बोले बुलंदशहर : घरों को सुंदर बनाने वाले फर्नीचर कारीगर सुविधाओं से मोहताज
Bulandsehar News - फर्नीचर कारीगर आज आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इनकी स्थिति नाजुक है, क्योंकि उन्हें न तो सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है और न ही स्वास्थ्य सुरक्षा। कारीगरों ने प्रशासन से वित्तीय सहायता और...
घरों की सुंदरता और मजबूती का आधार माने जाने वाले फर्नीचर कारीगर आज आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। लकड़ी की गंध, मशीनों की गड़गड़ाहट और धूल से भरे माहौल में काम करने वाले ये कारीगर न केवल आर्थिक तंगी झेल रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य, सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा का भी शिकार हैं। इनको आज तक विश्वकर्मा योजना स न तो टूल किट मिले न ही प्रशिक्षण। श्रम विभाग में भी इनका रजिस्ट्रेशन नहीं है। इससे कई सरकारी योजनाओं का लाग नहीं मिल पाता है। कई लोगों का आयुष्मान कार्ड तक नहीं बना है। इन्होंने प्रशासन से लकड़ियों की खरीद पर वित्तीय सहायता और आयुष्मान योजना का लाभ दिलाने की मांग की है।
फर्नीचर कारीगर आज सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी हाशिए पर हैं। पंचायतों, नगर निकायों या जिला स्तर की समितियों में इनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं होता। चुनाव में भी इन्हें केवल वोट के तौर पर देखा जाता है। बुनियादी सुविधाएं जैसे नाली, पानी, बिजली की उचित व्यवस्था नहीं है। जिले के सैकड़ों गांवों और कस्बों में ऐसे लोग रहते हैं, जिनके हाथों ने हजारों घरों को आकार दिया, फर्नीचर को शान दी, दरवाजों-खिड़कियों को मजबूत बनाया। लेकिन अफसोस, वही हाथ आज रोज़गार, स्वास्थ्य और सुरक्षा के मोर्चे पर खुद को बेबस महसूस कर रहे हैं। ये हैं फर्नीचर कारीगर समाज के लोग, परंपरागत कारीगर, जो लकड़ी को जीवन देते हैं लेकिन खुद अपनी जिंदगी की जद्दोजहद में घिसते जा रहे हैं। फर्नीचर कारीगर की स्थिति इस हद तक उपेक्षित है कि न इनके पास नियमित रोजगार है, न सरकारी योजनाओं की सीधी पहुंच। स्वास्थ्य से लेकर सामाजिक सम्मान तक, हर स्तर पर इन्हें संघर्ष करना पड़ता है। जिले में कई वर्षों से फर्नीचर कारीगरों की समस्याओं को लेकर कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनी है। शासन-प्रशासन की ओर से चल रही योजनाएं इनके लिए सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं। फर्नीचर कारीगर का पेशा जितना कलात्मक है, उतना ही जोखिम भरा भी है। काम के दौरान मशीनों की आवाज, लकड़ी की धूल और रसायनों के संपर्क में आना एक आम बात है। लेकिन इन खतरों से बचाव के लिए न तो कोई प्रशिक्षण मिलता है, न ही जरूरी सुरक्षा उपकरण। व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) जैसे दस्ताने, मास्क, कानों के सुरक्षा यंत्र, एप्रन आदि फर्नीचर कारीगर समाज को शायद ही कहीं मिलते हों। लकड़ी की कटाई और फिनिशिंग के दौरान उत्पन्न होने वाली धूल से सांस की बीमारियां, आंखों में जलन, त्वचा पर एलर्जी और कानों में समस्या होना आम बात है। कई बार यह धूल फेफड़ों में जमा होकर गंभीर रोग पैदा कर देती है। कुछ लकड़ियों के बुरादे से कैंसर तक का खतरा होता है। इसके बावजूद इनकी सुरक्षा के लिए कोई विशेष अभियान नहीं चलाया गया। आयुष्मान कार्ड हैं, लेकिन इलाज की सुविधा नहीं सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीबों को पांच लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की सुविधा दी है। फर्नीचर कारीगर समाज के अधिकांश लोग इस योजना के पात्र भी हैं, लेकिन इसका लाभ मिलना आसान नहीं। आरोप है कि कार्ड बनवाने के बाद भी इलाज के लिए अस्पतालों में परेशानी झेलनी पड़ती है। निजी अस्पतालों में टालमटोल की जाती है और सरकारी अस्पतालों में मशीनें या दवाइयां नहीं होतीं। जिन लोगों को लकड़ी के बुरादे या रसायनों से अस्थमा, स्किन एलर्जी या कानों की समस्या हुई है, उन्हें इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता है। लेकिन आर्थिक स्थिति इतनी नहीं होती कि निजी डॉक्टरों का खर्च उठा सकें। रोजगार की अनियमितता, मजदूरी की कमी फर्नीचर कारीगर का काम मौसम और मांग पर आधारित होता है। गर्मी के महीनों में कुछ काम निकल आता है, लेकिन बारिश और ठंड में जैसे काम पूरी तरह ठप हो जाता है। कई बार दो-दो हफ्तों तक कोई ग्राहक नहीं आता। ऐसे में परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है। फर्नीचर कारीगर समाज अधिकतर असंगठित क्षेत्र में काम करता है। इनके पास न तो कोई स्थायी दुकान होती है, न ही कोई रोजगार सुरक्षा कार्ड। न न्यूनतम मजदूरी मिलती है और न ही बीमा का लाभ। कुछ लोग घरों पर जाकर फर्नीचर बनाने या मरम्मत करने का काम करते हैं, लेकिन ग्राहक मनमाने पैसे देते हैं और मोलभाव कर इनकी मेहनत को भी कम आंकते हैं। लकड़ी महंगी मिलने से हो रही दिक्कत लकड़ी का काम करने के लिए पहले इन्हें सस्ती दरों पर लकड़ी उपलब्ध हो जाती थी। लेकिन अब कच्चा माल महंगा हो गया है। ऊपर से लकड़ी ढोने वाले ट्रकों से ओवरलोडिंग के नाम पर पुलिस और चेकपोस्ट पर अवैध वसूली भी की जाती है। इससे फर्नीचर कारीगर की लागत बढ़ जाती है, लेकिन मुनाफा नहीं बढ़ता। कई फर्नीचर कारीगर खुद अपना काम शुरू करना चाहते हैं, लेकिन टूल किट या मशीनें खरीदने के लिए उनके पास पूंजी नहीं है। बैंक से लोन लेना इनके लिए आसान नहीं। गारंटी, दस्तावेज और प्रोसेस इतने कठिन हैं कि कई बार तो वे प्रयास ही नहीं करते। सरकार की मुद्रा योजना या पीएम विश्वकर्मा योजना इनके लिए सिर्फ नाम मात्र की ही रह गई है। लकड़ी मंडियों में नहीं है पेयजल की व्यवस्था फर्नीचर कारीगरों की दुकानों और लकड़ी मंडियों में पीने के पानी की सुविधा न के बराबर है। दिनभर मशीनों के बीच काम करने वाले कारीगरों को पानी की सख्त जरूरत होती है, लेकिन उनके कार्यस्थलों पर नल, टंकी या किसी भी तरह की सार्वजनिक जल व्यवस्था नहीं है। दुकानदारों ने जलनिगम और नगर पालिका से पानी की टंकी और सार्वजनिक नल की मांग की है। फर्नीचर कारीगर समाज चाहता है कि उनके कार्यस्थलों पर स्थायी पेयजल सुविधा उपलब्ध कराई जाए। वहीं, लकड़ी मंडियों या फर्नीचर कारीगर समाज की दुकानों के आसपास सार्वजनिक शौचालय की भारी कमी है। कारीगर सुबह से शाम तक दुकान में काम करते हैं लेकिन आसपास कोई शौचालय नहीं होने के कारण उन्हें या तो खुले में जाना पड़ता है या आसपास के लोगों से मिन्नत करनी पड़ती है। कारपेंटरों का दर्द जानिए हमारे काम के दौरान कभी हाथ कटता है, कभी लकड़ी चुभती है और कई बार खून भी निकलता है। पर प्राथमिक इलाज के लिए कोई सहायता नहीं होती, न दुकान में फर्स्ट एड है और न ही अस्पतालों में प्राथमिकता। अगर जिला अस्पताल में फर्नीचर कारीगर कार्ड धारकों के लिए अलग काउंटर बना दिया जाए तो समय भी बचेगा और इलाज भी जल्दी होगा। हमें गंभीरता से देखा जाए। -मोहम्मद नाजिम हमने सुना है कि विश्वकर्मा योजना में टूल किट और प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन हमें न कोई जानकारी दी गई और न किसी अधिकारी ने संपर्क किया। फर्नीचर कारीगर समाज को योजनाओं से जोड़ना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए। अगर कैंप लगाकर हर गांव और ब्लॉक में कारीगरों को योजना से जोड़ा जाए, तो उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सकती है। बिना जानकारी के योजनाएं सिर्फ कागजों में ही रहती हैं। -आसिफ नई पीढ़ी अब इस काम को करने में रुचि नहीं ले रही, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें कम आमदनी और कोई पहचान नहीं है। अगर सरकार इस काम को कला का दर्जा दे और युवाओं को ट्रेनिंग, मशीन और बाजार दे तो वह वापस जुड़ेंगे। अगर अभी नहीं संभाला गया तो आने वाले समय में फर्नीचर कारीगर कला खत्म हो सकती है। इसलिए युवाओं के लिए योजना बनाना बेहद जरूरी है। -नासिर हमारे मोहल्ले में कई फर्नीचर कारीगर परिवार रहते हैं, लेकिन किसी भी सरकारी योजना की कोई सुविधा यहां तक नहीं पहुंचती। न पेयजल, न सड़क, न बिजली की सही व्यवस्था है। हमारे काम में बिजली सबसे जरूरी है, लेकिन ट्रिपिंग और कटौती से रोज़ नुकसान होता है। अगर हमारे मोहल्लों को भी मूलभूत सुविधाएं मिलें तो हम भी सम्मानजनक जीवन जी सकेंगे। -दानिश ज्यादातर लोग आयुष्मान योजना के कार्ड तो बनवा चुके हैं, लेकिन इलाज के समय उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाता। जिला अस्पताल में कोई अलग व्यवस्था नहीं है, जिससे हमें घंटों लाइन में लगना पड़ता है और कई बार लौटना पड़ता है। हमारे काम की प्रकृति ऐसी है जिसमें धूल, मशीन और लकड़ी से स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है। सरकार से मांग है कि हमारे लिए विशेष मेडिकल सुविधा बनाई जाए। -तौसिफ सरकार ने विश्वकर्मा योजना चलाई है, लेकिन हम जैसे फर्नीचर कारीगर लोगों तक उसका लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। हमें न प्रशिक्षण मिला है, न टूलकिट और न ही मशीन खरीदने में कोई सहायता। अगर जिला प्रशासन हमारे ब्लॉक में एक शिविर लगवा दे तो हम जैसे सैकड़ों लोग इस योजना से जुड़ सकते हैं। हमें केवल जानकारी, आवेदन में सहायता और सुविधा केंद्र की आवश्यकता है ताकि हम आगे बढ़ सकें। -इमरान हमारे पास दुकान है जहां दिनभर लकड़ी का काम होता है। कई बार काम करते समय मशीनों से चोट लगती है, लेकिन कोई भी प्राथमिक चिकित्सा सुविधा पास में नहीं है। पीने के पानी की भी दिक्कत है, गर्मियों में तो स्थिति और खराब हो जाती है। नगर निगम से हमारी मांग है कि दुकान वाले क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था हो, और एक मेडिकल किट हर फर्नीचर कारीगर समूह को दी जाए ताकि तुरंत इलाज हो सके। -सचिन दुकान पर दिनभर काम करने के दौरान सार्वजनिक शौचालय की बहुत जरूरत महसूस होती है। आस-पास कोई भी साफ-सुथरा टॉयलेट नहीं है, जिससे परेशानी होती है। महिलाएं तो और भी अधिक असहज महसूस करती हैं। नगर निगम या ग्राम पंचायत से आग्रह है कि जहां फर्नीचर कारीगर मंडी या दुकानों का समूह है, वहां एक साफ और सुरक्षित सार्वजनिक शौचालय जरूर बनवाया जाए, जिससे हम सम्मानपूर्वक काम कर सकें। -सरफराज हम लकड़ी का सामान बनाते हैं, लेकिन कच्चा माल लाने में बहुत दिक्कत होती है। लकड़ी महंगी मिलती है और अगर थोड़ा ज्यादा लाद लिया तो पुलिस वाले चालान या रिश्वत मांगते हैं। काम तो वैसे ही कम है, ऊपर से ये अवैध वसूली हमारी कमाई खा जाती है। हम चाहते हैं कि लकड़ी सरकारी दर पर दी जाए और ओवरलोडिंग के नाम पर फर्नीचर कारीगर समाज का उत्पीड़न बंद हो। -गुड्डन कई महिलाएं भी रंगाई, घिसाई और सफाई का काम करती है, लेकिन उसे न मजदूरी मिलती है और न ही उसका कोई सामाजिक दर्जा है। अगर सरकार फर्नीचर कारीगर समाज की महिलाओं के लिए स्व-सहायता समूह बनाए, उन्हें प्रशिक्षण और छोटा लोन दिलवाए, तो वे भी आत्मनिर्भर बन सकती हैं। ऐसे में परिवार की आय दोगुनी हो जाएगी और महिलाओं को भी इज्जत मिलेगी। उनकी मेहनत को पहचान मिलना बहुत जरूरी है। -नूरी सुझाव: 1.कारपेंटरों के लिए लागू होनी चाहिए मूलभूत सुविधाएं। 2.गुलावठी के बाजार में शुद्ध पेयजल की हो व्यवस्था। 3.कारपेंटरों के लिए आयुष्मान कार्ड होने चाहिए जारी। 4.श्रम विभाग में होना चाहिए कारपेंटरों का पंजीकरण। 5.दुर्घटना बीमा योजना का भी कारपरेंटरों को मिलें लाभ। शिकायत: 1.मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलने से कारपरेंटरों को होती है दिक्कत। 2.गुलावठी के बाजार में शुद्धपेयजल की व्यवस्था नहीं होने से दिक्कत। 3.आयुष्मान कार्ड जारी होने से कारपेंटरों की दिक्कत हो सकती है दूर। 4.श्रम विभाग में पंजीकरण कराने की होनी चहिए व्यवस्था। 5.दुर्घटना बीमा योजना का लाभ मिलने से दूर होगी दिक्कत। कोट: कारपेंटरों की दिक्कतों को जल्द से जल्द दूर करने का प्रयास किया जाएगा। जल्द ही कारपेंटरों की बैठक बुलाएंगे और स्थानीय स्तर पर जो भी दिक्कत होंगी, उन्हें दूर किया जाएगा। -लक्ष्मीराज सिंह, विधायक सिकंदराबाद।
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