बच्चों के बदन से चूहे जैसी बदबू आए तो साबुन नहीं दवा ढूंढ़िए, 95 फीसदी माता-पिता इन बातों से हैं अनजान
यदि इस समस्या का इलाज न किया जाए, तो यह कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। जिन बच्चों की ज़िंदगी के शुरुआत में इलाज हो जाता है उनमें गंभीर लक्षण पैदा नहीं होते। पीकेयू अत्यंत दुर्लभ बीमारी है। मरीज साल-दो साल में एक या दो ही आते हैं। शिशु के इस जन्मजात रोग से 95 फीसदी माता-पिता अनजान होते हैं।

बच्चे की देह से अकारण बदबू आती है तो आप साबुन नहीं बल्कि दवा ढूंढ़िए। क्योंकि यह गंध फिनाइलकेटोन्यूरिया (पीकेयू) बीमारी की निशानी भी हो सकती है। शिशु में होने वाले इस जन्मजात रोग से 95 फीसदी माता-पिता अनजान हैं। दुर्लभ बीमारी को लेकर जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के सर्वे में ऐसी कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ एसके गौतम के अनुसार, फिनाइलकेटोन्यूरिया (पीकेयू) बीमारी बेहद खतरनाक है लेकिन इसके प्रति जागरूकता की बेहद कमी है। उन्होंने बताया कि पीकेयू अनुवांशिक बीमारी है, जो माता-पिता से नवजात में पहुंचती है। इसमें शरीर फिनाइलएलानिन नाम के अमीनो एसिड को सही तरीके से तोड़ नहीं पाता। टायरोसिन में बदलने की क्षमता नहीं होती है, जिससे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
यदि इलाज न किया जाए, तो यह कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। जिन बच्चों की ज़िंदगी के शुरुआत में इलाज हो जाता है उनमें गंभीर लक्षण पैदा नहीं होते।
जानिए पीकेयू मरीज का हाल
मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अरुण आर्या के अनुसार, पीकेयू अत्यंत दुर्लभ बीमारी है। मरीज साल-दो साल में एक या दो ही आते हैं। सालभर पहले सात माह का बच्चा आया। यूरिन, पसीने से चूहे जैसी गंध के अलावा एग्ज़िमा जैसे चकत्ते शरीर में उभरे थे। वह देखते ही समझ गए कि यह दुर्लभ बीमारी पीकेयू है। बच्चे के बाल भी माता-पिता के बालों के रंग से अलग मतलब गहरे भूरे रंग जैसे थे। माता-पिता को बीमारी समझाने में वक्त लगा। डॉ आर्या ने मरीजों को सलाह दी कि जन्म के तुरंत बाद पीकेयू की जांच बेहद जरूरी है। अमीनो एसिड मेटाबोलिज़्म के विकार का जल्द व ठीक इलाज ही बच्चे के जीवन को बेहतर बना सकता है।
इन लक्षणों का रखें ध्यान
-यूरिन, पसीने से चूहे जैसी गंध
-एग्ज़िमा जैसे दाने शरीर में दिखे
- शारीरिक, मानसिक विकास में देरी
-त्वचा,बालों का रंग भी अपनों से अलग
-खुद को चोट पहुंचाने वाला व्यवहार
किन देशों में कितने मामले
-तुर्की में 2600 बच्चों में एक मामला
-स्कॉटलैंड में 5,300 में एक मामला
-एस्टोनिया में 8,090 में एक मामला
-फिनलैंड में एक लाख में एक केस
-जापान में सवा लाख बच्चों में एक