बोले आगरा: नए नियमों के बोझ से फिर अटकी नन्हे उद्योग की जान
Agra News - ताज महल के संरक्षण की दिशा में आगरा के ढलाई उद्योगों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। बीआईएस मानकों के तहत नई मशीनों की आवश्यकता और प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी के कारण कई इकाइयाँ बंद होने की...
ताज के संरक्षण की खातिर आगरा के अनेकों उद्योगों की बलि चढ़ गई। इस कड़ी में ढलाई उद्योग अहम है। दो सौ इकाइयां जो अपनी कारीगरी से देश दुनिया की कंपनियों को उनकी जरूरत के सामान मुहैया कराने के प्रयास में जब आगे बढ़ रही थीं, हजारों की तादाद में श्रमिकों को नियमित रोजगार दे रही थीं, वेंडरों के परिवारों को पोषण दे रही थीं। एक याचिका भर से अस्थिर हो गईं। दो दशक की कड़ी मशक्कत के बाद इन इकाइयों ने अपने आप को फिर खड़ा किया। बाजारों में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। इस बार नियमों की मार बीआईएस से मिल गई।
श्रेणी विशेष की कास्टिंग (ग्रे आयरन कास्टिंग) को भारतीय मानक ब्यूरो के दायरे में लाए जाने की अनिवार्यता ने नन्हे से उद्योग की जान एक बार फिर मुश्किल में डाल दी है। नेशनल चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स में उक्त विषय पर परिचर्चा हुई। सन 1922 से सक्रिय आगरा आइरन फाउंडर्स एसोसिएशन से मिले अभिलेख बताते हैं कि मुगलकाल से ही आगरा में ढलाई उद्योग है। उस समय लोहे से ढाल और तलवार बनाई जाती थी। लगभग 120 साल पहले आगरा में पहली ढलाई यूनिट अयोध्या प्रसाद राम प्रसाद के नाम से संचालित हुआ। इनमें हाथ के पंखे बनाकर लोहे की चीजें बनती थीं। इसके बाद कुछ अन्य इकाइयाँ स्थापित हुईं जिन्होंने कोल्हू वाट, खल्लड़, जाली सहित अन्य सामान बनाए जाने लगे। गुलाब चंद छोटे लाल ने इसके बाद के दौर में खूब नाम कमाया। अस्सी और नब्बे के दशक में फाउंड्री उद्योग चरम पर था। उस समय देश भर से आर्डर आते थे। यहां की सिद्धहस्त कारीगरी की बदौलत ढलाई सस्ती, सुन्दर और टिकाऊ रही है। इस वजह से देश के अन्य ढलाई केन्द्रों के ऊपर आगरा को तरजीह दी जाती थी। कई वैश्विक बाजारों में भी यहां तैयार हुए पाइप फिटिंग, डीजल इंजन और पंप पार्ट्स की मांग थी। लगभग दो सौ यूनिट्स और उनमें काम करने वाले हजारों कुशल कारीगरों ने यहां के फाउंड्री उद्योग को वैश्विक पहचान दी। लेकिन ताज संरक्षित जोन का मसला उठने के बाद परिस्थितियां बदल गईं और सन 2000 में यह उद्योग जमीन पर आ गया। सुप्रीम कोर्ट की बंदिशों के कारण कई फर्मों ने अपनी इकाइयां आगरा से अन्यत्र शिफ्ट कर दीं। लेकिन वे लोग सफल नहीं हो सके और बहुत सी इकाइयां बंद हो गईं। इस स्थिति को देखते हुए उद्यमियों के एक ग्रुप ने पारंपरिक तरीकों में जरूरी बदलाव की सोची। इस दौरान नेशनल मैटलर्जी लैब और टाटा कोर्फ के सहयोग से रिसर्च शुरू हो चुकी थी। नई भट्टी की कीमत चालीस से पचास लाख रुपये बताई गई जो उस संघर्ष के दौर में बहुत ज्यादा रकम थी। फिर भी रिसर्च में सभी छोटी-बड़ी इकाइयों ने इसमें सहयोग दिया। वैकल्पिक भट्टी तैयार भी हुई लेकिन आंशिक सफलता ही मिली। यह भट्टी तीन चार टन माल तैयार हो जाने के बाद बैठ जाती थी। रिसर्च के भारी भरकम खर्चे ने उद्यमियों को हिला दिया। सभी अपने स्तर से विकल्प खोजने में जुट गए और पारंपरिक भट्टी को कोकलैस क्युपुला में परिवर्तित कर दिखाया। अनुसंधान एवं अत्यधिक परिश्रम के बाद जब फल मिलने का समय आया तो पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से तदर्थ रोक लगा दी गई। स्पष्ट निर्देश दे दिए गए कि ताज संरक्षित क्षेत्र की इकाइयां न तो अपना विस्तार कर सकती है। न ही इस सेक्टर में नई इकाइयां लग सकती हैं। जिन इकाइयों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अपना काम शुरू किया, उनको गैस के दाम परेशान कर रहे। किसी तरह इन मुसीबतों से अपने को निकाला तो अब बीआईएस ने नींद उड़ा दी है। चिंता एक ही है कि छोटी इकाइयां किस तरह से भारी भरकम खर्च को पूरा कर सकेंगे। अपनी लागतों को बढ़ाएंगे तो अपने खरीदारों को क्या जवाब देंगे। अनुपालन की लागत में इजाफा उद्यमियों के अनुसार बीआईएस की सबसे बड़ी मुश्किल अनुपालन की लागत है। हर इकाई को कम से कम पन्द्रह लाख की लागत की मशीनों को अपने यहां स्थापित करना होगा। इन मशीनों के संचालन के लिए कुशल कामगार की आवश्यकता होगी। जो इकाई संचालक स्वयं ही प्रबंधक, सुपरवाइजर, खरीद अफसर जैसे काम स्वयं ही पूरे कर रहा हो, वह पच्चीस तीस हजार रुपये मासिक वेतन वाले कुशल कारीगरों का वहन कैसे कर पाएगा। इसके अलावा नियम अनुपालन के लिए जो लागत खर्च आएगा उसकी पूर्ति कर पाना आसान नहीं होगा। श्रमिकों को कैसे करेंगे प्रशिक्षित जिन मानकों को पूरा कराने का प्रयास है, उसमें सबसे बड़ी चिंता प्रशिक्षित वर्क फोर्स की है। फाउंड्री में इतने कामगार प्रशिक्षित नहीं कि वे बीआईएस के मानकों के अनुसार इकाई में काम कर सकें। स्थानीय कामगार ज्यादातर अकुशल एवं अर्द्ध कुशल हैं। यहां पर अभी तक उनको इतना प्रशिक्षण भी नहीं मिला कि वे पुरानी मशीनों पर ही काम कर सकें। उद्यमियों ने सवाल उठाया कि व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं कि बिना किसी प्रशिक्षण के भारतीय मानक ब्यूरो के मापदंडों को उपलब्ध वर्क फोर्स के साथ पूरे नियम से अनुपालन करा दें। बेरोजगारी को बढ़ावा होगा आगरा में हाथरस रोड एवं जलेसर रोड के अनेकों गांव ऐसे हैं जिन्होंने यहीं रहकर ढलाई के कार्य को सीखा है। कोयला प्रतिबंधित होने के बाद उनको गैस की भट्टी एवं इंडक्शन फर्नेस का प्रशिक्षण अपने नियोक्ता से मिल गया। अब जब बीआईएस मानक लागू हो जाएंगे तो नए मानकों के अनुसार स्टाफ की आवश्यकता होगी। पहले से कार्यरत स्टाफ को हटाने की नौबत आएगी। जिससे बेरोजगारी फैलेगी। एक तरफ सरकार छोटी इकाइयों को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का माहौल देना चाह रही। वहीं दूसरी तरफ ऐसे नियमों से उनके लिए मुश्किल हो रही। अन्य उद्योगों को देते हैं कच्चा माल उद्यमियों के अनुसार आगरा के ढलाईघर किसी भी उपभोक्ता के लिए प्रयोग के लायक उत्पादों को नहीं बनाते। ज्यादातर इकाइयां अन्य उद्योगों में काम आने वाले विभिन्न प्रकार के ढाले हुए पीस बनाते हैं। इसके लिए खरीदार उनको तय आकार एवं माप की उपलब्धता कराते हैं। ढलाई करने वाले पिग आयरन को पिघला कर उस माप के अनुसार जॉब को तैयार कर देते हैं। यह जॉब इंजीनियरिंग एवं अन्य प्रकार के उद्योगों की निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं। उनको विशेषज्ञों की टीम उपभोक्ताओं के प्रयोग करने लायक स्थिति में लाने का काम करती है। दस करोड़ का टर्नओवर तय हो बीआईएस की अनिवार्यता के लिए मशीन लागत 25 लाख या सालाना टर्नओवर दो करोड़ को आधार बनाया गया है। मुद्रा स्फीति की स्थिति को देखते हुए यह लिमिट बहुत ही कम है। जिस तरह बीते कुछ सालों में लोहे के दाम बढ़े हैं, इस सीमा को कम से कम दस करोड़ रुपये किया जाना चाहिए। आगरा में ताज संरक्षित क्षेत्र के कारण बंदिशों को देखते हुए यहां के उद्योगों के लिए विस्तार की तो गुंजाइश ही नहीं। ऐसे में बीआईएस की अनिवार्यता किए जाने के बावजूद यहां का उद्योग वह फायदा नहीं उठा सकता, जो अन्य केंद्र के लिए वरदान साबित होगा। उद्यमियो की व्यथा : ऊर्जा को लेकर यहां के उद्योग पहले ही परेशान हैं। गैस के दाम भी लगातार बढ़ाए जा रहे। बिजली पहले से महंगी है। अब नए नियमों का अनुपालन किस प्रकार हो। : देश के किसी भी हिस्से में लोग कारोबार बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील होते हैं, लेकिन आगरा में स्थिति विचित्र है। यहां ढलाई घर अपना विस्तार करने की स्थिति में नहीं। : ग्रे कास्टिंग ही नहीं, सभी प्रकार की मशीनों को बीआईएस के दायरे में लाने के लिए कवायद चल रही। इससे तो उद्योगों के लिए मुश्किल और भी ज्यादा बढ़ जाएगी। : किसी भी नए नियम को लागू करने से पहले संबंधित पक्ष को उसके बारे में समझाया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर प्रशिक्षण केंद्र एवं सुविधा केंद्र स्थापित होते हैं। सरकार से अपेक्षा : आगरा के हालातों को लेकर उद्यमियों के दल ने वाणिज्य मंत्रालय के तकनीकी अधिकारी से मुलाकात कर बीआईएस की अनिवार्यता के नियम में ढिलाई देने की मांग रखी। : स्थानीय उद्यमी चाहते हैं कि प्रत्येक सेंटर को सरकार बराबरी के साथ प्रतिस्पर्द्धा का अवसर दे। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि आगरा इस दौड़ में कैसे शामिल हो : हाल में आगरा के महत्व के कुछ अन्य उत्पादों को बीआईएस के दायरे में लाने की कवायद की गई। इस बात से बेखबर होकर कि इनके परीक्षण के लिए पहले से इंतजाम नहीं : उद्यमी कहते हैं कि छोटी इकाइयों के लिए यह संभव नहीं कि वे अनुसंधान में रकम खर्च करें। अपने कार्मिकों को प्रशिक्षित करें। सरकार को इस दिशा में प्रयास करने होंगे। प्रतिक्रियाएं 1 बीआईएस को लागू करने में जल्दबाजी की जा रही है। सरकार को यह सोचना चाहिए कि आगरा के हालात अलग हैं। यहां पर उद्यमी विपरीत हालातों में अपने अस्तित्व को बनाए हुए हैं। नए नियमों के कारण उनके लिए मुसीबत बहुत बढ़ जाएंगी। संजय गोयल, अध्यक्ष, नेशनल चैंबर 2 वर्तमान में बीआईएस के लाइसेंस के लिए दो करोड़ रुपये के टर्नओवर की सीमा रखी गई है। जिस तरह से धातुओं की कीमत में वृद्धि हुई है, पन्द्रह से बीस लाख रुपये महीने का टर्नओवर मायने नहीं रखता। यह लिमिट कम से कम 10 करोड़ हो। अमर मित्तल, अध्यक्ष, आगरा आयरन फाउंडर्स एसोसिएशन 3 हम उपभोक्ताओं के प्रयोग में आने वाले उत्पाद नहीं बनाते। हमारा काम तो उद्योगों के लिए जॉब वर्क है। हम लोहे को गला कर उनकी जरूरत के अनुसार और उनकी मांग के अनुसार ऐसे सामान निर्मित करते हैं। हमें बीआईएस की जरूरत ही नहीं। सुनील सिंघल, सचिव, आगरा आयरन फाउंडर्स एसोसएशन 4 हमारे यहां सभी इकाइयां सूक्ष्म एवं लघु हैं। इन इकाइयों में सभी काम एक ही व्यक्ति पूरे करते हैं। किसी पार्ट की जरूरत पड़ती है, मालिक ही अपना स्कूटर उठा कर मार्केट की तरफ भागते हैं। कच्चा माल कितना चाहिए, मालिक को लाना है। अशोक कुमार, पदाधिकारी, आगरा आयरन फाउंडर्स एसोसिएशन 5 अगले साल से सभी प्रकार की मशीनरी पर भी बीआईएस प्रस्तावित है। इन हालातों में छोटे उद्यमियों के लिए मुश्किल और बढ़ जाएगी। उत्पादन प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित होगी। मशीनों को मंगाना मुश्किल हो जाएगी। काम धंधे ठप होने लग जाएंगे। प्रदीप कुमार वाष्र्णेय, 6 आगरा के साथ हमेशा छल हुआ है। पर्यावरण को देखते हुए यहां पर प्रदूषण रहित उद्योगों की स्थापना होनी चाहिए थी। वह तो हुआ नहीं, पहले से स्थापित उद्योगों को हिलाने के प्रयास जरूर शुरू हो गए हैं। इस तरह से रोजगार में मुश्किल होगी। मनीष अग्रवाल, संयोजक 7 आगरा ने ढलाई में अपनी कुशलता से देश भर में नाम कमाया। ऐसे उत्पाद तैयार हुए जिनकी मांग बहुत ज्यादा थी। लेकिन यह स्थिति बिगड़ रही है। अब आगरा के उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे। आमदनी के स्रोत भी नहीं रहे। संजय कुमार गोयल, उपाध्यक्ष 8 हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से संघर्ष कर आगरा का वजूद कायम रखा है। पारंपरिक ढलाई उद्योग को बचाए रखा है। अब सरकार की भी जिम्मेदारी है कि इस उद्योग के साथ और ज्यादती न हो। उद्यमियों को जरूरी नियमों का अनुपालन कराया जाए। संजय अग्रवाल, कोषाध्यक्ष 9 यहां का ढलाई उद्योग आम उपभोक्ताओं के लिए सामान नहीं बनाता। हम लोग तो मशीनरी एवं अन्य उद्योगों के लिए एक प्रकार से जॉब वर्क करते हैं। उनकी आवश्यकता के सामान को लोहे को गलाकर तैयार करके देते हैं। फिर बीआईएस क्यों। प्रवीण अग्रवाल 10 उद्योगों को अपना वजूद बनाए रखने के लिए सरकार का सहयोग चाहिए। लेकिन हाल के समय में ऐसे नियम बनाने का प्रयास चल रहा, जो कि व्यावहारिक ही नहीं। इन नियमों की वजह से शहर की अर्थव्यवस्था पर बड़ा संकट आ सकता है। संजय जैन 11 ढलाई घरों को कोयले के बाद से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा। यहां की भट्टी को गैस पर आधारित तैयार कराया। अब नए नियमों को बनाने का प्रयास चल रहा। ऐसे माहौल में तो हम लोगों की इकाइयों का अस्तित्व मुश्किल में होगा। संजय गुप्ता 12 अधिकारियों को चाहिए कि पहले बीआईएस का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करें। उसके बाद इसके अनुरूप युवाओं को प्रशिक्षण् प्रदान करें। जब यह दोनों कार्य हो जाएंगे तो स्वत: ही लोगों का रूझान नई तकनीक की तरफ होगा। लोग बदलाव करना चाहेंगे। मनोज गुप्ता 13 ताज संरक्षित क्षेत्र के कारण आगरा का औद्योगिक विकास रुका हुआ है। यहां पर उद्योग अपनी मर्जी से काम भी नहीं कर सकते। इतनी बंदिशों के बावजूद अपना अस्तित्व बनाए रखना काफी मुश्किल भरा होता है। सरकार को साथ देना चाहिए। नितिन अग्रवाल 14 शहर के लिए उद्योग अत्यंत आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब उद्योगों को सख्त नियमों की बजाए व्यावहारिक नियमावली में रखा जाए। जिस तरह से बीआइएस के नियम बनाए गए हैं, उसका अनुपालन कर पाना बहुत ही मुश्किल होगा। आनंद सिंह 15 शहर को आईटी हब के रूप में विकसित किया जाना चाहिए था। यहां पर असीम संभावनाएं हैं। इनकी बजाए यहां पहले से चल रहे उद्योगों को निशाने पर लाया जा रहा है। ऐसे प्रयासों से तो आगरा में उद्योग बिल्कुल भी सफल ही नहीं हो पाएंगे। संजय सोलंकी 16 आगरा की अपनी विरासत है। इसमें ढलाई घर अहम स्थान रखते हैं। इसको ऊंचाइयों तक ले जाने में उद्यमिता के साथ कारीगरों का भी योगदान रहा है। देश की इस अहम विरासत को संरक्षित रखना हम लोगों की जिम्मेदारी होनी चाहिए। तूषार वाष्र्णेय 17 आगरा शहर में ही ढलाई का विकास हुआ। यहां के उत्पादों को आगरा ही नहीं पूरे देश में पसंद किया जाता रहा है। ऐसे हालातों में इस उद्योग को संरक्षित रखना सभी की जिम्मेदारी है। सरकार को भी इस दिशा में प्रयास करने चाहिए। विजय गुप्ता
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