बोले गोण्डा : सफाई कर्मियों की अब तक नहीं बनी सेवा नियमावली
Gonda News - गोंडा में ग्रामीण सफाई कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 16 वर्षों की सेवा के बावजूद उनकी सेवा नियमावली नहीं बनी है। संसाधनों की कमी, समय पर वेतन का भुगतान न होने और...

नगर निकायों को छोड़कर अन्य कस्बों, बाजारों के साथ राजस्व गांवों में सफाई का जिम्मा जिले के 1794 सफाई कर्मियों पर है। करीब दो दशक से साफ-सफाई का जिम्मा उठाने वाले सफाई कर्मियों का कहना है कि अब तक हम लोगों की सेवा नियमावली नहीं बनी है। एनपीएस कटौती की हम लोगों को कोई जानकारी नहीं मिलती है। मृतक आश्रितों को अब तक एनपीएस का भुगतान नहीं दिया गया है। साथ ही अफसर अपनी जरूरतों के मुताबिक विभिन्न कार्यालयों में संबद्ध कर लेते हैं। सफाई कर्मियों ने कहा कि जब तब अभियान के नाम पर हम लोगों को विभिन्न जगहों पर भेज दिया जाता है।
यही नहीं, वीवीआईपी की ड्यूटी के नाम पर सफाई कर्मियों की ड्यूटी लगा दी जाती है। सफाई कर्मियों का कहना है कि बड़ी ग्राम पंचायतों में सफाई कर्मियों की संख्या बढ़ाई जाए। बोले गोंडा मुहिम के तहत सफाई कर्मियों ने अपनी बात रखी। गोण्डा। ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज विभाग के अधीन तैनात सफाई कर्मचारियों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जिले के नगरीय निकाय क्षेत्रों को छोड़कर अन्य जगहों पर साफ-सफाई का जिम्मा इन्हीं कर्मियों के कंधे पर है। हिन्दुस्तान के बोले गोंडा कार्यक्रम में जिले के सफाई कर्मियों ने कहा कि न तो हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं और न ही कूड़ा एकत्र करने के लिए उपकरण। इसके अलावा बड़ी संख्या में सफाई कर्मचारियों को ब्लॉक से लेकर जिला मुख्यालय के कार्यालयों में संबद्ध कर दिया गया है। सफाई कर्मचारियों को क्षमता से ज्यादा काम दे दिया गया है। लोगों ने कहा कि हमारी मांग है कि कार्यालयों से संबद्धता समाप्त की जाए। 2009 से लगातार नियमित सेवा देने के बाद भी आज तक हमारी सेवा नियमावली नहीं बन सकी है। ग्रामीण सफाई कर्मचारियों ने संवाद के दौरान अपनी समस्याएं साझा कीं। जिले के 16 विकास खण्डों की 1839 राजस्व ग्राम पंचायतों में साफ-सफाई के लिए 1794 सफाई कर्मचारी तैनात हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की साफ-सफाई व्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सफाई कर्मचारियों पर स्वच्छ भारत मिशन के तहत चलने वाले अन्य अभियानों की भी जिम्मेदारी रहती है। कम आबादी वाली ग्राम पंचायतों में ही काम का दबाव रहता है। लेकिन जिन ग्राम पंचायतों दायरा और आबादी ज्यादा है वहां तैनात सफाई कर्मियों की मुसीबत बढ़ जाती है। सफाई कर्मचारियों ने कहा कि नियुक्ति के 16 वर्ष बाद भी हमारी समस्याओं का समाधान नहीं हो सका है। संसाधनों की कमी, समय पर वेतन का भुगतान न होने और सेवा नियमावली न बनाए जाने से हम लोग त्रस्त हैं। लोगों ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के ही गंदगी साफ करनी पड़ती है। नालियों की सफाई के दौरान उन्हें ग्लब्ज, मास्क, जूते या सैनिटाइजर भी नहीं मिलते हैं। ऐसा नहीं कि सरकार की ओर से संसाधनों व उपकरणों के लिए बजट नहीं भेजा जाता। ग्राम पंचायतों के ग्राम निधि खाते में बजट भी आता है लेकिन सामानों की खरीदारी के लिए पैसा नहीं दिया जाता। कई बार मजबूरी में उन्हें अपनी जेब से झाड़ू खरीदनी पड़ती है। यह बजट ग्राम निधि में न भेजकर सरकार सीधे सफाई कर्मचारियों के खाते में भेजे तो स्वच्छता में संसाधनों की कमी आड़े नहीं आएगी। सफाई कर्मचारी संघ के जिलाध्यक्ष राघवेंद्र तिवारी ने बताया कि गांवों की साफ-सफाई की जिम्मेदारियों का हम ईमानदारी से निर्वहन करते हैं। मगर लोग हमें अलग नजर से देखते हैं, यह भेदभाव खत्म होना चाहिए। सभी विभागों में प्रोन्नति की व्यवस्था लागू है लेकिन सफाई कर्मचारियों की पदोन्नति सिर्फ सेवा नियमावली न बनने से अटकी हुई है। सरकार को चाहिए हमें हमारा जायज हक प्रदान करे। सफाई कर्मचारियों की अब तक एनपीएस पासबुक नहीं बनी है। डेढ़ दशक में वेतन से 10 प्रतिशत की कटौती करके 10 से 12 लाख रुपये एकत्र किए जा चुके हैं, लेकिन एनपीएस खाते में कितने रुपये हैं, किसी को भी पता नहीं है। एनपीएस पासबुक शीघ्र बनाई जानी चाहिए। ग्राम पंचायतों में प्रतिदिन ड्यूटी करने के बाद भी कई ग्राम प्रधानों द्वारा पेरोल नहीं बनाया जाता है। इससे समय से वेतन मिलने में दिक्कत होती है। अगर पेरोल समय से चला भी गया तो विभाग से वेतन भुगतान में देरी होती है। उनका कहना है कि कोरोना काल में सफाई कर्मचारियों ने अपनी परवाह किए बिना जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। हमें कोरोना योद्धा भी माना गया और सम्मानित भी किया गया, लेकिन अब तक 18 महीने के फ्रीज डीए का भुगतान नहीं हो सका है। इसके लिए बार-बार विभागीय अधिकारियों से मांग की गई, ज्ञापन सौंपा गया पर सुनवाई नहीं हो रही है। सेवा नियमावली बनने के बाद ही मिलेगा लाभ सफाई कर्मचारियों की सबसे बड़ी समस्या सेवा नियमावली न होना है। नगर निगम और नगरपालिकाओं के सफाई कर्मचारियों के लिए जहां स्पष्ट सेवा शर्तें है। वहीं ग्राम पंचायतों में सफाईकर्मियों के लिए ऐसी कोई नीति नहीं बनाई गई है जिससे उन्हें लाभ मिल सके। इसके कारण कर्मचारियों को वेतनमान, पदोन्नति, पेंशन और अन्य सुविधाएं नहीं मिलती हैं। सफाईकर्मी वर्षों से सरकार से मांग कर रहे हैं कि उनके लिए भी एक सेवा नियमावली बनाई जाए, जिससे उन्हें कानूनी सुरक्षा और सामाजिक सम्मान मिल सके, लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। आदेश के बाद भी कार्यालयों में जमे हैं कर्मचारी सफाई कर्मचारियों का कहना है कि ब्लॉक से लेकर जिला मुख्यालय तक के कार्यालयों में सफाई कर्मचारियों को मूल तैनाती की जगह से हटाकर संबद्ध कर दिया गया है। पंचायती राज विभाग के जिम्मेदार उन्हें हटाते ही नहीं है। कार्यालयों से संबद्धता समाप्त कर सफाई कर्मचारियों को उनकी मूल तैनाती वाली जगह पर भेजा जाए। सफाई कर्मचारियों ने कहा कि विभाग के जिम्मेदार हमारा शोषण करते हैं। अगर उनके किसी आदेश की अवहेलना हो गई तो कार्यालय में बैठे जिम्मेदार एक झटके में उन्हें इधर से उधर कर देते हैं। महिलाओं को घर से पांच किलोमीटर के अंदर ही तैनात करने का नियम है, लेकिन मनमानी कर उन्हें 50 किलोमीटर दूर तक भेज दिया जाता है। इसके अलावा महिलाओं को रोस्टर की ड्यूटी से दूर रखा जाए। आश्रितों को मदद देने में न हो देरी उप्र ग्रामीण सफाई कर्मचारी संघ से जुड़े पदाधिकारियों ने कहा कि मृतक आश्रितों को मदद देने में भी विभाग द्वारा देरी की जाती है। इसको लेकर ज्ञापन दिया गया लेकिन कोई सुधार नहीं हो सका है। लोगों ने कहा कि हम लोगों को सबसे पहले पुरानी पेंशन बहाली की जाए। सफाई कर्मी संजय गौतम बताते हैं कि डेढ़ दशक में हम लोगों के वेतन से आठ से दस लाख तक की कटौती की जा चुकी है। लेकिन हमारे एनपीएस खाते में कितने रुपये हैं यह किसी को नहीं पता। एनपीएस पासबुक शीघ्र बनाए जाना चाहिए। इतना ही नहीं ग्राम पंचायतों में प्रतिदिन ड्यूटी करने के बाद भी कई ग्राम प्रधानों द्वारा पेरोल नहीं बनाया जाता है। जिससे समय से वेतन मिलने में दिक्कत होती है। उनकी मांग है कि प्रधान द्वारा पेरोल बनाने की व्यवस्था खत्म हो। कोरोना काल का फ्रीज डीए देने की मांग ग्रामीण सफाई कर्मचारी संघ जिलाध्यक्ष राघवेंद्र तिवारी का कहना है कि कोरोना काल में सफाई कर्मियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना सभी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। सरकार ने हमें कोरोना योद्धा की उपाधि तो दी लेकिन 18 महीने का फ्रीज डीए अब तक नहीं दिया है। इसके लिए बार-बार उच्च अधिकारियों से गुहार लगाई जा रही है लेकिन इसके भुगतान की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। रणजीत प्रसाद कहते हैं कि कोरोना योद्धा कहलाने के बावजूद हम सफाई कर्मियों को लोग धमकी दे डालते हैं। जिससे कई बार काम करने में दिक्कत होती है। बोले सफाईकर्मी --------------------- हमें काम करते हुए 16 वर्ष का समय हो चुका है लेकिन हमारी समस्याओं का अब तक समाधान नहीं हो सका है। काम के दौरान संसाधनों की कमी आड़े आ रही है। -लखनलाल वार्षिक स्थानांतरण की नीति में खामियों को दूर किया जाए। साथ ही सफाई कमिर्यों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने के साथ पदोन्नति की दिशा में विचार किया जाना चाहिए। -अजय धर द्विवेदी सफाई कर्मियों की सेवा नियमावली बनाना हमारी प्रमुख मांगों में से एक है। इसके लागू न होने से हम कई तरह के लाभ से वंचित हैं। हमें पदोन्नति भी नहीं मिलती है। -त्रिलोकी नाथ शुक्ल एनपीएस के लिए 10 प्रतिशत वेतन से कटौती की जाती है, लेकिन आज तक हमारी पासबुक नहीं बनी। इससे पता ही नहीं चलता कि कितने रुपये कट चुके हैं। -विनय पांडेय बोले जिम्मेदार ---------------------- सफाई कर्मियों को एनपीएस कटौती के बारे में उनके पंजीकृत मोबाइल पर एसएमएस आता है। मृतक आश्रितों को एनपीएस की राशि का भुगतान करने के लिए पत्राचार किया गया है। इन कर्मियों के सेवा नियमावली बनाने का विषय शासन से संबंधित है। -लालजी दुबे, डीपीआरओ ग्रामीण सफाई कर्मियों की सेवा नियमावली नहीं बनने से हम लोगों को पदोन्नति का लाभ नहीं मिल पाता है। कोरोना काल के फ्रीज डीए का भुगतान की मांग अरसे से की जा रही है। हम लोगों को एनपीएस की जगह पुरानी पेंशन का लाभ दिया जाए। -राघवेंद्र तिवारी, जिलाध्यक्ष, उप्र पंचायतीराज ग्रामीण सफाई कर्मचारी संघ
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