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बोले बाराबंकी-खाद-बीज की किल्लत दूर हो तो फसल अच्छी व भरपूर हो

Barabanki News - बाराबंकी में खरीफ की बुवाई का समय शुरू हो चुका है, लेकिन किसानों को खाद और बीज की कमी से जूझना पड़ रहा है। सरकारी दावों के बावजूद, किसानों को समय पर खाद और बीज नहीं मिल पा रहा है। लंबी लाइनों और...

Newswrap हिन्दुस्तान, बाराबंकीWed, 25 June 2025 05:46 PM
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बोले बाराबंकी-खाद-बीज की किल्लत दूर हो तो फसल अच्छी व भरपूर हो

बाराबंकी। खरीफ की बुवाई का समय शुरू हो चुका है, लेकिन एक बार फिर जिले के हजारों किसान खाद और बीज की किल्लत से जूझ सकते हैं। सरकारी दावों के उलट जमीनी हकीकत यह है कि न तो समय पर बीज मिल पा रहे हैं और न ही खाद की उचित आपूर्ति हो रही है। जिन दुकानों पर खाद या बीज मिल भी रहा है, वहां लंबी लाइनें और कालाबाजारी की शिकायतें मिलती रहती हैं। जबकि कृषि विभाग का दावा है कि जिले में खाद व बीज की कोई भी कमी नहीं है। सूत्रों के अनुसार जिले में कई सहकारी समितियों और निजी बीज विक्रेताओं के पास अभी तक पर्याप्त स्टॉक नहीं पहुंचा है।

उर्वरक कंपनियों से डीलरों को समय से आपूर्ति नहीं मिलती है, वहीं कुछ जगह भंडारण की व्यवस्था भी कमजोर है। इससे विशेषकर डीएपी और यूरिया की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। जिले में खरीफ सीजन में प्रमुख रूप से धान, मक्का, अरहर, उड़द, मूंग आदि की बुवाई होती है। इन फसलों की बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई मध्य तक हो जाती है। यदि समय पर बीज और खाद नहीं मिला तो बुवाई का चक्र बिगड़ जाएगा और फसल की उत्पादकता में गिरावट आ सकती है। इससे किसानों को सीधे आर्थिक नुकसान होगा। खाद और बीज की किल्लत के अलावा किसानों को बिजली कटौती, सिंचाई संसाधनों की कमी, खेतों की जुताई के लिए ट्रैक्टर और डीजल की महंगाई, कीटनाशकों की अनुपलब्धता जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है। कृषि प्रधान जिले में हर वर्ष जब भी गेहूं, धान या आलू की बुआई का सीजन आता है, तो किसानों को खाद और बीज की कमी का संकट झेलना ही पड़ता है। चाहे खरीफ का मौसम हो या रबी का, हर बार जिले के किसान सरकारी तंत्र की लापरवाही और आपूर्ति तंत्र की असफलता का खामियाजा भुगततें हैं। खरीफ सीजन में धान की बुवाई के वक्त डीएपी और यूरिया की भारी मांग होती है। वहीं, रबी में गेहूं की बुवाई के लिए भी इन्हीं उर्वरकों की जरूरत होती है। आलू की खेती में तो खाद के अलावा कई विशेष उर्वरकों की मांग होती है, लेकिन हर बार किसान लंबी लाइनों और कालाबाजारी का शिकार बनते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि खाद के साथ-साथ गुणवत्ता युक्त बीज की भी समय से आपूर्ति नहीं हो पाती। चाहे गेहूं हो या धान, किसान सरकारी बीजों के लिए चक्कर काटते हैं। जबकि निजी विक्रेताओं से बीज खरीदना उनकी जेब पर भारी पड़ता है। जिले में किसानों की दुश्वारी किसी एक सीजन की नहीं, बल्कि हर सीजन की नियति बन चुकी है। प्रशासन चाहे जितना दावा करे, लेकिन गेहूं, धान और आलू की बुवाई के समय हर बार खाद और बीज की टेंशन किसानों की मेहनत पर भारी पड़ती है। अगर समय रहते आपूर्ति व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ, तो कृषि उत्पादन पर इसका दीर्घकालिक असर पड़ सकता है। खाद की कालाबाजारी पर नहीं लग पा रहा अंकुश: जिले में खरीफ सीजन की शुरुआत के साथ ही खाद की किल्लत और कालाबाजारी की खबरें आम हो जाती हैं। सरकारी दुकानों और सहकारी समितियों से खाद न मिलने पर मजबूर किसान खुले बाजार से अधिक दामों पर खाद खरीदने को मजबूर होते हैं। कृषि विभाग के अनुसार जिले में पर्याप्त खाद उपलब्ध है, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि समितियों और सरकारी विक्रेताओं पर खाद की लंबी लाइनें लगती है, और एक किसान को एक बार में एक ही बोरी मिलती इससे कई बार किसानों को खाली हाथ लौटना पड़ता है। किसानों का आरोप है कि कुछ समितियों के कर्मचारी और खाद डीलर आपस में मिलीभगत कर खाद का एक बड़ा हिस्सा निजी दुकानों को बेच देते हैं, जो बाद में उसे ऊंचे दामों पर बेचते हैं। यह खेल खासकर धान और गेहूं के सीजन में खूब चलता है, जब खाद की मांग सबसे अधिक होती है। जिंक लेने पर ही किसानों को मिलती है खाद: जिले के कई ब्लॉकों में किसानों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई है। सरकारी समितियों और कुछ निजी विक्रेताओं द्वारा किसानों को खाद तभी दी जा रही है जब वे साथ में जिंक भी खरीदें। किसानों का आरोप है कि यह जबरदस्ती है और उन्हें अनावश्यक खर्च के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसके खिलाफ कई गांवों में किसानों ने खुलकर विरोध जताना शुरू कर दिया है। खरीफ सीजन में डीएपी और यूरिया की मांग के बीच अब समितियों द्वारा यह शर्त रखी जा रही है कि यदि किसान को खाद चाहिए तो उसे जिंक सल्फेट भी लेना होगा। किसान इस "बंडल बिक्री" के खिलाफ हैं क्योंकि सभी फसलों में जिंक की जरूरत नहीं होती, और जो किसान पहले से जिंक ले चुके हैं, उन्हें दोबारा लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। बाराबंकी के किसान पहले से ही खाद की कमी और कालाबाजारी से परेशान हैं। अब जबरन जिंक थोपे जाने की नीति ने उनके सब्र को तोड़ दिया है। कृषि विभाग को चाहिए कि किसानों की इस पीड़ा को गंभीरता से ले और दोषी विक्रेताओं पर सख्त कार्रवाई करे। नहीं तो यह आक्रोश आंदोलन का रूप ले सकता है। जरूरत के मुताबिक और समय पर नहीं मिलती खाद और बीज:जिले के किसान हर फसल सीजन में एक ही समस्या से जूझते हैं समय पर और आवश्यकता के अनुसार खाद और बीज की आपूर्ति नहीं होना। धान, गेहूं या आलू जैसी प्रमुख फसलों की बुवाई के समय जब खेतों में जरूरत होती है तब या तो सरकारी केंद्रों पर खाद और बीज का टोटा होता है, या फिर किसानों को लंबी लाइनें, दलाली और जबरन बेचे जा रहे पैकेजों से जूझना पड़ता है। खाद की सबसे अधिक जरूरत बुवाई के शुरुआती समय में होती है, लेकिन यहीं पर सबसे ज्यादा कमी देखने को मिलती है। किसानों को कई-कई दिन खाद के लिए चक्कर लगाने पड़ते हैं। इससे बुवाई में देरी होती है और नतीजतन फसल की पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि धान, गेहूं, उड़द, अरहर और मूंग जैसी फसलों के बीज सरकारी केंद्रों पर सीमित मात्रा में और देर से पहुंचते हैं। जिन किसानों को पहले आकर नंबर मिल जाता है, उन्हें ही बीज मिलता है, बाकी लोग खाली हाथ लौट जाते हैं या बाजार से महंगे दामों पर बीज खरीदने को मजबूर होते हैं। कई बार पकड़ी जा चुकी हैं नकली खाद की बड़ी खेप:खरीफ और रबी सीजन के दौरान जिले में खाद की मांग जैसे ही बढ़ती है, वैसे ही बाजार में नकली खाद का जाल भी सक्रिय हो जाता है। बीते वर्षों में कई बार नकली खाद की बड़ी खेप पकड़ी जा चुकी है, फिर भी इस पर ठोस नियंत्रण नहीं हो सका है। खाद की कमी और प्रशासनिक लापरवाही का फायदा उठाकर कई लोग किसानों को नकली, मिलावटी और मानकविहीन खाद थमाकर उनकी फसलों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पिछले दो-तीन वर्षों में कृषि विभाग और प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई में जिले के कई गोदामों और दुकानों से नकली यूरिया, डीएपी और जिंक सल्फेट की भारी मात्रा जब्त की गई। कुछ जगहों पर बिना लाइसेंस के बेचे जा रहे उर्वरक भी पकड़े गए, लेकिन इनमें से अधिकांश मामलों में जुर्माना लगाकर फाइलें बंद कर दी गईं। नतीजा यह है कि नकली खाद का धंधा अब भी जारी है। नकली खाद का कारोबार न केवल किसानों की फसल, मेहनत और पूंजी को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि खाद्य सुरक्षा पर भी बड़ा खतरा है। बार-बार कार्रवाई के बावजूद यह खेल रुक नहीं रहा, जिससे स्पष्ट है कि निगरानी तंत्र कमजोर है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हो रही। प्रशासन को अब कड़ी कार्रवाई के साथ जवाबदेही तय करनी होगी, वरना किसान धोखा खाते रहेंगे और खाद माफिया फलते-फूलते रहेंगे। तय दाम से अधिक मूल्य पर खाद और बीज मिलने की शिकायत:खरीफ सीजन की शुरुआत के साथ ही जिले के किसानों को खाद और बीज की समय पर आपूर्ति तो नहीं मिल रही, उल्टा उन्हें तय दरों से अधिक मूल्य चुकाने की मजबूरी भी झेलनी पड़ रही है। कई क्षेत्रों में किसान लगातार शिकायत कर रहे हैं कि कुछ सरकारी केंद्रों और निजी विक्रेताओं द्वारा डीएपी, यूरिया और बीजों की बिक्री अधिक दरों पर की जा रही है। तय दाम पर खाद और बीज न मिलना किसानों के लिए दोहरी मार है-एक तरफ बुवाई का समय निकलता जा रहा है, दूसरी ओर उन्हें जेब पर अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है। अगर जिला प्रशासन ने इस पर जल्द सख्ती नहीं दिखाई, तो यह समस्या सिर्फ आर्थिक नहीं रहेगी, बल्कि किसानों का प्रशासन से भरोसा भी टूटेगा। इस समय जरूरत है पारदर्शी वितरण प्रणाली और कड़ाई से लागू नियमों की। जिले में करीब 6 लाख किसान:हर साल खरीफ, रबी और जायद-तीनों सीजन में लाखों किसान खाद और बीज की समस्या से दो-चार होते हैं। जिले में करीब 6 लाख से अधिक पंजीकृत किसान हैं, जो हर सीजन में गेहूं, धान, आलू, सरसों, मक्का, दलहन-तिलहन जैसी फसलों की खेती करते हैं। इस खेती के लिए सालाना लाखों बोरी खाद की जरूरत होती है। मगर हकीकत यह है कि इतनी बड़ी मांग के सापेक्ष आपूर्ति पर्याप्त और समय पर नहीं हो पाती, जिससे हर बार किसान संकट में आ जाते हैं। बाराबंकी में खरीफ सीजन में धान, मक्का की खेती होती है, वहीं रबी में गेहूं, चना, मसूर, आलू और सरसों जैसे फसलों की बुवाई होती है। हर फसल चक्र में खेत की तैयारी, बुवाई और वृद्धि के दौरान डीएपी, यूरिया, एनपीके, एमओपी, जिंक सल्फेट जैसे उर्वरकों की भारी जरूरत पड़ती है। तमाम किसानों का कहना है कि हर बार मांग के अनुरूप खाद उपलब्ध नहीं हो पाती। खाद आने में देर होती है, गोदामों से समितियों तक पहुंचने में समय लगता है, और जब किसान लेने पहुंचते हैं, तब तक स्टॉक खत्म हो चुका होता है। सरकारी दर पर नहीं मिलते बीज, बाजार में महंगे दाम देकर लेने को मजबूर किसान:जिले में खाद की तरह बीज की भी कालाबाजारी अब एक आम समस्या बन चुकी है। हर सीजन में खासकर धान, गेहूं, उड़द, अरहर, मूंग और मक्का जैसे बीजों की मांग बढ़ते ही कुछ विक्रेता और बिचौलिए इसका फायदा उठाने लगते हैं। सरकारी दरों पर मिलने वाले बीज न तो समय पर उपलब्ध होते हैं और न ही पर्याप्त मात्रा में। किसान मजबूरी में खुले बाजार से अधिक कीमत देकर बीज खरीदने को मजबूर हैं। किसानों का कहना है कि जब वे सहकारी समिति या कृषि केंद्र पर बीज लेने जाते हैं तो अक्सर कहा जाता है स्टॉक खत्म हो गया। कई किसान बताते हैं कि सरकारी केंद्रों पर बीज की आपूर्ति से पहले ही कुछ बिचौलियों को बड़ी मात्रा में बीज दे दिया जाता है। इसके बाद किसानों को कहा जाता है कि स्टॉक खत्म हो गया। ऐसे में छोटे और सीमांत किसान सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। कृषि विभाग का दावा है कि सभी बीज तय दर पर और पारदर्शी तरीके से वितरित किए जा रहे हैं। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि किसानों की शिकायतों पर त्वरित जांच और कार्रवाई नहीं होती। इफको यूरिया और डीएपी मिलने में होती है सबसे ज्यादा समस्या:जिले के किसान खरीफ और रबी सीजन में सबसे अधिक भरोसा इफको ब्रांड की यूरिया और डीएपी पर करते हैं। बेहतर गुणवत्ता और भरोसेमंद परिणाम के कारण किसान अन्य कंपनियों की खाद की तुलना में इफको उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन हर सीजन में यह खाद ही सबसे मुश्किल से मिलती है। सहकारी समितियों से लेकर निजी विक्रेताओं तक, किसान इफको की बोरी पाने के लिए घंटों लाइन में लगते हैं, फिर भी खाली हाथ लौटना आम बात हो गई है। कृषि विभाग का कहना है कि इफको उत्पादों की मांग बहुत अधिक है, इसलिए वितरण में असंतुलन होता है। लेकिन किसानों की शिकायत यह है कि यही खाद बाद में खुले बाजार में आसानी से और ऊंचे दामों में बिकती है। ट्रेन से आती हैं खाद की रैक, जिले में बने हैं कृषि विभाग के गोदाम:खरीफ, रबी और जायद सीजन में जिले की कृषि जरूरतों को पूरा करने के लिए खाद की आपूर्ति रेल रैक के जरिए की जाती है। डीएपी, यूरिया, एनपीके व जिंक जैसे उर्वरक बड़ी मात्रा में ट्रेनों द्वारा जिले के विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर पहुंचाए जाते हैं। इसके बाद इन्हें कृषि विभाग द्वारा बनाए गए गोदामों और सहकारी समितियों में भंडारित किया जाता है। जिले में कृषि विभाग और सहकारिता विभाग के दर्जनों गोदाम मौजूद हैं, जिनमें खाद और बीज का सीजन से पहले भंडारण किया जाता है। बीज भंडारण के लिए भी बने हैं गोदाम:जिले में कृषि विभाग द्वारा खाद के साथ-साथ बीजों के सुरक्षित भंडारण के लिए भी अलग-अलग गोदामों की व्यवस्था की गई है। इन गोदामों में खरीफ, रबी और जायद सीजन के अनुसार विभिन्न फसलों के बीजों का सीजन से पहले भंडारण किया जाता है। जिले में बीज भंडारण के लिए मजबूत भौतिक व्यवस्था होने के बावजूद किसानों तक समय पर सही मात्रा में बीज नहीं पहुंच पाना प्रबंधन और पारदर्शिता की बड़ी विफलता है। जब तक वितरण प्रणाली में जवाबदेही और डिजिटल निगरानी नहीं लाई जाएगी, तब तक सरकारी गोदामों के भरे रहने के बावजूद किसान निजी दुकानों से महंगे दाम पर बीज खरीदने को मजबूर रहेंगे। खाद की समस्या को लेकर 9 जुलाई को प्रदर्शन करेंगे किसान:भारतीय किसान यूनियन टिकैत के जिलाध्यक्ष अनुपम वर्मा ने दर्जनों पदाधिकारियों के साथ खाद की ओवर रेटिंग व साथ में अन्य उत्पाद लगाए जाने के विरोध में जिला कृषि अधिकारी को दिया गया। जिलाध्यक्ष ने कहा की जिले का किसान खाद की ओवर रेटिंग व खाद के साथ केन्द्रों द्वारा अन्य उत्पाद लेने पर किसानों को मजबूर किया जाता है, जिसको लेकर जनपद के किसानों मे भारी आक्रोश है, आज भारतीय किसान यूनियन की मासिक बैठक में जनपद से आये तमाम पदाधिकारियों एवं किसानों ने इस मुद्दे को उठाया जिसके बाद जिला अध्यक्ष ने इस मुद्दे को ज्ञापन के माध्यम से जिला कृषि अधिकारी को अवगत कराने का निर्णय लिया। इसके बाद जिलाध्यक्ष ने जनपद के किसानों एवं पदाधिकारियों के साथ मिलकर जिला कृषि अधिकारी को ज्ञापन सौंपा, और यह भी बताया की यदि इस समस्या का हल 8 जुलाई तक नही निकलता है तो भारतीय किसान यूनियन 9 जुलाई को जिला कृषि अधिकारी का घेराव करेगी। जिसकी समस्त जिम्मेदारी शासन प्रशासन की होगी। लोग बोले- खाद लेने के लिए कई बार समिति गया। लेकिन वहां मिल नहीं सकी। ऐसे में मजबूरी में बाजार से यूरिया लेना पड़ा। ऐसा सिस्टम बने जिससे किसानों को खाद व बीज आसानी से मिल सके। - संतोष सरकारी केंद्र पर समय से खाद नहीं मिलती है, इससे किसान परेशान होते हैं। अगर प्रशासन किसानों को खाद आसानी से उपलब्ध करा दे तो किसानों का काफी फायदा होगा। -हिमांशु मिश्रा इफको की डीएपी नहीं मिलती। दूसरी कंपनी की खाद लेने पर फसल में पहले जैसा असर नहीं दिखता। हम किसान हर बार ठगे जाते हैं। -राज इफको यूरिया खुले बाजार में मिल रही है, लेकिन समिति पर नहीं। कालाबाजारी वालों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। बीज भी समय पर नहीं मिलता है। - कुलदीप खाद व बीज तो मिल जाता है लेकिन अगर हर गांव में समितियां खुलनी चाहिए जिससे किसानों को कोई परेशानी न हो। अगर यह सुविधा प्रशासन कर दे तो किसानों को काफी बचत होगी। -मंशाराम धान के बीज के लिए तीन दिन तक चक्कर लगाया। सरकारी बीज नहीं मिला तो प्राइवेट से महंगे दाम पर खरीदना पड़ा। जिससे किसानों की लागत बढ़ती है। - अमरेश खाद-बीज की सबसे बड़ी समस्या यही है कि जब खेत में जरूरत होती है तब मिलती नहीं। इंतजार करते रहो और नुकसान झेलो। - गोविंद अवस्थी समिति पर बोला गया कि खाद तभी मिलेगी जब जिंक भी लोगे। ऐसे में किसानों को इससे अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है। इस पर रोक लगने की जरूरत है। -सुशील वर्मा समित पर खाद की गाड़ी आते ही कुछ चुनिंदा लोगों को पहले दे दी जाती है। छोटे किसान बाद में खाली हाथ लौटते हैं। इससे दिक्कत होती है। - पंकज मिश्रा कई बार किसानों को नकली डीएपी मिल जाती है जिससे फसल खराब होती है। ऐसे में कालाबाजारी करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। - शिवनरायण खाद के साथ ही बीज पर भी रेट से ज्यादा वसूली होती है। किसान चुपचाप सह लेता है, लेकिन अन्नदाता को हर बार लूटा जा रहा है। यह कब तक चलेगा। - शालू वर्मा इफको खाद ही भरोसे की होती है, लेकिन यही सबसे पहले गायब हो जाती है। फिर प्राइवेट दुकानों पर मिलती है,ज्यादा दाम में। इससे किसानों को अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है। - अमन यादव बोले जिम्मेदार- जिले में खाद व बीज की कोई कमी नहीं है। 70 हजार एमटी खाद इस समय जिले में मौजूद है। जबकि 2 लाख 48 हेक्टेयर भूमि पर जिले में खरीफ सीजन खेती होती है। इसमें 59 हजार एमटी खाद की जरूरत सीजन में लगती है। ऐसे में जरूरत से ज्यादा इस समय हमारे पास खाद की उपलब्धता है। खाद व बीज की कालाबाजारी को लेकर भी नियमित अभियान चलाकर कार्रवाई की जाती है। किसानों को कोई समस्या न होने पाए इसके लिए हर संभव प्रयास किए जाते हैं। -राजितराम वर्मा, जिला कृषि अधिकारी

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