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बाथरूम में घंटों बिताकर भी नहीं आ रहा नहाने का फील, कहीं ओसीडी तो नहीं?

  • एम्स के मनोचिकित्सक डॉ. मनोज पृथ्वीराज ने बताया कि एम्स में ओसीडी से ग्रसित मरीजों की संख्या अच्छी खासी है। इनमें महिलाएं अधिक हैं। इस तरह के केस हर दिन आ रहे हैं। इनमें कई ऐसी महिलाएं है, जो किचन में अपने बर्तनों को तीन से चार बार धोती है इसके बाद भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है।

Ajay Singh हिन्दुस्तान, कार्यालय संवाददाता, गोरखपुरSun, 23 Feb 2025 07:10 AM
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बाथरूम में घंटों बिताकर भी नहीं आ रहा नहाने का फील, कहीं ओसीडी तो नहीं?

बाथरूम में नहाने से लेकर साफ-सफाई करने में दो से तीन घंटे एक महिला लगा दे रही है। इसके बाद भी उसे खुद के शरीर की सफाई और बाथरूम की सफाई से संतुष्टि नहीं होती है। नहाने का फील ही नहीं आता है। परिजन थक हार कर महिला को इलाज के लिए एम्स के मनोचिकित्सा विभाग में पहुंचे। जहां पर जांच के बाद पता चला कि महिला को ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी) की बीमारी है। इस बीमारी की चपेट में पूर्वांचल के 15 से 20 फीसदी मरीज हैं। चिंता की बात यह है कि इनमें 90 फीसदी महिलाएं हैं।

एम्स के मनोचिकित्सा विभाग की ओपीडी में ऐसे मरीजों की काउंसलिंग कर बिहेवियर थेरेपी और टॉक थेरेपी के साथ कुछ दवाएं दी जा रही है। एम्स के मनोचिकित्सक डॉ. मनोज पृथ्वीराज ने बताया कि एम्स में ओसीडी से ग्रसित मरीजों की संख्या अच्छी खासी है। इनमें महिलाएं सबसे अधिक हैं। इस तरह के केस हर दिन आ रहे हैं। इनमें कई ऐसी महिलाएं है, जो किचन में अपने बर्तनों को तीन से चार बार धोती है इसके बाद भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है। जबकि, वह इस बात को जानती है कि वह गलत कर रही है, लेकिन खुद को रोक नहीं पा रही है। यह बीमारी महिलाओं में बढ़ती जा रही है।

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बताया कि इस बीमारी की वजह शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन की कमी है। महिलाओं को इसकी दवा देने के साथ अलग पैटर्न पर टॉक थेरेपी और बिहेवियर थेरेपी दी जाती है। इससे उनके अंदर धीरे-धीरे सुधार होता है।

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खुशी हार्मोन की कमी बार-बार करवाती है एक ही काम

डॉ. मनोज पृथ्वीराज ने बताया कि शरीर में सेरोटोनिन एक तरह का हार्मोन है, जिसे खुशी हार्मोन भी कहते हैं। यह मस्तिष्क और शरीर के कई कार्यों को नियंत्रित करता है। दिमाग के नियंत्रण के दौरान यह शरीर के अन्य तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संदेश भेजता है। यह आंतों, मस्तिष्क और रक्त में भी पाया जाता है। जब इसकी कमी होती है, तो दिमाग में जो बातें चलती हैं, वहीं काम ऐसे मरीज बार-बार करते हैं। मरीजों की जांच के बाद बीमारी का पता लगाया जा रहा है और उसी अनुसार उनकी काउंसलिंग की जा रही है।

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