Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़How did UP's number 45 city come to be built where there was once a forest

जानिए जहां कभी जंगल था जहां वहां कैसे बन गया यूपी 45 नम्बर वाला शहर

कभी घने जंगलों को काट कर किस तरह बनाया गया एक शहर, आज पूरी तरह आबाद है। पुरानी किले वाली मस्जिद बता रही उस दौर की कहानियां

Gyan Prakash हिन्दुस्तान, अकबरपुर। अनिल तिवारीMon, 2 June 2025 12:39 PM
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जानिए जहां कभी जंगल था जहां वहां कैसे बन गया यूपी 45 नम्बर वाला शहर

अम्बेडकरनगर। आज की पीढ़ी को शायद ही पता हो कि 29 सितंबर 1995 को वर्तमान के अयोध्या (पूर्व के फैजाबाद) जनपद से अलग होकर सृजित किए गए जिला अम्बेडकरनगर का जिला मुख्यालय नगर अकबरपुर कभी बियाबान जंगल था। इस नगर का सृजन नवाबों के शासनकाल में हुआ था। नगर का सृजन महान मुगल सम्राट अकबर ने 1556 ईस्वी में किया था।

तब नगर के वर्तमान दो कस्बों अकबरपुर और शहजादपुर को जोड़ने के लिए एक पुल हुआ करता था। जिसे शाही पुल कहा जाता था। नगर के सृजन का गवाह पुरानी तहसील परिसर की मस्जिद है। जिले नवाबी या किला वाली मस्जिद कहा जाता है। जो आज भी विद्यमान है और पुरातत्व विभाग से संरक्षित है।

खत्म हो गया है शाही पुल का अस्तित्व

नदियों के किनारे नगरों के बसने का इतिहास बहुत पुराना हैं। अकबरपुर नगर तमसा नदी के किनारे बसा है। तमसा नदी सदियों से धरती को सींचती हुई जन जीवन को सुधा दान करती आ रही है और आज भी कर रही हैं। पवित्र सलिला सरयू और तमसा की कल कल करती जल लहरों से अभिसिंचित भूखण्ड पर आबाद अम्बेडकरनगर जनपद कई दृष्टिकोण से अपनी खास पहचान रखता है। महान मुगल सम्राट अकबर की ओर से सृजित नगर के शाही पुल का अस्तित्व अब खत्म हो गया है। उसके स्थान पर दूसरा पुल बना हुआ है जिस पर अब आवागमन होता है।

16वीं सदी में नगर और 20वीं सदी में बना जिला मुख्यालय

जनपद के अस्तित्व में आने के पूर्व अम्बेडकर नगर के भूभाग ने तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं। सितम्बर 1995 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने शिवबाबा के मैदान में भरी खचाखच भीड़ के सामने जनपद सृजन की घोषणा की थी। फैजाबाद से विभक्त होकर अस्तित्व में आए अम्बेडकरनगर जनपद का मुख्यालय अकबरपुर है। यह नगर समुद्र तल से 133 मीटर (436 फिट) की ऊंचाई पर है। पांच तहसीलों और दस ब्लाकों में विभक्त अम्बेडकरनगर जनपद का कुल क्षेत्रफल 2350 वर्ग किमी है। 2011 की जनगणना के अनुसार 23,97,888 (तेइस लाख सत्तानबे हजार आठ सौ अट्ठासी) लोग निवास करते हैं। अब आबादी बढ़कर करीब 35 लाख के आसपास हो चुकी है। जिले में कुल 1750 राजस्व गांव है। इनको मिलाकर कुल 930 ग्राम पंचायतें तीन नगर पालिका व पांच नगर पंचायतें हैं। जनपद सृजन से पूर्व यह क्षेत्र फैजाबाद जनपद का हिस्सा हुआ करता था। तत्समय यह क्षेत्र अकबरपुर और टांडा, दो तहसीलों में विभक्त था। लोगों की मांग को देखते हुए 22 जून 1989 को तत्कालीन मुख्यमंत्री व तत्कालीन राजस्व मंत्री ने अकबरपुर के कुछ हिस्से को विभक्त कर जलालपुर तहसील का सृजन किया। आगे चलकर जिला सृजन के बाद जन मांग पर सात दिसम्बर 1995 को तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने आलापुर तहसील गठन का फैसला लिया। तत्कालीन मण्डलायुक्त ने एक जनवरी 1996 को मूर्त रूप दिया। उसी के साथ आलापुर तहसील अस्तित्व में आ गई। वहीं 31 अक्तूबर 2007 को अकबरपुर तहसील के कुछ हिस्सों को लेकर भीटी तहसील का सृजन हुआ। इस प्रकार जिले में कुल पांच तहसील हो गई है। 930 ग्राम पंचायतों और 1750 राजस्व गांवो में फैले अम्बेडकरनगर जनपद नौ विकास खण्डों में विभक्त हैं। इनमें अकबरपुर, टांडा, बसखारी, रामनगर, जहांगीरगंज, भियांव, जलालपुर, कटेहरी और भीटी शामिल हैं।ऐतिहासिक दृष्टि कोण से यदि नजर डालें तो मिलता है कि जिस अकबरपुर शहर को अम्बेडकरनगर जिले का मुख्यालय बनाया गया है, वह नवाबी काल में बिल्कुल वीरान क्षेत्र था। सोलहवी शताब्दी के छठवें दशक तक यह क्षेत्र घनघोर जंगल था। सन् 1566 ईस्वी में जब सम्राट अकबर का यहां आगमन हुआ था,तब यह नगर अस्तित्व में आया था।

1300, ईस्वी में यहां था राजभरों का राज

गजेटियर में वर्णन मिलता है कि 1566 में सम्राट अकबर यहां जिस स्थान पर आकर रुके थे, उसे आज तहसील तिराहे के नाम से जाना जाता हैं। तत्समय उन्होने तहसील तिराहे के बगल इबादत के लिए एक मस्जिद का निर्माण कराया था। इसे आज किले वाली मस्जिद के नाम से जाना जाता हैं। इस दौरान उन्होने एक बस्ती भी बसाई। इसे अकबरपुर नाम दिया गया था, जो आज जिला मुख्यालय के रूप में जाना जाता हैं। गजेटियर के अनुसार यहां से आगे बढ़ने के लिए तमसा को पार करने का कोई साधन नही था। सम्राट अकबर ने एक लकड़ी का पुल बनवाया था, जिसे सालों तक शाही पुल के नाम से जाना जाता रहा। उसके स्थान पर बना नया पुल आज बदले स्वरूप में अकबरपुर और शहजादपुर को जोड़ता हैं। शाही पुल निर्माण के बाद सम्राट अकबरपुर के निर्देश पर शहजादपुर और उनके उपनाम से जलालपुर बस्तियां आबाद हुई जिन्हे आगे चलकर मौजे की मान्यता मिली। आज वही बस्तियां अच्छे कस्बे के रूप में विख्यात हैं। जिले के अहम हिस्से के रूप में जाने गये जलालपुर कस्बे के आसपास 1300 ईस्वी के आसपास तक राजभरों का राज था। भुजगी और सुरहुरपुर इनके दो रियासते थीं। सुरहुरपुर रियासत को सैय्यद सालार मसऊद गाजी उर्फ गाजी मियां ने जीत लिया था और भुजगी रियासत राजपूतों के कब्जे में चली गई। इसी दौरान आए ईरानी सरदार नकी के नाम पर नकीपुर बसा जो आज नगपुर के नाम से विख्यात है। नवाबी काल में क्षेत्र को पहचान मिलनी शुरू हुई जो अग्रेजी हुकूमत में आगे बढ़ी। मुस्लिम शासकों ने इमामबाड़ों, मस्जिदों, ईदगाहों, और धर्मशालाओं का निर्माण कराया जब कि अंग्रेजों ने स्कूल, अस्पताल, पुल, तहसील, ब्लाक, रेलवे स्टेशन बनवाए।

21वीं सदी में चमका जनपद का सितारा

सन् 1947 में आजादी के बाद स्थानीय नागरिकों ने मुक्त सांस लेना शुरू किया। सन् 1952 में प्रथम चुनाव के बाद आए जमीदारी उन्मूलन विधेयक ने तमाम गरीबों, मजदूरों व कामगारों को भूमिहीन से भूमिदार बनाया। आजादी मिलने के बाद इस क्षेत्र के विकास को लेकर तमाम प्रयास होते रहे परन्तु 20वीं सदी के अंतिम दिनों से लेकर 21वीं सदी के प्रारम्भ काल में अम्बेडकरनगर का स्वर्णिम काल कहा जा सकता हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसे अपनी कर्मभूमि बनाया। परिणाम स्वरूप तमाम विकास की योजनाएं बनी। जो अम्बेडकरनगर के लिए वरदान साबित हुई।

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