अलवर में जहरीली शराब का कहर! 3 दिन में 8 लोगों की मौत; कई की हालत गंभीर
राजस्थान के अलवर में दर्दनाक घटना सामने आई है। यहां जहरीली शराब पीने के कारण 8 लोगों की एक साथ मौत हो गई है। इस घटना में जहरीली शराब पीने वाले कई लोगों की हालत गंभीर है।

राजस्थान के अलवर में दर्दनाक घटना सामने आई है। यहां के जहरीली शराब पीने से 8 लोगों की मौत हो गई है। 2 दिन के अंदर 8 लोगों की मौत के बाद इलाके में हाहाकार मच गया है। हादसे के बाद इलाके के लोगों में गुस्सा है। लोगों का कहना है कि इलाके में लंबे समय से अवैध शराब का कारोबार चल रहा है, लेकिन कोई ऐक्शन नहीं लिया जा रहा है। घटना की सूचमना मिलने के बाद अलवर तहसीलदार रश्मि शर्मा अकबरपुर थाना अधिकारी प्रेमलता वर्मा सहित अन्य अधिकारी कर्मचारी मौके पर मौजूद
मामला अलवर जिले के अकबरपुर थाना क्षेत्र के दो गांवों, पैंतपुर और किशनपुर का है। यहां जहरीली शराब पीने से अब तक 8 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई अन्य की हालत नाजुक बनी हुई है। यह सब उस समय सामने आया जब 28 अप्रैल को एक ही दिन में पांच लोगों की मौत हो गई, जिससे हड़कंप मच गया।
ग्रामीणों ने जो आरोप लगाए हैं। ग्रामीण सीधे तौर पर पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत की ओर इशारा करते हैं। उनका कहना है कि इलाके में लंबे समय से अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है, जिसकी जानकारी स्थानीय पुलिस और संबंधित विभागों को भी थी।
घटना के बाद उठ रहे कई सवाल
सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि जब एक ठेकेदार को एक दुकान की अनुमति मिली थी, तो उसके द्वारा कई दुकानें खोलना कैसे संभव हुआ? ग्रामीणों ने बताया कि इन दुकानों पर खुलेआम कच्ची और जहरीली शराब बेची जा रही थी, जो जानलेवा साबित हुई।
कब-कब हुई मौतें
26 अप्रैल: पैंतपुर निवासी सुरेश वाल्मीकि (45) की मौत
27 अप्रैल: किशनपुर के रामकिशोर (47) और पैंतपुर के रामुकुमार (39) की जान गई
28 अप्रैल: किशनपुर के लालाराम (60), भारत (40) और पैंतपुर के ओमी (65) समेत पांच मौतें
तीन दिन में लगातार मौतों के बाद भी जब प्रशासन हरकत में नहीं आया, तो ग्रामीणों में गुस्सा फूट पड़ा। अब गुरुवार को ग्रामीणों ने महापंचायत बुलाकर दोषी अधिकारियों और शराब माफिया पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। सबसे ज्यादा मौत 28 अप्रैल को हुईं, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी उसी दिन देर शाम गांवों में पहुंचे। इससे पहले की मौतों पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई। पुलिस ने जांच शुरू करने की बात कही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ जांच से ग्रामीणों को न्याय मिलेगा? या फिर यह भी एक और केस बनकर फाइलों में दफन हो जाएगा?