दो मोहर्रम के दिन ही इमाम हुसैन का काफिला पहुंचा था कर्बला
Kausambi News - मोहर्रम की दो तारीख पर मनौरी गांव में मजलिस का आयोजन किया गया। मौलाना जफर अब्बास ने इमाम हुसैन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि उनकी जंग यजीद के खिलाफ नहीं, बल्कि इस्लाम के सही संदेश को फैलाने के...
मोहर्रम की दो तारीख पर मनौरी गांव स्थित पंचायती बड़ा इमामबाड़ा कलां में मजलिस का आयोजन किया गया। मजलिस को खिताब करते हुए गोरखपुर से आए मौलाना जफर अब्बास ने कहा कि दो मोहर्रम के दिन ही इमाम हुसैन का काफिला करबला पहुंचा था, जिसमें बुढ़े, बच्चे, औरतें और जवान शामिल थे। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन का मकसद यजीद से जंग करना नहीं था बल्की इस्लाम मजहब का सही संदेश देना था, जो उनके नाना हजरत मोहम्मद (स.अ) ने दिया था। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नए साल की शुरुआत मोहर्रम के महीने से होती है। शिया मुसलमानों के लिए ये महीना बेहद गम भरा होता है।
जब भी मोहर्रम की बात होती है तो सबसे पहले जिक्र कर्बला का किया जाता है। आज से लगभग साढ़े 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. ये जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी. इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे। इसलिए कहा जाता है हर कर्बला के बाद इस्लाम जिंदा होता है। मौलाना जफर अब्बास ने आगे बताया कि यजीद और यजीद के लश्कर वाले सच्चाई को खत्म करना चाहते थे और हर तरह की बुराई फैलाना चाह रहे थे, लेकिन इमाम हुसैन ने कहा कि उनके रहते उनके नाना का दीन इस्लाम और उनका पैगाम खत्म नहीं होगा। इसी उद्देश के लिए इमाम हुसैन ने करबला में अजीम कुर्बानी दी और इस्लाम को बचा लिया। मजलिस से पहले सोजख्वानी को जनाब आफताब हैदर और मजहर हसन ने अंजाम दिया। उसके बाद पेशख्वानी जनाब शब्बर अली और जुल्फेकार हैदर ने की। मजलिस के बाद अंजुमन ए मोहम्मदिया ने नौहाख्वानी व सीनाजनी की। जनाब शमशेर और शब्बर अली ने नौहा पढ़ा।
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