगर निगम जागा, महिला को 10 साल बाद मिली पारिवारिक पेंशन
Lucknow News - नगर निगम के कर्मचारी धर्मेंद्र कुमार का 2016 में निधन हो गया था। उनकी पत्नी सारिका को 10 वर्षों से पारिवारिक पेंशन नहीं मिल रही थी। हाल ही में हिन्दुस्तान अखबार में इस मुद्दे को उठाने के बाद नगर निगम...

नगर निगम के जोन छह के कर विभाग में कार्यरत द्वितीय श्रेणी लिपिक धर्मेंद्र कुमार का 24 जून 2016 को निधन हो गया था। उनकी सेवा पुस्तिका और व्यक्तिगत पत्रावली गुम हो जाने के कारण उनकी पत्नी सारिका को बीते दस वर्षों से पारिवारिक पेंशन नहीं मिल पा रही थी। आखिरकार शुक्रवार को उन्हें पारिवारिक पेंशन मिल गयी। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने बोले लखनऊ पेज पर नगर निगम कर्मचारियों की समस्याओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसका असर हुआ है। खबर छपने के बाद नगर निगम प्रशासन हरकत में आया और वर्षों से लंबित कर्मचारियों की समस्याओं का निराकरण कराने लगा है।
अब 10 वर्ष से भटक रही कर्मचारी की विधवा को उसका हक मिला है। नगर निगम कर्मचारी संघ ने भी इसके लिए प्रयास किया। नगर निगम प्रशासन के सहयोग से डुप्लीकेट सेवा पुस्तिका तैयार कराई गई। इसके बाद 27 जून 2025 को सारिका को पारिवारिक पेंशन हेतु संपूर्ण प्रक्रिया पूर्ण कर पेंशन बुक सौंप दी गई। नगर निगम कर्मचारी संघ के महामंत्री शमील एखलाक ने उन्हें पेंशन बुक सौंपी। उन्होंने बताया कि कई ऐसे कर्मचारी या उनके आश्रित हैं जिन्हें केवल दस्तावेजी कमी के कारण वर्षों से उनका हक नहीं मिल पा रहा है। खबर छपने के बाद अब प्रशासन ने पहल की है। उम्मीद है बाकी लंबित मामलों का भी शीघ्र समाधान होगा। हिन्दुस्तान व निगम प्रशासन का आभार : अध्यक्ष नगर निगम कर्मचारी संघ के अध्यक्ष आनंद वर्मा ने कर्मचारी हित में उठाए गए इस सकारात्मक कदम के लिए हिन्दुस्तान अखबार व नगर निगम प्रशासन का आभार जताया है। उन्होंने मांग की कि जिन कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका या व्यक्तिगत पत्रावली गुम हो चुकी है, उनकी डुप्लीकेट सेवा पुस्तिका बनवाकर सेवा संबंधी सभी लाभ शीघ्र उपलब्ध कराया जाएगा। प्रशासन इस दिशा में काम कर रह रहा है। स्वर्गीय धर्मेंद्र कुमार की पत्नी सारिका ने भी हिन्दुस्तान अखबार व नगर निगम कर्मचारी संघ का आभार जताया है। कहा कि यदि संगठन ने लगातार प्रयास न किया होता और अखबार में कर्मचारियों की समस्याएं न प्रकाशित होती तो उन्हें शायद इतनी जल्दी पेंशन का लाभ नहीं मिल पाता। हिन्दुस्तान ने उनके जैसे कई पीड़ित परिवारों की आवाज़ को मंच दिया है।
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