रेता क्षेत्र की 137 एकड़ सरकारी जमीन पर दर्ज थे फर्जी नाम, इंद्राज निरस्त
Kushinagar News - खड्डा, हिन्दुस्तान संवाद। खड्डा तहसील क्षेत्र के ग्राम भैंसहा के बाल गोविन्द छपरा व बसंतपुर में नदी व रेता की सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर राजस्

खड्डा, हिन्दुस्तान संवाद। खड्डा तहसील क्षेत्र के ग्राम भैंसहा के बाल गोविन्द छपरा व बसंतपुर में नदी व रेता की सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर राजस्व अभिलेखों में हेराफेरी कर अवैध कब्जे को हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में तहसील प्रशासन ने निरस्त कर दिया है। रेता की लगभग 137 एकड जमीन पर दर्ज सभी फर्जी नामों को खारिज करते हुए इंद्राज निरस्त कर दिया है। इससे सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा जमाए लोगों में हड़कंप मच गया है। खड्डा रेता क्षेत्र के ग्राम भैंसहा के बालगोविंद छपरा में लगभग ढाई हजार एकड़ सरकारी जमीन है। 1995 में प्रशासन ने इस जमीन के कुछ हिस्सों पर 441 लोगों को पट्टा दिया।
लेकिन महज 21 पट्टाधारक ही काबिज हो पाए। बाकी जमीन पर यूपी व बिहार के दबंगों का कब्जा होने के चलते 420 पट्टाधारकों को 25 वर्ष से कब्जा नहीं मिल सका। अधिकतर लोग खतौनी के इन्द्राज में फर्जी नाम दर्ज करा कर सरकारी भूमि जो बो रहे हैं। इसकी जानकारी होने पर तत्कालीन डीएम एस राजलिंगम ने एसपी विनोद सिंह के साथ मौके का निरीक्षण कर तत्कालीन एसडीएम अरविन्द कुमार को अवैध कब्जाधारियों को बेदखल करने का निर्देश दिया था। एसडीएम ने 15 दिन के भीतर जमीन खाली करने को नोटिस भी भेजा। उक्त फसल लगी जमीन को जब्त कर तत्कालीन नायब तहसीलदार व ग्राम प्रधान को रिसीवर बनाया। जमीन पर बोयी गई गन्ने की फसल को बेचकर सरकारी कोष में जमा कराने का निर्देश दिया। लेकिन डीएम एस राजलिंगम के जाने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद समाजसेवी विजय अग्रवाल ने इस मामले को उजागर करते हुए राजस्व अधिकारियों पर अवैध कब्जाधारियो के साथ मिलीभगत का आरोप लगते हुए 3 नवंबर 2014 को मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन, प्रमुख सचिव राजस्व, जिलाधिकारी कुशीनगर, उप जिलाधिकारी पडरौना और सहायक अभिलेख अधिकारी गोरखपुर को रजिस्टर्ड डाक के जरिए शिकायती पत्र भेजा। ग्राम-बालगोविन्द छपरा की सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन, जो राजस्व अभिलेखों में नदी और रेता के रूप में दर्ज थी, उस पर अवैध कब्जे और फर्जी प्रविष्टियों की जांच की मांग की। जब इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने 5 दिसंबर 2014 को जिलाधिकारी कुशीनगर को आदेश दिया कि मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए और सरकारी संपत्ति को सुरक्षित किया जाए। तहसीलदार खड्डा की अध्यक्षता में गठित जांच समिति ने 11 मई 2016 को अपनी विस्तृत आख्या प्रस्तुत की। जांच में पाया गया कि अलग-अलग गाटे की 203 एकड़ और 136.50 एकड़ जमीन नदी और रेता के रूप में दर्ज थी। 1995 में उप जिलाधिकारी और तहसीलदार पडरौना ने इस जमीन को 441 व्यक्तियों को कृषि हेतु पांच वर्षों के लिए आवंटित कर दिया था। 10 जून 1997 को नायब तहसीलदार खड्डा ने सर्वे के दौरान इस आवंटन को रद्द कर जमीन को पुनः नदी/रेता के रूप में दर्ज किया। इसके बावजूद कुछ लोगों ने कथित राजस्व अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर जमीन को अपने नाम दर्ज करा लिया था। जिस पर उच्च न्यायालय के आदेशों के तहत तहसीलदार खड्डा 11 मई 2016 की आख्या के आधार पर 18 मई 2016 को न्यायालय ने फर्जी प्रविष्टियां रद्द कर जमीन को नदी/रेता के रूप में यथावत रखने का आदेश दिया। कुछ कब्जाधारियों ने 17 नवंबर 2016 को आपत्तियां दायर कर दी। न्यायालय ने विजय अग्रवाल की याचिका और तहसीलदार की 11 मई 2016 की आख्या के आधार पर फर्जी प्रविष्टियां रद्द कर बालगोविंद छपरा में लगभग 125 एकड़ व बसंतपुर में 12.50 एकड़ जमीन को नदी/रेता के रूप में यथावत रखने का आदेश दिया है। उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में तहसील प्रशासन ने फर्जी इन्द्राज को निरस्त कर दिया है। इसकी छायाप्रति उच्चाधिकारियों को भेजी है। कोट- उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में खतौनी के इन्द्राज में दर्ज नामों की जांच की गई। सभी फर्जी तरह से नाम चढ़े पाए गए। इन सभी नामों को निरस्त कर उनकी जगह पूरी जमीन नदी/ रेता के नाम से नाम दर्ज कर दी गयी है। फर्जी नाम चढ़ाने वालों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया जाएगा। इन सभी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जायेगी। -महेश कुमार, तहसीलदार खड्डा
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