भगवान व दल में से एक चुनना था मैने राम को चुना: अभय सिंह
Ayodhya News - अयोध्या के गोसाईगंज विधायक अभय सिंह ने समाजवादी पार्टी छोड़ने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वे भगवान राम के प्रति अपनी आस्था के लिए पार्टी से अलग हो रहे हैं। उनका आरोप है कि पार्टी रामचरितमानस के खिलाफ...

अयोध्या। गोसाईगंज विधायक अभय सिंह ने कहा भगवान राम और दल में मुझे चुनना था। मैंने भगवान राम को चुना। मैं अकेला नहीं हूं, समाजवादी पार्टी के अनेक विधायक आज भी भीतर से आहत हैं, लेकिन कुछ कारणों से अभी निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। आज मैं पार्टी से अलग हो रहा हूं। लेकिन मैं अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपनी आत्मा,और अपने आराध्य राम के साथ अडिग खड़ा हूं। उनका कहना है कि मैं जिस समाजवादी पार्टी से जुड़ा था, वह डॉ. राम मनोहर लोहिया जी की विचारधारा पर आधारित थी। डॉ. लोहिया रामायण मेले का आयोजन करते थे और रामचरितमानस का सम्मान करते थे।वह
कहा करते थे, भारत की आत्मा में राम, कृष्ण और शिव का वास है। लेकिन आज वही पार्टी उन लोगों की पक्षधर बन गई है जो रामचरितमानस जैसे पवित्र ग्रंथ को जलाते हैं। मैंने बार-बार राष्ट्रीय अध्यक्ष से आग्रह किया कि जो नेता रामचरितमानस को फाड़ते और जलाते हैं, उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस तो जारी कीजिए। लेकिन पार्टी ने न कोई कार्यवाही की और न ही उन्हें इस महापाप से रोका। उनका कहना है कि मेरे हृदय को सबसे बड़ा आघात तब पहुंचा जब राम मंदिर निर्माण के बाद सभी समाजवादी पार्टी विधायकों को दर्शन पर रोक लगा दी गई। मुझे स्पष्ट रूप से कहा गया कि दर्शन न करना, यह पार्टी की गाइडलाइन है। क्या मैं अयोध्या का बेटा होकर भी अपने आराध्य श्रीराम के दर्शन न करूं। क्या मेरी आस्था और मेरा धर्म राजनीति से छोटा है। समाजवादी पार्टी ने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) का नारा सिर्फ सत्ता पाने के लिए गढ़ा, लेकिन सत्ता में आते ही वह नारा एक वर्ग विशेष और परिवार विशेष के हित में बदल जाता है। दलित-पिछड़े सिर्फ वोट बैंक बनकर रह जाते हैं। यह सब देखकर मेरी आत्मा ने सवाल किया कि क्या मैं उस विचारधारा से जुड़ा रहूं जो धर्म, आस्था और न्याय के खिलाफ खड़ी हो चुकी है। एक से डेढ़ वर्ष तक कोई संवाद नहीं हुआ। और फिर अचानक पार्टी से निष्कासन कर दिया गया। वो भी बिना किसी कारण बताओ नोटिस के। क्योंकि यदि नोटिस दिया जाता और मैंने उत्तर दिया होता, तो पार्टी का तथाकथित सेक्युलर चेहरा बेनकाब हो जाता और तुष्टिकरण की राजनीति जगजाहिर हो जाती। क्या यही लोकतंत्र है। क्या यही डॉ. लोहिया के विचारों पर चलने वाली पार्टी है। मैं गलत का विरोध करता हूं, और करता रहूंगा। भगवान श्रीराम केवल आस्था के नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समरसता के प्रतीक हैं। उन्होंने शबरी के झूठे बेर खाए, निषादराज को गले लगाया, वनवासी और वंचित समाज को सम्मान दिया पर आज की समाजवादी पार्टी उन्हीं भगवान राम के विरोध में खड़ी हो गई है।
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