सिर्फ संरक्षण और संवर्धन से नहीं और नश्ल सुधार से सुधरेगी पशुपालकों की हालत
Lalitpur News - बोले ललितपुरफोटो- 1, 2कैप्सन- मड़ावरा ग्राम पंचायत स्थित पशु चिकित्सालय, समस्याएं बताने को एकत्रित पशुपालकसिर्फ संरक्षण और संवर्धन से नहीं और नश्ल सुधा

बोले ललितपुर फोटो- 1, 2 कैप्सन- मड़ावरा ग्राम पंचायत स्थित पशु चिकित्सालय, समस्याएं बताने को एकत्रित पशुपालक सिर्फ संरक्षण और संवर्धन से नहीं और नश्ल सुधार से सुधरेगी पशुपालकों की हालत पशुपालकों को दिक्कतों से निपटने के लिए बताने चाहिए वैज्ञानिक तरीके, खुराक की भी दें जानकारी पशुपालन विभाग के पशुचिकित्सकों को उपलब्ध कराना चाहिए जनपद के मवेशियों को बेहतर उपचार दूरस्थ क्षेत्रों में दूध की बेहतर कीमत दिलाने की दिशा में जिम्मेदारों को उठाने चाहिए आवश्यक कदम ललितपुर/मड़ावरा। भारतीय समाज में पशुओं को पशुधन इसलिए बताया गया कि लोग इनकी महत्ता को पहचाने और इनके संरक्षण, संवर्धन और इनकी बेहतरी के लिए आवश्यक कदम उठाएं, जिससे इन बेजुबान पशुओं से इंसानी जरूरतें बेहतर ढंग से पूरी होती रहें।
हालांकि काफी लंबे समय से पशुपालन को सिर्फ दुग्ध उत्पादन तक के सीमित नजरिए से देखा और पाला जा रहा है। जिसकी वजह से यह नुकसानदायक रोजगार हो गया और लोगों ने इससे अपनी दूरी बना ली। पशुपालन विभाग यह सबकुछ देखता रहा और स्थितियों से निपटने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। विभागीय क्रियाकलापों को भी टीकाकरण और रिपोर्ट बनाने तक सीमित कर दिया। इस संबंध में हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए ग्रामीणों ने बताया कि दशकों पहले खेतीबाड़ी की परिकल्पना बिना पशुपालन के संभव ही नहीं थी। वह लोग दुग्ध उत्पादन के साथ मवेशियों के गोबर को एक स्थान पर एकत्रित करते रहते थे। प्रत्येक किसान पहले आठ से दस मवेशियों को पालते थे। लगभग एक वर्ष में जब गोबर खाद में तब्दील हो जाता था तब उसको खेत की मिट्टी में मिलाकर फसलों की बुआई करते थे। इस तरह होने वाली उपज हानिकारक रासायनिक तत्वों से मुक्त रहती थी। इस उपज को खाने से व्यक्ति बीमार नहीं पड़ता था और उसकी सेहत भी अच्छी रहती थी। बदलते समय के साथ डीएपी और यूरिया का चलन बढ़ने से ग्रामीणों की जरूरत इससे पूरी होने लगी और गोबर अनुपयोगी की श्रेणी में आ गया। इसकी वजह से पशुओं को सिर्फ दुग्ध उत्पान के लिए पालना किसानों को महंगा लगने लगा और वह लोग पशुपालन से अपनी दूरी बनाने लगे। उन्होंने पशुओं की खुराक पर ध्यान देना बंद कर दिया, जिससे उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता पर बहुत बुरा असर पड़ने लगा। ग्रामीणों में होने वाले इस बदलाव को रोकने के लिए कृषि और पशुपालन विभाग ने कोई ध्यान नहीं दिया और इसका प्रभाव वृहद स्तर पर देखने को मिलने लगा। पशुपालन विभाग ने खुद को खुरपका और मुंहपका के टीकाकरण और मवेशियों के उपचार तक तक सीमित कर लिया। दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए नश्ल सुधार उसके एजेंड से ही बाहर हो गया। ग्रामीणों ने बताया कि बुंदेलखंड क्षेत्र में अन्ना मवेशियों से होने वाले नुकसान को ध्यान में रखते हुए पिछले कुछ वर्षों से गोवंश आश्रय स्थल बनाए गए हैं। जिनमें अन्ना मवेशियों को संरक्षित करने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन उनकी नश्ल सुधार की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। उनके मुताबिक गोवंशों की यदि नश्ल सुधारी जाए तो गोशाला में संरक्षित गोवंशों को लोग अपने घरों में पालना शुरू कर देंगे और सरकार पर बोझ कम हो जाएगा। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि रासायनिक खाद के इस्तेमाल से उपजा अन्न सेहत खराब कर रहा है। इसलिए बेहतर सेहतमंद उपज के लिए गोबर की खाद जरूरी है और पशुपालन बगैर गोबर मिलना संभव नहीं है। सिर्फ इतना ही नहीं, गोबर से गोबर गैस, खाद, गोबर के लट्ठे बनाकर कारोबार किया जा सकता है। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि जनपद में पशु चिकित्सालयों के जर्जर ढांचे को भी सुधार की आवश्यकता है। इनको अत्याधुनिक बनाने के साथ विभिन्न सुविधाओं से लैस करना चाहिए, जिससे किसानों और पशुपालकों के पशुओं को समय से त्वरित उपचार मिल सके। फोटो- 3 ललितपुर। खेती किसानी के साथ पशुपालन करने वाले पिसनारी निवासी हरपाल कुशवाहा ने बताया कि पशुपालन को सिर्फ दुग्ध उत्पादन तक सीमित नहीं रखना और देखना चाहिए। मवेशियों के गोबर और गोमूत्र का भी उपयोग तथा उससे बढ़ने वाली उपज पर भी ध्यान देने की जरूरत है। बहुउद्देश्यीय नजर से पशुपालन हमेशा लाभदायक नजर आएगा। फोटो- 4 ललितपुर। पहाड़ीकलां निवासी कृषक एवं पशुपालक प्रकाश सिंह लोधी मवेशियों की खुराक बढ़ती जा रही है जबकि दूध की कमीत बढ़ती महंगाई के क्रम में नहीं बढ़ी है। पशुपालन में मेहनत अधिक और आमदनी बहुत कम है। इसलिए लोग इस कारोबार से दूरी बना रहे हैं। दूध का मूल्य हर हाल में बढ़ना चाहिए, जिससे इस कारोबार को आक्सीजन मिल सके। फोटो- 5 ललितपुर। अनुभवी किसान एवं पशुपालक कोमल कुशवाहा निवासी साढ़ूमल ने बताया कि मवेशियों को समय-समय पर रोग हो जाया करते हैं। जिनके उपचार के लिए पशुचिकित्सालय संचालय संचालित हो रहे हैं। लेकिन, इनमें मवेशियों का बेहतर उपचार नहीं हो पाता है। जिसकी वजह से तमाम बार मवेशियों की मौत हो जाया करती है। फोटो- 6 ललितपुर। मड़ावरा निवासी किसान एवं पशुपालक जाहर सिंह ने बताया कि गांवों में अब मवेशियों को लोग दूध बेचन के लिए नहीं पालते हैं। उन्होंने अपने परिवारीजनों को शुद्ध दूध, दही, घी आदि मुहैया कराने के लिए मवेशियों को पाल रखा है। बढ़ते भूसा, चोकर, चूनी और खली आदि के दाम की वजह से पशुपालन मुनाफे का काम नहीं रह गया है। फोटो- 7 ललितपुर। पिसनारी ग्राम पंचायत में रहने वाले किसान राजकुमार सिंह पशुपालन भी करते हैं। उन्होंने बताया कि सिर्फ गोशाला बनाने भर से काम नहीं चलेगा। मवेशियों को लेकर किसानों के मन मस्तिष्क में पैदा हो चुकी सोंच को बदलना होगा। वह इसको बोझ समझने के बजाए एक कारोबार के रूप में माने और दूध से दही, घी, मट्ठा आदि बनाकर बेचें। फोटो- 8 ललितपुर। पीड़ार ग्राम पंचायत में रहने वाले किसान एवं पशुपालक पंचम सिंह ने बताया कि पहले पशुपालन से कई लाभ हुआ करते थे। मवेशियों के गोबर से किसानों को आसानी के साथ जैविक खाद उपलब्ध हो जाया करती थी। जिसके उपयोग से खेत की मिट्टी उपजाऊ होती थी और फसलों की पैदावार बहतर बनी रहती थी। अब ऐसा नहीं रह गया है। फोटो- 9 ललितपुर। खेती किसानी करने वाले उदेता अहिरवार निवासी छितरापुर ने बताया कि कागजों में भले ही काम चल रहा हो लेकिन मवेशियों की नश्ल सुधार की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। जिसका ग्रामीण परिवेश पर बहुत व्यापक असर हो रहा है। किसान पशुपालन से दूर होते जा रहे हैं। जिसकी वजह से उनको खेतीबाड़ी भी महंगी होती जा रही है। फोटो- 10 ललितपुर। इकौना ग्राम पंचायत में रहने वाले कृषक एवं पशुपालक पच्चू लोधी ने बताया कि पशुपालन से जुड़े बिना ग्रामीण अपना जीवनयापन नहीं कर सकते हैं। यह खेतीबाड़ी का सहायक कार्य है। लेकिन, मवेशियों के कम दूध देने से ग्रामीणों की रुचि इससे हटती जा रही है। जिस कारण वह पशुपालन से दूर हो रहे हैं। इसे बढ़ावा देने को कदम उठाने चाहिए। -- समस्याएं पशु चिकित्सालयों का जर्जर ढांचा टीकाकरण व उपचार तक सीमित सेवाएं गोबर व गोमूत्र का उपयोग नहीं करना कृषकों को दूध का सही मूल्य न मिलना नश्ल सुधार की तरफ नहीं किसी का ध्यान सुझाव गोबर, गो मूत्र का खाद में कराएं इस्तेमाल नश्ल सुधार के लिए बड़ा अभियान चलाना दूध से घी, दही, मट्ठा आदि उत्पाद बनाना दूध की बाजारू कीमत को बढ़ाना आवश्यक पशु चिकित्सालयों का कायाकल्प करना
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