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सफाई कर्मचारियों की बढ़े संख्या, हरपुर रजवाहा से जुड़े बांसी नदी तो बचे गांव की पहचान

Kushinagar News - चैती मुसहरी ग्रामसभा, जो यूपी-बिहार सीमा पर स्थित है, आज भी विकास की कमी से जूझ रहा है। यहां सफाई, सड़क, पानी और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। गांव में केवल एक सफाई कर्मचारी है, जिससे सफाई...

Newswrap हिन्दुस्तान, कुशीनगरThu, 19 June 2025 05:33 AM
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सफाई कर्मचारियों की बढ़े संख्या, हरपुर रजवाहा से जुड़े बांसी नदी तो बचे गांव की पहचान

यूपी-बिहार सीमा पर स्थित चैती मुसहरी ग्रामसभा आज भी विकास की दौड़ में पीछे है। यहां मूलभूत सुविधाओं, जैसे सफाई, सड़क, पानी और शिक्षा व्यवस्था की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है। इसी गांव से होकर पौराणिक काल की बांसी नदी भी बहती है, जो आज अपने अस्तित्व को खोती नजर आ रही है। गांव में एकमात्र सफाई कर्मचारी की तैनाती है, जिससे पूरे गांव को स्वच्छ रखना मुश्किल है। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए ग्रामसभा के लोगों ने अपनी परेशानियों को साझा किया और उसके समाधान की मांग की। : यूपी व बिहार की सीमा पर स्थित कुशीनगर जनपद के विशुनपुरा ब्लॉक का ग्रामसभा चैती मुसहरी आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है।

करीब 13 हजार की आबादी वाला यह गांव 11 टोले में विभाजित है। बावजूद इसके, यहां विकास की तस्वीर बेहद धुंधली है। साफ-सफाई से लेकर सड़कों, नाली, जलापूर्ति और नदी संरक्षण तक, हर स्तर पर यह गांव उपेक्षित है। जिम्मेदारों की बेरुखी, योजनाओं की धीमी रफ्तार और जवाबदेही के अभाव ने इस गांव की हालत को बद से बदतर बना दिया है। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए लोगों ने कहा कि, गांव की सबसे बड़ी समस्या सफाई व्यवस्था को लेकर है। इतनी बड़ी आबादी वाले और 11 टोले में फैले इस गांव में मात्र एक सफाई कर्मचारी कार्यरत है। अकेला व्यक्ति पूरे गांव की सफाई व्यवस्था देख रहा है, जो व्यावहारिक रूप से असंभव है। खासकर बरसात के दिनों में स्थिति और भी भयावह हो जाती है। नालियों का अभाव, कचरे का जमाव और गंदगी के कारण गांव में बीमारियों के फैलने का खतरा बना रहता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि, कई बार अधिकारियों से शिकायत की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वहीं, लोगों ने कहा कि गांव की सड़कों की हालत बहुत खराब है। लगभग 50 प्रतिशत सड़कें जर्जर अवस्था में हैं। कहीं गड्ढे हैं, तो कहीं कीचड़ भरी पगडंडियां। गांव के अंदरूनी हिस्सों की स्थिति तो और भी बदतर है। सड़कें टूटी हैं और उनके दोनों तरफ नाली की व्यवस्था नहीं है। इससे बरसात के दिनों में जलभराव हो जाता है। लोगों के घरों में पानी घुसना आम बात हो गई है। ग्रामीणों का कहना है कि, बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कत होती है और बुजुर्गों व बीमार लोगों को अस्पताल ले जाना भी मुश्किल हो जाता है। लोगों ने कहा कि, गांव में पेयजल की गंभीर समस्या है। साल 2022 में यहां ओवरहेड टैंक निर्माण की योजना शुरू हुई थी, लेकिन निर्माण की गति इतनी धीमी रही कि दो साल बीतने के बाद भी यह टैंक आज तक पूरा नहीं हो सका है। इस टैंक से शुद्ध जल आपूर्ति की योजना थी, लेकिन इसके अधूरेपन के कारण ग्रामीण आज भी छोटे-छोटे हैंडपंपों पर निर्भर हैं। इन हैंडपंपों से निकलने वाला पानी न सिर्फ गंदा होता है बल्कि कई बार स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल भी साबित होता है। लोगों ने कहा कि गांव में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी कमजोर है। प्राथमिक और जूनियर स्तर के विद्यालय तो हैं, लेकिन पर्याप्त शिक्षकों की कमी और सुविधाओं के अभाव में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। अधिकांश अभिभावकों को निजी स्कूलों की ओर रुख करना पड़ता है, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए बोझ है। वहीं, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की दूरी अधिक होने और स्थानीय स्वास्थ्य उपकेंद्र की निष्क्रियता के कारण बीमार लोगों को इलाज के लिए पडरौना या अन्य कस्बों की ओर भागना पड़ता है। लोगों ने कहा कि गांव के कई लोगों ने पंचायत, ब्लॉक और जिला स्तर तक बार-बार समस्याएं उठाईं, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। वहीं, जब जनप्रतिनिधि वोट मांगने आते हैं तो कहते हैं, सब बना देंगे, लेकिन दो साल से टंकी नहीं बनी, सड़कें और गंदगी की हालत बद से बदतर हो गई है। हमें पीने का साफ पानी नहीं मिलता। मगर, किसी को हमारी फ्रिक थोड़े है। ----- बांसी नदी खो रही है अपना अस्तित्व : लोगों ने कहा कि, गांव की पहचान पौराणिक काल की बांसी नदी से भी जुड़ी है। यह नदी अब धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रही है। लोगों का कहना है कि यह नदी प्राचीन काल से बहती आ रही है और यही नदी आज यूपी-बिहार की सीमा का निर्धारण भी करती है। लेकिन प्रशासन की उदासीनता और संरक्षण के अभाव में नदी गंदगी और अवरोधों से भर गई है। लोगों ने बताया कि अगर इस नदी को चैती खास इलाके के हरपुर रजवाहा से जोड़ दिया जाए तो इसमें फिर से जलप्रवाह शुरू हो सकता है और यह नदी फिर से जीवंत हो सकती है। हालांकि, कुछ समय पहले तत्कालीन डीएम रमेश रंजन के निर्देश पर ग्रामसभा की ओर से मनरेगा के तहत नदी की सफाई कराई गई थी, लेकिन पानी का बहाव न होने से इसमें फिर से जलकुंभियां उग आईं हैं। ---------------------- उपेक्षित है अंत्येष्टि स्थल और शौचालय : लोगों ने कहा कि, गांव के बाहर बांसी नदी के किनारे एक अंत्येष्टि स्थल बना हुआ है, जिसका रख-रखाव नहीं के बराबर है। यहां आने-जाने का रास्ता भी ठीक नहीं है। शौचालय बना है, लेकिन उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। वर्षों से इसकी साफ-सफाई नहीं हुई है और अब उस पर झाड़ियां उग आई हैं। ग्रामीणों को अंतिम संस्कार के दौरान भारी असुविधा होती है। कई बार शवों को कंधों पर लेकर कीचड़ भरे रास्ते से नदी तक ले जाना पड़ता है। इसे ठीक कराने की जरूरत है। प्रस्तुति : गंगेश्वर त्रिपाठी/सुनील कुमार मिश्र/नीरज श्रीवास्तव ----------------------------------- शिकायतें : 1. इतनी बड़ी आबादी के बावजूद सिर्फ एक सफाईकर्मी नियुक्त है, जिससे नियमित सफाई नहीं हो पाती है। 2. गांव की लगभग आधी सड़कों की हालत बेहद ही खराब है और वह गड्ढों और कीचड़ से भरी रहती हैं। 3. नालियों का अभाव है, जिससे बरसात के समय गांव के अधिकांश हिस्सों में जलभराव हो जाता है। 4. दो साल से ओवरहेड टैंक निर्माण अधूरा पड़ा है, जिससे लोग अब भी हैंडपंप का पानी पीने को मजबूर हैं। 5. नदी किनारे बने श्मशान घाट की स्थिति खराब है और वहां बने शौचालय की सफाई वर्षों से नहीं हुई हैं। -------------------------------- सुझाव : 1. सफाईकर्मियों की संख्या बढ़े और आबादी के हिसाब से पांच सफाईकर्मियों की स्थायी तैनाती की जाए। 2. सड़क और नाली का कार्य हो। सभी जर्जर सड़कों की मरम्मत और नए नालों का निर्माण कराया जाए। 3. ओवरहेड टैंक का कार्य जल्द पूरा हो ताकि प्रत्येक घर को जलापूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित हो सके। 4. बांसी नदी को हरपुर रजवाहा से जोड़कर पुनर्जीवित करने की परियोजना पर काम शुरू किया जाए। 5. अंत्येष्टि स्थल के लिए रास्ता, शौचालय व अन्य सुविधाओं के साथ घाट को सुव्यवस्थित किया जाए। -------------------------------- यह दर्द गहरा है:: बरसात में सड़क पर निकलना मुश्किल हो जाता है। कीचड़ और पानी से भरे रास्ते से बच्चों को स्कूल जाना पड़ता है। मुखलाल ----- गांव में गंदगी बढ़ती जा रही है। एक सफाईकर्मी से इतनी बड़ी आबादी वाले गांव की सफाई संभव नहीं है। संख्या बढ़े। -पारस ---- दो साल से ओवरहेड टैंक अधूरा पड़ा है, जिसके चलते पानी की किल्लत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इसे चालू कराया जाए। -त्रिवेणी ---- पौराणिक काल की बांसी नदी सूख रही है। अगर इसे हरपुर रजवाहा से जोड़ दिया जाए तो फिर से इसे जीवन मिल सकता है। -अभिनंदन कुशवाहा ---- अंत्येष्टि स्थल की हालत बहुत खराब है। वहां जाने में डर लगता है और शौचालय पूरी तरह बेकार हो चुका है। -धीरज मद्धेशिया ---- हर चुनाव में वादे मिलते हैं, लेकिन न सड़क बनती है, न पानी आता है और न ही सफाई होती है। इस पर ध्यान देना होगा। -डॉ. मुन्ना कुमार निषाद ---- फोटो 118 रमेश प्रसाद गांव में एक भी नाली नहीं बनी है। बारिश में पानी सीधे घरों में घुस जाता है। शिकायत के बाद भी कोई सुनवाई नहीं होती। -रमेश प्रसाद ---- इतनी बड़ी आबादी के बीच बजट का अभाव होने से भी काम को प्रभावित करता है। अगर गांव को विभाजित कर दिया जाए तो विकास संभव है। -दीपक चौहान छोटे हैंडपंपों का पानी गंदा है। इसके पीने से कई बार बच्चे बीमार हो जाते हैं। अस्पताल भी दूर है और इलाज महंगा है। -रविन्द्र गुप्ता बांसी नदी के किनारे पहले खेती होती थी। अब उसमें पानी नहीं होने से जमीनें बंजर होती जा रही है। इसका पुर्नरूद्धार हो। -संत जोगिन्दर दास सफाई कर्मचारी महीने में एक बार आता है और बाकी दिन गांव गंदगी से भरा रहता है। साफ-सफाई की स्थिति खराब है। -हंसराज भारती एक एएनएम सेंटर गांव है, लेकिन टीकाकरण के अलावा कोई लाभ नहीं मिलता है। पीएचसी की स्थापना होनी चाहिए। -दीपनारायण पटेल हम चाहते हैं कि सरकार हमारी आवाज सुने और गांव में भी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करे ताकि हमें भी मूलभूत सुविधाएं मिले। -राजवंशी यादव चैती मुसहरी में अब तस्करों की आहट नहीं, सीसीटीवी व ग्रामीणों की सतर्कता बना कवच -ग्राम प्रधान और पुलिस की सक्रियता से गांव के रास्ते होने वाली शराब और पशु तस्करी रूकी पडरौना। जिले के विशुनपुरा ब्लॉक अंतर्गत यूपी-बिहार सीमा पर बसे चैती मुसहरी गांव की पहचान कभी तस्करों के सुरक्षित मार्ग के रूप में होती थी। वर्षों तक यह इलाका शराब और प्रतिबंधित पशुओं की तस्करी के लिए इस्तेमाल होता रहा। लेकिन, अब तस्वीर बदल गई है। प्रशासन की सख्ती, ग्राम प्रधान की पहल और ग्रामीणों की जागरूकता ने इस रास्ते को तस्करों के लिए असुरक्षित बना दिया है। कुछ वर्ष पहले बिहार में शराबबंदी के बाद यूपी के सीमावर्ती इलाकों से बिहार में शराब की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है। इसके साथ ही प्रतिबंधित पशुओं की भी तस्करी इसी गांव के रास्ते से की जाती थी। क्योंकि चैती मुसहरी की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यूपी-बिहार सीमा से सटा हुआ है। इसके चलते पगडंडी रास्तों से तस्कर अपना काम आसानी से कर लेते थे। मगर, पुलिस की सतत निगरानी और गांव स्तर पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम ने इन रास्तों को अब असुरक्षित बना दिया है। ग्राम प्रधान डॉ. ओमप्रकाश गौतम की अगुवाई में गांव के प्रमुख पगडंडी रास्तों पर सीसीटीवी कैमरे लगवाए गए। कैमरों की मौजूदगी ने तस्करों की गतिविधियों पर नजर रखने का मजबूत जरिया दिया। शुरुआती दौर में कैमरों से बचने के लिए तस्करों ने नई चाल चली और वे रात के अंधेरे में बिजली आपूर्ति को बाधित कर देते थे ताकि कैमरा कार्य न करे और वे आसानी से निकल जाएं। जब कई रातों तक अचानक बिजली कटने और कुछ हलचल की बात सामने आई तो ग्रामीणों को शक हुआ। उन्होंने ग्राम प्रधान को इसकी जानकारी दी। इसके बाद गांव में रात के समय बिजली गुल होते ही लोग सतर्क हो जाते और रास्तों पर निगरानी रखने लगते। कैमरा भले अंधेरे में न दिखाए, लेकिन ग्रामीणों की चौकसी ने तस्करों की चालाकी पर पानी फेर दिया। कुछ ही दिनों में यह सिलसिला टूट गया और तस्करों ने इस रास्ते से आना-जाना बंद कर दिया। ग्राम प्रधान ने कहा कि, चैती मुसहरी गांव अब तस्करी के लिए कुख्यात नहीं बल्कि सतर्कता और सामूहिक प्रयास की मिसाल बन गया है। यह परिवर्तन यूपी पुलिस और ग्रामीणों के बीच बेहतर तालमेल का परिणाम है, जिससे सीमा क्षेत्र अब और अधिक सुरक्षित हो गया है।

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