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यूपी में बिजली महंगी होगी या सस्ती? UPPCL के 30% बढ़ाने के खिलाफ 45% घटाने का जनता प्रस्ताव

उपभोक्ता परिषद ने कॉरपोरेशन के संशोधित प्रस्ताव को खारिज करने की मांग की है। परिषद ने कहा कि नोएडा पावर कंपनी पर भी उपभोक्ताओं का बकाया था, जिसकी वजह से तीन साल से 10% की कटौती हो रही है। यह व्यवस्था बाकी बिजली कंपनियों पर क्यों नहीं लागू की गई?

Ajay Singh विशेष संवाददाता, लखनऊWed, 21 May 2025 08:17 AM
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यूपी में बिजली महंगी होगी या सस्ती? UPPCL के 30% बढ़ाने के खिलाफ 45% घटाने का जनता प्रस्ताव

यूपी में बिजली महंगी होगी या सस्ती? पावर कॉरपोरेशन द्वारा बिजली दरों में 30% बढ़ोतरी के खिलाफ मंगलवार को नियामक आयोग में बिजली दरों में 40-45% कटौती का जनता प्रस्ताव राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने दाखिल कर दिया है। पावर कॉरपोरेशन के वास्तविक आय-व्यय के आंकड़ों को भी उपभोक्ता परिषद ने चुनौती दी है। बिजली की नई दरें तय करने के लिए आयोग बिजली कंपनियों के दावों और जनता की आपत्तियों पर सुनवाई जून में शुरू कर सकता है।

उपभोक्ता परिषद ने कॉरपोरेशन के संशोधित प्रस्ताव को खारिज करने की मांग उठाई है। परिषद ने कहा कि नोएडा पावर कंपनी पर भी उपभोक्ताओं का बकाया था, जिसकी वजह से तीन साल से 10% की कटौती हो रही है। यह व्यवस्था बाकी बिजली कंपनियों पर क्यों नहीं लागू की गई? उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि जब 3 सितंबर 2019 को बिजली दरों का आदेश जारी किया गया था तब नियामक आयोग ने माना था कि बिजली कंपनियों पर वित्तीय वर्ष 2017-18 तक उपभोक्ताओं का 13,337 करोड़ रुपये बकाया है। आयोग के आदेश में यह भी कहा गया था कि जब तक इसकी अदायगी बिजली कंपनियां नहीं कर देतीं तब तक इस रकम पर कैरिंग कॉस्ट यानी ब्याज भी जुड़ेगा। 12% की ब्याज दर के हिसाब से यह रकम बीते वित्तीय वर्ष में 33,122 करोड़ पहुंच गई थी। इस वित्तीय वर्ष की सुनवाई करते वक्त यह रकम 35 हजार करोड़ पार हो जाएगी।

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बकाया कैसे हो गया घाटा?

उपभोक्ता परिषद ने आयोग में दाखिल प्रस्ताव में यह भी कहा है कि कॉरपोरेशन बिजली उपभोक्ताओं पर बकाया राशि को घाटे में दर्ज किया है। पूरे देश में कहीं भी बकाया घाटे में नहीं जोड़ा जाता क्योंकि बिजली कंपनियां इस रकम की मय ब्याज वसूली करती हैं। प्रदेश के उपभोक्ताओं पर बिल के तौर पर बकाया 10 हजार करोड़ रुपये की वसूली की जिम्मेदारी पावर कॉरपोरेशन की है। अगर वह वसूल नहीं सकता है तो उसे प्रबंधन छोड़ देना चाहिए। बिजली बिल न देने वाले उपभोक्ताओं में से 54 लाख उपभोक्ताओं को सौभाग्य योजना में गुमराह करके मुफ्त कनेक्शन दिए गए।

बताए घाटे के कारण

स्मार्ट प्रीपेडमीटर की पूरी परियोजना के लिए केंद्र ने 18,885 करोड़ अनुमोदित किए थे जबकि बिजली कंपनियों ने 27,342 करोड़ के टेंडर किए। रकम की जवाबदेही उपभोक्ताओं की कैसे? कॉरपोरेशन में लेटरल एंटी से विभागीय अभियंताओं से ज्यादा वेतन पर भर्ती की गई। प्रदेश में 78,000 करोड़ की बिजली खरीद होती है, जिसमें से 54% फिक्स कॉस्ट है।

आंकड़ों पर सवाल

उपभोक्ता परिषद ने कॉरपोरेशन द्वारा सोमवार को जारी आंकड़ों पर भी सवाल खड़े किए हैं। आयोग में लिखित आपत्ति दर्ज कराई है कि जब अभी तक कॉरपारेशन का संशोधित आंकड़ा आयोग ने स्वीकार नहीं किया है तो उसे सार्वजनिक क्यों किया गया? जो वार्षिक राजस्व आवश्यकता प्रस्ताव ने स्वीकार कर लिया है, उसे अब तक सार्वजनिक किया नहीं गया। ऐसा लग रहा है कि पावर कॉरपोरेशन ने आंकड़े परीक्षण और स्वीकारे जाने से पहले सार्वजनिक कर नियामक आयोग पर दबाव बनाने की कोशिश की है।

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बैलेंस शीट पर सफाई

नियामक आयोग में जनता प्रस्ताव दाखिल किए जाने के बाद पावर कॉरपोरेशन ने अपनी बैलेंस शीट पर उठ रहे सवालों को निराधार बताया है। मुख्य अभियन्ता (वाणिज्य) डीसी वर्मा और मुख्य महाप्रबंधक (वित्त) सचिन गोयल ने बताया है कि कॉरपोरेशन के आंकड़े को सही बताते हुए कहा कि जो भी आर्थिक लेखा जोखा प्रस्तुत किया है, पूरी तरह सही व तथ्यपरक है।

उन्होंने बताया कि बिलिंग का विवरण पावर कॉरपोरेशन के रेवेन्यू मैनेजमेंट सिस्टम से उपभोक्ताओं की मीटर रीडिंग डाटा के आधार पर बनता है। ऐसे में इसमें किसी भी तरह के फर्जीवाड़े की गुंजाइश नहीं है। कॉरपोरेशन में जो भी खर्चें किए जाते हैं, वे सभी खर्चे ईआरपी पर ऑनलाइन माध्यम से होते हैं, जिसमें मैन्युअल संशोधन की गुंजाइश नहीं है। इसी से बैलेन्सशीट तैयार की जाती है। कॉरपोरेशन ने कहा कि उसकी बैलेंसशीट का सीएजी ऑडिट होता है। लिहाजा इस पर किसी भी तरह का शक करना अनुचित है।

उपभोक्ता परिषद ने कहा पावर कॉरपोरेशन का तर्क कि घाटा बढ़ रहा है और सरकार अब और मदद नहीं करेगी। यह उसकी भूल है। भाजपा के संकल्प पत्र में किसानों को मुफ्त बिजली और 100 यूनिट तक तीन रुपये प्रति यूनिट बिजली का ऐलान था। विद्युत अधिनियम-2003 की धारा 65 के तहत अगर कोई सरकार राजनीतिक लाभ लेने के लिए कोई घोषणा करती है तो उसे सब्सिडी के तौर पर सहायता देनी ही होगी।

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