दशहरा पर गंगा स्नान से से मनसा, वाचा, कर्मणा से जुड़े दस पापों का होता है हरण
Hapur News - खास खबर जाता है बेहद शुभ -संतान प्राप्ति को नव विवाहित जोड़े गंगा किनारे बनाते हैं बालू की मेंढ -इसी दिन गंगा मैया शिव जटाओं से धरती पर हुई थी अवतरित

गढ़मुक्तेश्वर। ज्येष्ठ दशहरा पर गढ़ गंगा में डुबकी लगाने का विशेष धार्मिक माना जाता है, क्योंकि भगवान शंकर के गण जय विजय को यहीं आकर दुर्वासा ऋषि के श्राप से मुक्ति मिली थी। महाभारत युद्ध में मारे गए वीर योद्धाओं समेत सगे संबंधित को लेकर व्याकुल हुआ पांडवों का मन भी यहीं आकर शांत हुआ था। ज्येष्ठ दशहरा के पावन अवसर पर उत्तराखंड के हरिद्वार, मुजफ्फरनगर के शुक्रताल, मेरठ के मखदूमपुर, बिजनौर में विदुर कुटी, बैराज, अमरोहा के तिगरी धाम, बुलंदशहर के नरौरा और अनूपशहर समेत गंगा किनारे विभिन्न स्थानों पर आस्था की डुबकी लगती है। परंतु धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ दशहरा पर डुबकी लगाने की जो प्राचीन मान्यता गढ़-ब्रजघाट गंगा से जुड़ी है, वह किसी दूसरे स्थान की नहीं है।
इस दौर में भी विकास की मुख्य धारा से अछूती चल रही गढ़ ब्रजघाट गंगानगरी अपने अतीत में अनेकों गाथा संजोए हुए है। गंगा मंदिर के कुल पुरोहित पंडित संतोष कौशिक का कहना है कि ग्रंथों में उल्लेख है कि मंदराचल पर्वत पर तपस्या में लीन दुर्वासा ऋषि ने विघ्न डालने पर भगवान शंकर के गण जय और विजय को पिशाच यौनि में आने का श्राप दिया था, जिससे मुक्ति के लिए वे समूचे संसार का चक्कर काट आए मगर श्राप से मुक्त नहीं हो पाए। तब वे मां पार्वती की शरण में पहुंचे तो भगवान शंकर ने अपने हाथों बसाए गए शिवबल्लभपुर में जाकर गंगा में डुबकी लगाकर तपस्या करने भेज दिया। जहां आकर गणों को मुक्ति मिलने के बाद शिवबल्लभपुर स्थान का नाम गणमुक्तीश्वर हुआ जो वर्तमान में गढ़मुक्तेश्वर हो गया है। महाभारत युद्ध में मारे गए सगे संबंधी और असंख्य वीर योद्धाओं को लेकर मन व्याकुल होने पर पांडवों में राजपाट के प्रति उदासीनता आ गई थी, तो भगवान श्रीकृष्ण उन्हें कार्तिक माह में गढ़ गंगा किनारे ले आए थे। जिसके उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष यहां उत्तरी भारत में मिनी कुंभ के रूप में विख्यात मेला भरता है। इसके अलावा भगवान राम के पूर्वज शिवी ने भी अपना चौथा आश्रम गढ़ में ही आकर बिताया था। --क्यों मनाया जाता है गंगा दशहरा श्री भद्रकाली मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित रमाशंकर तिवारी का कहना है कि ऋषि कपिल मुनि के श्राप से भस्म हुए राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की मुक्ति के लिए राजा भागीरथ के घोर तपस्या करने पर भगवान ब्रह्मा ने मां गंगा को स्वर्ग से धरती पर भेजने की प्रार्थना स्वीकार की थी। जो वैशाख शुक्ल सप्तमी को भगवान शिव की जटाओं में आई थीं, जहां से ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा मैया शिव जटाओं से निकलकर पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। जिनके जल के स्पर्श मात्र से भागीरथ के पूर्वज श्राप से मुक्त हुए थे। --दशहरा पर गंगा स्नान करने से दस पापों का होता है हरण भागवत व्यास गोपाल बाबा का कहना है कि ज्येष्ठ दशहरा पर गंगा मैया में आस्था की डुबकी लगाने वाले मनचा, वाचा, कर्मणा से जुड़े दस पापों से मुक्त होकर मनोवांछित फल पाते हैं। इस दिन बच्चों का मुंडन कराने से उनकी आयु में वृद्धि होती है। नवदंपति जोड़ों द्वारा संतान प्राप्ति को गंगा मैया के किनारे बालू की मेंढ बनाकर गंगा पूजन किया जाता है। --कौन से शुभ मुहूर्त में दशहरा की डुबकी लगाएं प्राचीन पंचायती मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित सुरेंद्र प्रसाद शर्मा ने बताया कि ज्येष्ठ दशहरा के अवसर पर गुरुवार की तडक़े में ब्रह्म मुहूर्त में प्रात चार बजे डुबकी लगाने का शुभ मुहूर्त प्रारंभ होगा, जो सूर्यास्त होने तक चलेगा। --आवागमन को नेशनल हाईवे समेत रेल मार्ग की भी सुविधा है उपलब्ध दिल्ली-लखनऊ रेलमार्ग पर 24 घंटों में पैसेंजर समेत लंबी दूरी की करीब 90 से अधिक ट्रेनों का आवागमन होता है, जबकि यहां से होकर निकल रहे नेशनल हाईवे पर करीब एक हजार रोडवेज बस निकलती हैं। इसके अलावा भी निजी वाहनों से आसानी के साथ गंगानगरी में आवागमन होता है। --रुकने के लिए सैकड़ों धर्मशालाएं, आश्रम, मंदिर और होटल भी उपलब्ध हैं ब्रजघाट गंगानगरी में रात बिताने को छोटी बड़ी धर्मशालाओं की तादाद साढ़े चार सौ से भी अधिक है, जबकि सैकड़ों मंदिर और आश्रम भी हैं। इसके अलावा भी हाईवे किनारे पर्यटन विभाग के होटल समेत दर्जनों निजी होटल भी हैं, जबकि 12 किलोमीटर दूर गजरौला औद्योगिक नगरी में आधुनिक सुविधा वाले दर्जनों होटल उपलब्ध हैं। --रानी द्रोपदी की सैरगाह और पांडवों की तपोस्थली के भी दर्शन कर सकते हैं ब्रजघाट गंगानगरी में आने वाले भक्त करीब दस किलोमीटर दूर पुष्पावती पूठ गंगानगरी में पहुंचकर रानी द्रौपदी की सैरगाह और पांडवों की तपोस्थली के दर्शन भी कर सकते हैं। इसके अलावा गढ़ में गंगा मंदिर, मुक्तेश्वर महादेव (नक्का कुआं) मंदिर, भगवान नरसिंह मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, महाकाल मंदिर, भगवान परशुराम मंदिर, चामुंडा देवी समेत दर्जनों मंदिर और करीब आठ सौ साल पुरानी दातागंज बख्श की मजार पर भी हाजरी लगा सकते हैं।
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